महंगाई की चिंता (सम्पादकीय)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

महंगाई की चिंता

एक बार फिर रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने घटती विकास दर और बढ़ती महंगाई को लेकर चिंता जाहिर की है।

महंगाई की चिंता
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। (फोटो- इंडियन एक्‍सप्रेस)।

हालांकि वे यह भरोसा दिलाना नहीं भूले कि महंगाई पर काबू पाना सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने इस साल आर्थिक विकास दर सात फीसद रहने का अनुमान जताया है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में करीब पौने दो फीसद कम है। उन्होंने माना कि अगर महंगाई ऊंचे स्तर पर बनी रहती है, तो फिर वृद्धि और निवेश में जोखिम बढ़ सकते हैं।

हालांकि रिजर्व बैंक अपनी ब्याज दरों में बदलाव करके कई बार महंगाई पर काबू पाने का प्रयास कर चुका है, मगर उसके अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आए। उल्टा आवास, वाहन, कारोबार आदि के लिए कर्ज लेने वालों पर ब्याज का बोझ और बढ़ गया है। बैंकों से कर्ज लेने के प्रति लोगों में अनुत्साह नजर आने लगा है। यह सच्चाई छिपी नहीं है कि आर्थिक विकास दर में सुस्ती और महंगाई की दर ऊंची बने रहने के पीछे असल वजहें क्या हैं। शक्तिकांत दास ने भी स्वीकार किया कि विनिर्माण और खनन क्षेत्र में खराब प्रदर्शन की वजह से आर्थिक विकास दर को ऊंचा रख पाना कठिन बना हुआ है।


इसके अलावा बढ़ता राजकोषीय और व्यापार घाटा, जीवाश्म र्इंधन के आयात पर निर्भरता आदि के चलते महंगाई पर नियंत्रण कर पाना कठिन है। कृषि क्षेत्र में उपज बढ़ने से जीन्सों की कीमतों में कुछ नरमी जरूर आ सकती है, मगर भारी उद्योग के क्षेत्र में सुस्ती चिंता का सबब बनी हुई है। यह अच्छी बात है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर ने आर्थिक स्थिति को बड़ी साफगोई से बयान किया, मगर लोग उनसे यह नहीं सुनना चाहते कि विकास दर पहले की तुलना में घटेगी और महंगाई का रुख ऊपर की तरफ बना रहेगा। आम जन तो इस समस्या से पार पाना चाहते हैं।

इसके उपाय सोचना रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय का काम है। मगर कई मामलों में दोनों के बीच वैचारिक अंतर देखा जाता है। रिजर्व बैंक आर्थिक विकास दर को लेकर अपना कोई अनुमान पेश करता है, तो वित्त मंत्रालय ठीक उसके उलट या विरोधाभासी आंकड़े पेश कर देता है। वित्तमंत्री अभी तक यह मानने को तैयार नहीं हैं कि भारत में मंदी का वातावरण है। उन्हें भरोसा है कि जल्दी ही देश इस संकट से बाहर निकल आएगा। इसी भरोसे के साथ वे अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करती हैं।

विकास दर को बेहतर बनाने और महंगाई को लोगों की सहनशक्ति के स्तर लाने के लिए जरूरी है कि आयात को कम किया और निर्यात को बढ़ाया जाए। मगर स्थिति यह है कि पिछले सालों में लगातार आयात बढ़ और निर्यात घट रहा है। आत्मनिर्भरता का नारा कामयाब नहीं हो पा रहा, जिसका नतीजा है कि विनिर्माण के क्षेत्र में चिंताजनक स्थिति बनी हुई है। इस समय पूरी दुनिया में मंदी की छाया है, इसलिए विश्व बाजार में भारतीय उत्पाद की खपत बढ़ाना बड़ी चुनौती है।

आयात पर निर्भरता बढ़ती जाने का नतीजा है कि विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से छीज रहा है। विदेशी कर्ज का बोझ काफी बढ़ा है, जिसका ब्याज चुकाना ही भारी पड़ रहा है। ऐसे में लंबे समय तक कच्चे तेल के आयात को लेकर भी चिंता जताई जाने लगी है। फिर भी घरेलू बाजार और घरेलू उत्पाद को प्रोत्साहित करने की योजनाओं पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा। ऐसे में रिजर्व बैंक का केवल चिंता प्रकट करना निराशा पैदा करता है।