शोर की मार (सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

शोर की मार

वायु प्रदूषण को लेकर लंबे समय से जताई जा रही चिंताओं के बीच अब इतना जरूर हुआ है कि बड़ी तादाद में लोग इस मसले पर जागरूक हुए हैं।

और इससे बचने के उपायों को लेकर सचेत रहते हैं। मगर प्रदूषण के अन्य स्वरूपों के प्रति अभी वैसी समझ नहीं बन पाई है। खासकर तेज स्वर में बजने वाले यंत्र आसपास के माहौल को अशांत करने और व्यक्ति की सेहत पर क्या असर डाल सकते हैं, इस बारे में शायद ही कोई फिक्र करता है।

हालांकि ध्वनि प्रदूषण को लेकर अक्सर सतर्क किया जाता और इससे बचने की सलाह दी जाती है। इसे नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश और नियम-कायदे भी हैं, लेकिन इसके प्रति अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखती है। शायद यही वजह है कि दिनोंदिन ध्वनि प्रदूषण की समस्या गहराती जा रही है। इसके मद्देनजर राजधानी दिल्ली में सरकार ने शोर से होने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए सख्ती बरतने का फैसला किया है। इस संदर्भ में दिल्ली के पर्यावरण विभाग ने अपने एक आदेश में कई संबंधित महकमों को राष्ट्रीय राजधानी में ध्वनि प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों पर पूरी तरह रोक लगाने को कहा है।

गौरतलब है कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने पिछले साल पच्चीस जून को इस मामले में स्पष्ट निर्देश जारी किया था, जिसके तहत ध्वनि नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाए जाने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियमों के अनुसार अधिकारियों की इजाजत के बिना लाउडस्पीकर या सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली का उपयोग नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा, सभागार, सम्मेलन कक्ष, समुदाय और विवाह समारोह आदि के लिए निर्धारित बंद परिसरों को छोड़ कर लाउडस्पीकरों का उपयोग रात दस बजे से सुबह छह बजे के बीच नहीं किया जा सकता। दरअसल, ये नियम पहले से लागू हैं। लेकिन यह छिपा नहीं है कि कभी विवाह तो कभी जागरण या किसी अन्य कारण से आयोजित समारोहों में लाउडस्पीकर आदि जिस तरह और जितनी तेज आवाज में बजाए जाते हैं, वे ध्वनि प्रदूषण के पैमानों को आमतौर पर धता बताते रहते हैं।

साथ ही सड़कों पर चलने वाले वाहन भी कई बार रात में नाहक तेज स्वर में भोंपू बजाते हैं। वह कोई संकेतक कम, परेशानी की वजह ज्यादा होता है। जबकि एक कुशल वाहन चालक केवल गाड़ी की बत्तियों की रोशनी के संकेतों के सहारे ही अपना रास्ता तय करता है।

शायद ही इस बात का ध्यान रखने की कोशिश की जाती है कि ऐसे शोर से आसपास के लोगों को कितनी असुविधा हो रही होगी। लेकिन यह केवल असुविधा का मामला नहीं है। तेज या तीखे स्वर कान में पड़ने से कई शारीरिक बीमारियां और मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। इसके असर से व्यक्ति बहरेपन, यादाश्त और एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ सकता है।

ध्वनि प्रदूषण अगर उच्च और असुरक्षित स्तर तक है तो यह मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षियों और पेड़ों आदि को भी नुकसान पहुंचाता है। इस स्तर के खतरे के बावजूद लोग अगर इस समस्या के प्रति लापरवाही बरतते हैं तो यह एक तरह से आत्मघाती स्थिति है। इसलिए ध्वनि प्रदूषण को लेकर सरकार ने अगर सख्ती दिखाई है, तो इसे एक जरूरी कदम माना जा सकता है। मगर असली तकाजा ऐसे निर्देशों को सख्ती से लागू करने का है। हालांकि अगर लोग अपने स्तर पर ही जागरूक हों और अपनी सेहत को सुरक्षित रखने का ही खयाल रखें, तो खतरनाक ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है।