हादसों का शहर(सम्पादकीय)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

हादसों का शहर

नए साल की पूर्व संध्या पर देर रात को दिल्ली में एक और हृदय विदारक घटना हो गई।

हादसों का शहर
कार दुर्घटना में मारी गई युवती

एक कार ने स्कूटी से जा रही लड़की को टक्कर मारी, लड़की कार के नीचे फंस गई और चालक को इसकी भनक तक न लगी। नतीजा, कार उस लड़की को कई किलोमीटर तक घसीटती रही और फिर आखिरकार लड़की का निर्वस्त्र मृत शरीर सड़क पर पड़ा पाया गया। दिल्ली पुलिस इसे एक दुर्घटना बता रही है।


उसका कहना है कि कार में चूंकि इतना तेज संगीत चल रहा था और उसमें बैठे लोग नशे में थे, इसलिए उन्हें पता ही नहीं चल पाया कि उनकी कार के नीचे कोई फंसा हुआ घिसट रहा है। शुरू में आशंका जताई जा रही थी कि आरोपियों ने लड़की के साथ दुर्व्यवहार किया होगा और फिर उसे जान से मारने का यह तरीका निकाला होगा। मगर पुलिस ने ऐसी किसी मंशा से इनकार किया है।

हालांकि पुलिस अभी इस घटना की गहराई से जांच कर रही है। इसलिए घटना से उठे कुछ सवालों के जवाब स्पष्ट नहीं हैं। इस घटना का एक प्रत्यक्षदर्शी भी है, जिसने पुलिस को फोन पर सूचना दी। जब उसने देखा कि एक कार लड़की को घसीटती ले जा रही है, तो वह उसका पीछा करता रहा। उसने कई बार पुलिस को फोन किया, मगर पुलिस मौके पर नहीं पहुंची।

सवाल है कि सूचना मिलने के करीब पौन घंटे तक पुलिस वहां क्यों नहीं पहुंची। नए साल पर शराब पीकर हुड़दंग करने, बेढंगे तरीके से गाड़ी चलाने वालों पर नजर रखने के लिए दिल्ली में अतिरिक्त पुलिस तैनात की गई थी। सड़कों पर जगह-जगह नाके लगाए गए थे। गश्ती वाहन चौकन्ने थे। फिर कैसे इस तरह तथाकथित नशे में धुत कार सवार लड़की को घसीटते हुए कई किलोमीटर तक ले जा पाए और सूचना मिलने के बावजूद पुलिस को उनका पीछा करना जरूरी नहीं लगा।

यह भी कि कैसे कि टक्कर मारने के बाद भी चालक को पता नहीं चला। विचित्र है कि एक लड़की उनकी गाड़ी के नीचे फंस कर घिसटती रही और गाड़ी में सवार किसी को भी कुछ असामान्य कैसे नहीं महसूस हुआ। फिर, अगर लड़की सचमुच कार के नीचे फंस गई थी और घिसटने से उसके सारे कपड़े फट गए, तो एक कपड़ा कैसे इतना मजबूत साबित हुआ कि दूर तक लड़की को बांधे रहा। इस घटना की ठीक से जांच हो, तो शायद इन सवालों के जवाब मिल सकें।

पिछले कुछ सालों से दिल्ली में एक के बाद एक जघन्य अपराध सामने आए हैं। कुछ ही दिनों पहले दिल्ली के छावला इलाके में जिस तरह एक लड़की से बलात्कार और फिर बड़े अमानवीय ढंग से उसकी हत्या कर दी गई थी, उसे लोग भूले नहीं हैं। रास्ता चलती किसी लड़की को उठा लेना और उससे बदसलूकी करना जैसे आपराधियों के लिए सामान्य बात हो गई है। इन सबके पीछे कहीं न कहीं पुलिस और कानून का भय समाप्त हो जाना है।

पुलिस के पास शायद ही इस बात का कोई माकूल जवाब है कि नए साल की पूर्व संध्या पर उसके कड़ी निगरानी और चौकसी के दावे का क्या हुआ कि यह घटना घट गई। जब घोषित चौकसी के बावजूद ऐसी घटनाएं दिल्ली में घट जाती हैं, तो सामान्य दिनों में पुलिस की तत्परता और महिला सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्धता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब पुलिस अपने दायित्वों के प्रति लापरवाह होती है, तो अपराधी इसी तरह बेखौफ घूमते हैं।