उत्साह का निवेश(सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

उत्साह का निवेश

अर्थव्यवस्था को अपेक्षित गति में लौटा लाने के लिए मंद पड़े क्षेत्रों में निवेश पर जोर दिया जाता रहा है। कोरोना की वजह से लंबे समय तक बंदी रहने की वजह से कई क्षेत्रों में अभी तक कारोबारी रफ्तार नहीं लौट पाई है। इसकी वजह से रोजगार सृजन में भी दिक्कतें पैदा हो रही हैं।

उत्साह का निवेश
निर्माण यानी आवासीय परियोजनाओं में भी सुस्ती होने की वजह से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। हालांकि कोरोना से पहले ही बेनामी संपत्तियों के खिलाफ कड़ाई, भवन निर्माण सामग्री की कीमतें बढ़ने आदि के चलते आवासीय परियोजनाओं में सुस्ती आ गई थी। बहुत सारी परियोजनाएं लटक गई थीं।


कोरोना की बंदी से उस पर दोहरी मार पड़ी। तब सरकार ने घोषणा की थी कि लटकी हुई आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिए वह दस हजार करोड़ रुपए का एक कोष बनाएगी और उसमें पैसे डाले जाएंगे। इसके पहले चरण में पांच हजार करोड़ रुपए डाले गए थे, जिससे अटकी हुई परियोजनाओं को कुछ गति मिल सकी थी। अब इस कोष में बाकी के पांच हजार करोड़ रुपए डाल दिए गए हैं। इससे स्वाभाविक ही आवासीय परियोजनाओं से जुड़े उद्योग में उत्साह बना है।

निर्माण के क्षेत्र में रोजगार सृजन की बड़ी संभावना होती है। इसलिए जब इस क्षेत्र में मंदी आती है, तो बहुत सारे निर्माण मजदूरों और दूसरे कामों से जुड़े लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो जाता है। इसका असर स्वाभाविक रूप से अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। अब अटकी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को गति मिलने से एक तरफ जहां बहुत सारे लोगों के लिए रोजगार के अवसर फिर से खुलेंगे, वहीं उन निवेशकों को भी राहत मिलेगी, जिन्होंने बैंकों से कर्ज लेकर वर्षों से आशियाने का सपना संजो रखा है।

महंगाई रोकने के मकसद से जिस तरह थोड़े-थोड़े अंतराल पर बढ़ोतरी कर रेपो रेट में करीब ढाई फीसद का इजाफा किया जा चुका है, उससे उन लोगों पर सबसे अधिक बोझ पड़ रहा है, जिन्होंने बैंकों से आवास के लिए कर्ज ले रखा है। एक तो उन्हें समय पर घर न मिल पाने की वजह से किराए के घर में रहना पड़ रहा है, दूसरे बैंक की किस्त अधिक चुकानी पड़ रही है।

इसके अलावा आवासीय परियोजनाएं जैसे-जैसे लटकती जाती हैं, उनके निर्माण का खर्च भी बढ़ता जाता है। इस तरह खरीदार को शुरुआती तय कीमत से अधिक कीमत चुकानी पड़ जाती है।

अच्छी बात है कि सरकार ने रुकी हुई आवासीय परियोजनाओं को पूरा कराने के लिए पूंजी उपलब्ध कराई है। अभी यह वित्तीय मदद एक सौ सत्ताईस अटकी हुई परियोजनाओं को मुहैया कराई जा रही है। स्वाभाविक ही इन परियोजनाओं का संचालन कर रही कंपनियों को काफी राहत मिल सकेगी, क्योंकि पूंजी के अभाव में वे अपने काम को आगे नहीं बढ़ा पा रही थीं।

इसके बाद दो सौ छियासी अन्य परियोजनाओं का भी आकलन किया जा रहा है, जिन्हें वित्तीय मदद की जरूरत है। इसके लिए निजी और सार्वजनिक, सभी तरह के बैंकों को आगे बढ़ने को कहा गया है। हालांकि यह कोई पहला क्षेत्र नहीं है, जिसमें वित्तीय मदद के लिए सरकार ने बैंकों को प्रोत्साहन दिया है।

कोरोना के बाद बड़े उद्योगों और एमएसएमई को भी इसी तरह का राहत प्रस्ताव दिया गया था, मगर उन्हें कारोबार में तेजी नजर नहीं आई, इसलिए वे उस प्रस्ताव का लाभ उठाने को आगे नहीं आए। आवासीय परियोजनाओं के मामले में भी ऐसा न हो, इसके लिए ध्यान रखना होगा।