पंचायत चुनाव के चलते बदल सकती हैं यूपी बोर्ड परीक्षा की तारीखें

board exam   file photo

UP Panchayat Election and Board Exam 2021: यूपी पंचायत चुनाव आरक्षण में हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद अब नए सिरे से आरक्षण सूची तैयार होनी है। ऐसे में माना जा रहा है कि पंचायत चुनावों में कुछ देरी हो सकती है। यूपी बोर्ड 10वीं, 12वीं की परीक्षाएं 24 अप्रैल से शुरू होनी हैं लेकिन यदि इससे पहले पंचायत चुनाव नहीं हो पाए तो बोर्ड परीक्षा तारीखों में बदलाव किया जा सकता है।

यूपी बोर्ड परीक्षा की तारीखों को लेकर हिन्दुस्तान ने जब उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा से बात की तो उन्होंने भी बोर्ड परीक्षा की तारीखें बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया। 

उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने कहा, 'अभी हमारी बोर्ड परीक्षा की तारीखें 24 अप्रैल से 12 मई ही हैं। पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन हो रहा है। पंचायत चुनाव की तारीखें तय होने के बाद ही बोर्ड परीक्षा की तारीखों पर बात होगी।'

चूंकि पंचायत व अन्य चुनाव के पोलिंग बूथ स्कूलों में बनाए जाते हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव और बोर्ड परीक्षाएं एक साथ संभव नहीं होंगी। यही कारण है कि पंचायत चुनाव की तारीखें बदलने पर बोर्ड परीक्षा की तारीखें भी बदल सकती हैँ।
 

यूपी पंचायत चुनाव आरक्षण पर कोर्ट का फैसला:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार के 11 फरवरी  2021 के शासनादेश को भी रद्द कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि उक्त शासनादेश लागू करने से आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने अजय कुमार की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया। याचिका में 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी, साथ ही आरक्षण लागू करने के रोटेशन के लिए वर्ष 1995 को आधार वर्ष मानने को मनमाना व अविधिक करार दिये जाने की बात कही गई थी। न्यायालय ने 12 मार्च को अंतरिम आदेश में आरक्षण व्यवस्था लागू करने को अंतिम रूप देने पर रोक लगा दी थी। सोमवार को महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए माना कि सरकार ने वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर गलती की। उन्होंने कहा कि सरकार को वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए सीटों पर आरक्षण लागू करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। याची के अधिवक्ता मोहम्मद अल्ताफ मंसूर ने दलील दी कि 11 फरवरी 2021 का शासनादेश भी असंवैधानिक है क्योंकि इससे आरक्षण का कुल अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक  हो  रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक निर्णय की नजीर देते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रकार के एक मामले में शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार के शासनादेश को रद्द कर चुकी है।