पीड़ित या शोषित बच्चे और अभिभावक अखबार की सुर्खियों में स्थान पाते: डाक्टर अनिला सिंह आर्य


कभी कभी पुराने कागजों में कुछ ऐसा मिल जाता है जो आज भी प्रासंगिक है ।

आए दिन विद्यालयों की समस्याएँ व वहाँ पनपने वाली विसंगतियाँ और उनसे पीड़ित या शोषित बच्चे और अभिभावक अखबार की सुर्खियों में स्थान पाते हैं ।इससे परे शासन के आदेश सख्त कार्यवाही के ।

मित्रों शिक्षा समाज को न केवल शिक्षित करती है वरन एक सभ्य संस्कृति को जन्म भी देती है।समाज की संरचना को आदर्श एवं शिष्ट बनाती है।

संविधान सभी को शिक्षा का अधिकार देता है ।परंतु जब हम समाज का अवलोकन करते है तो पाते हैं कि समाज को भिन्न भिन्न छोटे और बड़े वर्ग में बाँटने का काम शिक्षा बड़ी ही चतुराई से करती है।

यह आज की बात नहीं भाईयों बहनों आदिकाल से ही ऐसा हो रहा है।यह उसी काल की शर्मनाक घटना है जिस काल में कहा जाता है कि कृष्ण और सुदामा ने  एक साथ शिक्षा ग्रहण की  परंतु गुरु कृपाचार्य अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो इसलिए बिना शिक्षा दिए गुरु बनकर एकलव्य के दाहिने हाथ का अंगूठा गुरुदक्षिणा में कटवा लेते हैं। उसके बाद अंगूठे का क्या किया और एकलव्य के हाथ का क्या हश्र हुआ इतिहास मौन है।यह भी उसी काल की बात है।

सामंतवादी समय में रजवाड़ों के शिक्षण संस्थान विशेष होते रहे हैं वहाँ आम का प्रवेश निषिद्ध होता था ।लेकिन आज लोकतंत्र की तूती बोलती है जिसमें जाति वर्ग लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव वर्जित है।

परंतु वह तो स्पष्ट है।अक्सर ग्रामीणांचल के विद्यालयों में गणित और विज्ञान के शिक्षक की व्यवस्था नहीं होती ।अनेक बार हमने मांग करते हुए प्रश्न किया कि ये छात्र कैसे तकनीकी और चिकित्सीय क्षेत्र में जाएँगे।

हम मानते हैं कि सभी समान योग्यता लेकर जन्म नहीं लेते ।सभी की जन्मजात विशेषताएँ भी समान नहीं होतीं।परंतु जो समाज के ठेकेदार हैं या शासक हैं  या सत्तासीन हैं स्वस्थ समाज की संरचना के प्रति उनको अपने दायित्व का ज्ञान नहीं। 

ऐसा क्यों है इस स्वतंत्र एवं प्रजातंत्रिय राष्ट्र में कि कुछ बच्चे सरकारी विद्यालयों में  शिक्षकों की अवहेलना झेलते हैं अक्सर ताड़ना मिलती है कि इनको कौनसा कलक्टर बनना है यहीं ढोर चराएँगे या मजदूरी करेंगे। दूसरी ओर सुविधाओं में पलता और पढ़ता बचपन ।

समाज के दो रूप बचपन के जो कल का कर्णधार होगा इस प्रकार से क्या हम अलग अलग तरह की जमात को जन्म दे रहें हैं ? सरकार कोई भी हो मित्रों बात संविधान के विधान की है सबको पढ़ना सबको बढ़ना ऐसे कैसे होगा।हम गुदड़ी के लाल का जिक्र करते हैं कीचड़ में कमल खिलता है इसका जिक्र करते हैं ।परंतु सर्व समाज का क्या ।

मित्रों बात बस इतनी है कि बच्चों को समान सम्भावनाएँ मिलनी चाहिए ।यह सम्भव तब हो सकता है जब पब्लिक स्कूलों और सरकारी स्कूलों में समान शिक्षा का वातावरण हो।यह नियम सम्पूर्ण भारत में होना चाहिए ।

मित्रों हो सकता है शायद आपको हमारी बात नागवरा हो परंतु जहाँ शिक्षक बेहतरीन वेतन पातें है वहाँ पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है और जहाँ पब्लिक स्कूलों में अल्पवेतन पाते हैं वहाँ मोटी फीस के अलावा ट्यूशन का चलन है और शिक्षण बेहतर है।सरकारी शिक्षक स्वयं अपने बच्चे अपने स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते ।

समान शिक्षा यदि पूरे भारत में लागू होती है तो नौकरी पेशा परिवारों को भी बहुत लाभ है। 

सोचिए सोचिए सोचिए...........

यह हमने कहा     और आप क्या कहते हैं ?????????  09548728699


डाक्टर अनिला सिंह आर्य