क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
(सम्पादकीय)
पारिस्थितिकी संरक्षण
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और बढ़ती पर्यावरणीय चिंताओं के बीच धरती और खासकर मानव जीवन को बचाने के लिए लगातार विमर्श चल रहे हैं।
![पारिस्थितिकी संरक्षण](https://www.jansatta.com/wp-content/uploads/2022/12/world-environment.jpg?w=1024)
इसके तहत बनी सहमति इस दशक के अंत तक विश्व भर में तीस फीसद भूमि, तटीय इलाकों और अंतर्देशीय जलक्षेत्र के संरक्षण का लक्ष्य पूरा कर लेगी। साथ ही खाद्यान्न की बर्बादी में भी पचास फीसद कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है। जाहिर है, दुनिया की बढ़ती आबादी और जरूरतों के बीच विकास के विभिन्न प्रारूपों की वजह से धरती पर असंतुलन न हो, इसके लिए पहले से ही जरूरी संसाधनों का संरक्षण अगर नहीं किया गया, तो इसका खमियाजा सबसे ज्यादा मनुष्य को ही उठाना पड़ेगा।
कहा जा सकता है कि इस मसले पर बनी सहमति भविष्य के संकट से बचने की दिशा में एक जरूरी कवायद है। मगर यह देखने की बात होगी कि इस पर वास्तव में अमल किस स्तर तक हो पाता है। दरअसल, काप-15 की अध्यक्षता कर रहे चीन की ओर से एक मसविदा जारी किया गया, जिसमें 2030 तक जैव विविधता के लिए अहम माने जाने वाली कम से कम तीस फीसद भूमि और इसके साथ-साथ जल के संरक्षण का भी आह्वान किया गया था।
फिलहाल सत्रह फीसद भूमि और दस फीसद समुद्री क्षेत्र संरक्षित दायरे में माने जाते हैं। मसविदे में पृथ्वी पर विभिन्न लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के गंभीर और घातक असर के साथ प्रदूषण को कम करने के लिए की जाने वाली कोशिशों में और तेजी लाने की बात भी कही गई है। स्वाभाविक ही विकासशील देशों के सामने इस दिशा में ठोस पहल करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती धन की होगी। मगर इस सम्मेलन में सहमति बनी है कि दुनिया में भूमि और जल संरक्षण सहित जैव विविधता को बचाने के लिए विकासशील देशों को धन मुहैया कराने के जरूरी उपाय किए जाएंगे।
निश्चित रूप से इसमें जैव विविधता को बचाने के लिए एक तरह से समावेशी दृष्टिकोण की जगह बनाई गई है। धरती पर सभ्यता के बदलते दौर और उसमें तमामों जीवों और प्रकृति के उपादानों का सह-अस्तित्व खुद मनुष्य के जीवन के लिए कितना अनिवार्य रहा है, यह एक जगजाहिर तथ्य है। लेकिन मनुष्य जीवन के बदलते स्वरूप, प्राकृतिक उतार-चढ़ाव और इसके समांतर विकास के नाम पर चलने वाली गतिविधियों की वजह से बहुत सारे जीव-जंतु या तो विलुप्त हो गए या फिर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं।
सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर और पारिस्थितिकी चक्र में परस्पर गुंथे हुए हैं। ऐसे में अगर भविष्य में धरती पर जैव विविधता को बचाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो एक के अभाव में दूसरे का बचना मुमकिन नहीं होगा। इसमें स्वाभाविक ही भूमि और जल का संरक्षण प्राथमिक होगा। इसके अलावा, भोजन की बर्बादी को रोकना भी इसी के समांतर महत्त्व का मुद्दा है। मौजूदा समय में जिस तरह पानी के अभाव से लेकर प्रदूषण तक की समस्या पैदा हो गई है, उसमें संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (काप-15) में बनी सहमति निस्संदेह बहुत महत्त्वपूर्ण है।