जोखिम और नियमन (सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

जोखिम और नियमन

वक्त के साथ बदलती दुनिया में आज आधुनिक तकनीक रोजमर्रा की जिंदगी में निर्भरता का मामला बनती जा रही है।

जोखिम और नियमन
ऐसे तमाम काम हैं, जो इंटरनेट या डिजिटल माध्यम की वजह से पहले के मुकाबले काफी आसान हुए और अब यह आम लोगों की जरूरत भी बन गए हैं। लेकिन इसके साथ यह भी होता गया कि इंटरनेट या इससे जुड़ी तकनीकी लोगों पर इस कदर हावी होने लगी है कि उससे आम जीवन कई स्तरों पर प्रभावित हो रहा है।


खासतौर पर बच्चों की दुनिया में बढ़ते खालीपन और एकाकीपन की भरपाई अब डिजिटल गतिविधियों से होने लगी हैं। सवाल है कि आम लोगों और बच्चों तक के बीच इस क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता का दायरा क्या है और वह किस स्तर तक सुरक्षित है! हाल के वर्षों में ऐसे तमाम मामले सामने आए, जिनमें इंटरनेट पर या किसी आनलाइन खेल का हिस्सा बनने वाले लोगों और बच्चों को इसका अंदाजा भी नहीं हुआ कि वे कैसे मानसिक से लेकर आर्थिक जंजाल में फंसते जा रहे हैं और उन्हें इसका भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। ऐसी आनलाइन गतिविधियों को लेकर अब तक ऐसा कोई विस्तृत और ठोस नियमन नहीं रहा है, जिसके सहारे इसकी वजह से मुश्किल में पड़े लोग अपने लिए कोई मदद हासिल कर सकें।

यही वजह है कि सरकार ने अब सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन के लिए एक मसविदा पेश किया है, जिसके तहत स्व-नियामकीय निकाय बनाने का प्रावधान है। साथ ही, अब आनलाइन खेल संचालित करने वाली कंपनियों को सट्टा लगाने की इजाजत नहीं होगी। मसविदे के मुताबिक, अब आनलाइन खेल के प्रतिभागियों के सत्यापन की व्यवस्था करने के साथ ही उन्हें इस तरह के खेलों की लत और वित्तीय नुकसान से बचाने के भी उपाय निकाले जाएंगे।

दरअसल, आम जनजीवन में डिजिटल माध्यम का विस्तार अब जरूरी कामों के समांतर युवाओं और बच्चों की निजी दुनिया में भी जिस तरह हुआ है, उसके कुछ आयाम एक संजाल की तरह जकड़ रहे हैं। मसलन, आनलाइन खेल को लेकर बच्चों के बीच भी जैसा आकर्षण बढ़ा है, वह केवल मनोरंजन की हद तक सीमित नहीं है।

उसमें पैसों की ठगी से लेकर सट्टेबाजी तक के बढ़ते मामलों ने एक नई चिंता पैदा की है। अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि ऐसे मनोरंजन में कोई बच्चा खरीदारी के नाम पर ठगी का शिकार हो गया और उसके परिवार के किसी व्यक्ति के बैंक खाते से बड़ी रकम निकाल ली गई। इसी तरह ऐसे खेलों के दायरे में सट्टेबाजी के मामले भी देखे जा रहे हैं। इसमें ठगी की वजह से खुदकुशी तक की घटनाएं भी सामने आर्इं।

जाहिर है, फिलहाल डिजिटल दायरे में चलने वाले ऐसे खेल पर कोई अंकुश न होने या इसे लेकर सख्त नियम-कायदों के अभाव ने आनलाइन ठगी करने वालों को एक तरह से खुला मैदान मुहैया कराया है, जिसके शिकार बच्चे और अन्य साधारण लोग हो रहे हैं। इसलिए सरकार ने इस क्षेत्र को एक नियमन के दायरे में लाने का जो इरादा जताया है, वह वक्त का तकाजा है। मगर सच यह भी है कि डिजिटल माध्यमों के व्यापक और कई अर्थों में असीमित दायरे के बीच साइबर अपराधों का संजाल भी विस्तृत होता गया है।

इसलिए आनलाइन खेलों की दुनिया में इसकी पैठ की आशंका पहले से थी। विडंबना यह है कि जब कोई समस्या गंभीर होकर जटिल रुख अख्तियार कर लेती है तब जाकर सरकार कोई कदम उठाती है। आम जनजीवन में डिजिटल माध्यम और तकनीक का दखल बढ़ रहा है। लेकिन अगर इस पर निर्भरता इंसानी जीवन, संवेदनाओं और मूल्यों को नुकसान पहुंचाने लगे, तब इसके इस्तेमाल को लेकर सचेत होने की जरूरत है।