PM मैटेरियल से उपराष्ट्रपति मैटेरियल तक, पार्टनर फिल्म के भास्कर की तरह किसी भी साइज के अंदर फिट होने वाले नेता हैं नीतीश कुमार

क्लू टाइम्स। मोदीनगर, सूरेन्द्र कुमार गुप्ता, 9837117141PM मैटेरियल से उपराष्ट्रपति मैटेरियल तक, पार्टनर फिल्म के भास्कर की तरह किसी भी साइज के अंदर फिट होने वाले नेता हैं नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री को लेकर भी इन दिनों ऐसा ही कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है। जब से उनके राज्यसभा जाने और उपराष्ट्रपति बनाए जाने की चर्चाएं तेज हो गई हैं।

नीतीश की किस बात पर चर्चाएं हुई तेज 

नीतीश कुमार ने कुछ पत्रकारों से विधानसभा के अपने कक्ष में औनऔपचारिक बातचीत की। उनसे पूछा गया कि पिछले दिनों अपने पुराने संसदीय क्षेत्र बाढ़ का दौरा कर रहे थे। साथियों से मुलाकात कर रहे थे। क्या 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ने का प्लान है। उन्होंने जवाब में कहा अब कहां। नीतीश कुमार ने कहा कि वह राज्य विधानमंडल दोनों सदनों और लोकसभा के सदस्य रहे हैं और राज्यसभा में एक कार्यकाल से उनका राजनीतिक सफर पूरा हो जाएगा। बता दें कि नीतीश तीन सदनों के सदस्य रह चुके हैं। 1989 में बाढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद बने। उससे पहले विधायक। नीतीश कुल छह बार सांसद रहे हैं। 1995 में नालंदा जिले की हरनौत से विधानसभा भी पहुंचे। केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। फिलहाल विधान परिषद के सदस्य हैं। 

अंत भला तो सब भला 

अब आपको छोड़ा पीछे लिए चलते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव का दौर नवंबर का महीने साल 2020 जब एक रैली में नीतीश कुमार ने कहा था आज चुनाव का आखिरी दिन है और परसों चुनाव है। ये मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला। अब आप बताइए कि वोट दीजिएगा न इनको? हाथ उठाकर बताइए। हम इनको (उम्मीदवार को) जीत की माला समर्पित कर दें?”  तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि नीतीश कुमार के इस बयान का मतलब इतना आगे निकल जाएगा कि डेढ़ साल के भीतर कयास लगने शुरू हो जाएंगे कि क्या बिहार की राजनीति से नीतीश का मन भर गया। नीतीश कुमार बिहार के बाद दिल्ली आएंगे। सात बार सीएम रहने के बाद अब नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति बनेंगे। 


कई बार झुकाव से उन्नति का रास्ता खुलता है

अब आपको एक तस्वरी दिखाते हैं- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। इस तस्वीर में नीतीश के बॉडी लैंग्वेज का बड़ा फर्क है जिसकी तरफ आलोचकों ने ध्यान दिलाया। 90 डिग्री के कोण से घूमते हुए शरीर का झुकाव 60 डिग्री पर पहुंच गया। गणित के नियम में भले ही कोण का घिरना झुकाव दर्शाता हो लेकिन राजनीति में विज्ञान दूसरा है। कई बार झुकाव से उन्नति का रास्ता खुलता है। वैसे ये भी कहा गया सब सम्मान की बात है। लेकिन इसके दूसरे मायने भी तलाशे जा रहे हैं। अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव होना है। बीजेपी क्या नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बना सकती है।   सबसे बड़ा सवाल की आखिर एक राज्य के मुखिया के तौर पर काम कर रहे नीतीश क्यों सीएम की कुर्सी छोड़ेंगे। जिसके पीछे सबसे बड़ा तर्क ये दिया जा रहा है कि अब उनकी ताकत वो नहीं रह गई जो पहले कभी हुआ करती थी। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष से भी उनकी तीखी बहस का वीडियो काफी में चर्चा रहा था। इसमें सबसे अहम बात कि विधायकों की संख्या के साथ वोट प्रतिशत में भी घटाव देखने को मिला है। विरोधियों की तरफ से बीजेपी की कृपा पर सीएम बनने का तंज भी कसा जाता है।


बिहार के नेताओं का क्या है कहना? 

बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज्यसभा जाने पर विचार करने को अफवाह और शरारत भरी हरकत बताते हुए कहा कि यह सच्चाई से बहुत दूर है। संजय कुमार झा ने ट्वीट कर कहा, ‘‘मैं इस अफवाह से हैरान हूं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्यसभा जाने पर विचार कर रहे हैं, यह शरारत और सच्चाई से बहुत दूर है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कुमार के पास बिहार की सेवा करने का जनादेश है, और मुख्यमंत्री के रूप में पूरे कार्यकाल तक वह सेवा करना जारी रखेंगे। वह कहीं नहीं जा रहे हैं।’ वहीं बिहार के डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद में कहा कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में हम सब मंत्री परिषद में शामिल हैं। उनके नेतृत्व में बिहार 2005 से बेहतर मुकाम में है। कोई ऐसा विषय आया वो मेरे ध्यान के नहीं है। डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि हमारी इच्छा है कि वो मुख्यमंत्री के रूप में हम सभी का नेतृत्व करते रहें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाए जाने के सवाल पर कहा कि ये सब अटकलें हैं। चलती रहती हैं, इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी ने कहा कि अच्छा ही न रहेगा, जाना ही चाहिए। सभी लोग चाहेंगे कि चले जाएं।

बिहार की राजनीति के टीना फैक्टर हैं नीतीश

बिहार की राजनीति में तीन मुख्य राजनीतिक दल ही सबसे ताकतवर माने जाते हैं। इन तीनों में से दो का मिल जाना जीत की गारंटी माना जाता है। बिहार की राजनीति में अकेले दम पर बहुमत लाना अब टेढ़ी खीर है। नीतीश कुमार को ये तो मालूम है ही कि बगैर बैसाखी के चुनावों में उनके लिए दो कदम बढ़ाने भी भारी पड़ेंगे। बैसाखी भी कोई मामूली नहीं बल्कि इतनी मजबूत होनी चाहिये तो साथ में तो पूरी ताकत से डटी ही रहे, विरोधी पक्ष की ताकत पर भी बीस पड़े। अगर वो बीजेपी को बैसाखी बनाते हैं और विरोध में खड़े लालू परिवार पर भारी पड़ते हैं और अगर लालू यादव के साथ मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी की ताकत हवा हवाई कर देते हैं। 

हवा का रूख भांपना चाहते हैं 

नीतीश कुमार ऐसे राजनेता हैं जिनको लेकर हमेशा कोई न कोई कयास चलता ही रहता है। कभी कहा जाता है कि वो विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी बन जाएं, इसको लेकर भी चर्चा होती रहती है। प्रशांत किशोर से लेकर शरद पवार व अन्य विपक्षी खेमे के नेता उन्हें मनाने में लगे हैं। नीतीश कुमार वो राजनीतिज्ञ हैं कि उन्हें कोई भेज नहीं सकता। बिहार में नीतीश कुमार सीएम तो बन गए हैं लेकिन उनकी धमक पुरानी जैसी नहीं रह गई है। ऐसे में नीतीश बिहार की सियासत से हटने का संकेत दे कर सियासी हवा का रुख भांपना चाहते हैं।