ईटीसी की नयी रिपोर्ट : ग्लोबल वार्मिंग रोकने के ज़रूरी कदमों की पहचान

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

सीओपी26 ( संयुक्त राष्ट्र के २६ वें  जलवायु वार्ता महासम्मेलन) के  संकल्पों को अगर पूरी तरह से जमीन पर उतार दिया जाए तो भी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग  में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित  नहीं कर सकेगी। अगर दुनिया इस लक्ष्य को हासिल करने का 50% भी मौका हासिल करना चाहती है तो सीओपी27 को कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने और वनों का कटान रोकने के लिए और भी ज्यादा मजबूत अमल का रास्ता तैयार करना होगा। सीओपी27 से पहले आर्थिक और राजनीतिक हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। इसके अलावा कोविड-19 महामारी और आपूर्ति श्रृंखला के ध्वस्त होने के परिणामस्वरूप पड़ने वाले दबाव के बाद दुनिया के अनेक क्षेत्रों के लोग यूक्रेन में हो रहे युद्ध के कारण बिजली और भोजन की रिकॉर्ड ऊंची मतों से जूझ रहे हैं। साथ ही साथ इसकी वजह से अनेक देशों पर आसमान छूती महंगाई,गिरती विकास दर और मंदी के खतरे भी मंडराने लगे हैं।
इस बात का भी खतरा है कि ऊर्जा सुरक्षा और अल्पकालिक आर्थिक दबाव तथा भू-राजनीतिक
तनाव साथ मिलकर राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय ध्यान को जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दों से
भटका देंगे। मगर बढ़ी हुई आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी कई कदम कम कार्बन उत्सर्जन वाली
अर्थव्यवस्था की तरफ तेजी से बढ़ने में मददगार भी साबित हो सकते हैं।  वैश्विक भू-राजनीतिक और
व्यापक आर्थिक बाधाओं के बावजूद जलवायु प्रतिबद्धताओं पर प्रगति होने के कुछ प्रमाण
मौजूद हैं।


ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को सामने रखना
कुछ लोग यह कह रहे हैं कि क्या वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक
सीमित रखना अब भी संभव है? हालांकि डेढ़ डिग्री सेल्सियस से आगे होने वाली हर 0.1 डिग्री
सेल्सियस की वृद्धि से जलवायु परिवर्तन के बहुत नुकसानदायक प्रभाव होंगे। दुनिया को इस
लक्ष्य पर नजर बरकरार रखनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि डेढ़ डिग्री सेल्सियस से
ऊपर तापमान जाने की जितनी कम संभावना हो उतना बेहतर होगा। अगर दुनिया को ग्लोबल
वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का आधा भी मौका चाहिए तो उसे सीओपी26
में जताए गए संकल्पों पर पूरी तरह से अमल करने के साथ-साथ सीओपी27 में व्यक्त की जाने
वाली वचनबद्धताओं पर भी मुस्तैदी से कार्रवाई करनी होगी।
एनर्जी ट्रांजिशन कमीशन के अध्यक्ष अडायर टर्नर ने कहा वर्तमान में वैश्विक स्तर पर मौजूद
आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद हमें जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न वैश्विक
संकट पर ध्यान केंद्रित रखना होगा। वैश्विक तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस से आगे हर 0.1
डिग्री की बढ़ोत्तरी से बहुत बड़े पैमाने पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेंगे। बेहतर ऊर्जा सुरक्षा के
निर्माण के लिए जरूरी अनेक कदम अधिक सतत तथा स्थाई निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था में
रूपांतरण में तेजी लाने का काम भी कर सकते हैं। दुनिया को अगर ग्लोबल वार्मिंग को सीमित
करने के आधे अवसर भी चाहिए तो उसे न सिर्फ सीओपी26 में जताए गए संकल्पों पर पूरी
तरह से अमल करना होगा बल्कि सीओपी27 में जताई जाने वाली वचनबद्धताओं पर भी
मुस्तैदी से कार्रवाई करनी होगी।
तेजी से तरक्की के लिए प्राथमिकता वाले तीन क्षेत्र
ईटीसी की नई रिपोर्ट  : एक्सीलरेटिंग एक्शन टू की 1.5 डिग्री सेल्सियस ऑन
द टेबल में तीव्रगामी प्रगति के लिए प्राथमिकता वाले तीन क्षेत्रों को रेखांकित किया गया है, जो
इस प्रकार हैं-
1- महत्वाकांक्षा के अंतर को पाटें- अधिक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों के माध्यम से महत्वाकांक्षा
के इस अंतर को खत्म करें। इसके लिए नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस एनडीसी को और
मजबूत करें। एनडीसी ऐसे होने चाहिए जो किसी देश विशिष्ट कार्रवाइयों के साथ-साथ ग्लास्गो
तथा उसके बाद व्यक्त किये गए क्षेत्र आधारित संकल्पों के संभावित प्रभावों की झलक भी
दिखाएं। 
2- क्रियान्वयन में होने वाली खामियों को खत्म करें- लक्षित नीतियों और कंपनी द्वारा की जाने
वाली कार्रवाइयों से क्रियान्वयन की कमियों को दूर करें ताकि छह महत्वपूर्ण क्षेत्रों (मीथेन, वनों
का कटान, बिजली, सड़क परिवहन, भारी उद्योग तथा ऊर्जा दक्षता) में वास्तविक प्रगति को आगे
बढ़ाया जा सके।
3- वित्तीय अंतर को खत्म करें- खासकर मध्यम और कम आय वाले देशों के प्रदूषणकारी तत्वों
के उत्सर्जन को शीर्ष पर पहुंचा कर जहां तक हो सके उसे कम करने में मदद के लिए वित्तीय
अंतर को खत्म किया जाए। कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से जल्द खत्म करने और
वनों का कटान रोकने तथा नीतिगत और औद्योगिक स्तर पर पर्याप्त कदमों से वंचित परिदृश्य
में कार्बन डाइऑक्साइड को खत्म करने के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 300 बिलियन डॉलर की
जरूरत होगी। यह वित्तपोषण कारपोरेट की तरफ से स्वैच्छिक कार्बन बाजारों, लोकोपकारी पूंजी,
हाइब्रिड भुगतान और निवेश साधनों तथा विकसित देशों से विकासशील देशों में जलवायु से
संबंधित वित्तपोषण के अंतरसरकारी हस्तांतरण के माध्यम से किया जाना चाहिए। 
टर्नर ने कहा "विकसित देशों को ब्राजील के चुनाव में लूला को चुने जाने से पैदा हुए मौके का
भरपूर फायदा उठाना होगा। उन्हें उसे वित्तीय मदद देनी चाहिए ताकि ब्राजील अपने यहां वनों के

कटान को तेजी से रोक सके। यह एक ऐसा सौदा है जिस पर सीओपी27 में मुहर लगने का
इंतजार है।"
सीओपी26 की वचनबद्धताओं पर प्रगति हुई, मगर 'महत्वाकांक्षा का अंतर' अब भी बाकी
पिछले साल नवंबर में ग्लास्गो में हुई सीओपी26 शिखर बैठक में जताई गई वचनबद्धता और
संकल्पों पर सकारात्मक प्रगति जरूर हुई है लेकिन देशों द्वारा जताई गई मौजूदा प्रतिज्ञाएं
(एनडीसी) और संकल्पबद्धताएं अब भी दुनिया को वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री
सेल्सियस तक सीमित रखने के रास्ते पर लाने में नाकाम रही हैं।
दरअसल सीओपी26 में देशों द्वारा जताई गई वचनबद्धताओं और नेटजीरो के लक्ष्यों ने दुनिया
को वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक का सामना करने की राह पर
डाला है। हालांकि उसके बाद से 24 देशों ने अपने एनडीसी को और बेहतर बनाकर पेश किया है।
सिर्फ ऑस्ट्रेलिया ने ही वर्ष 2030 तक एमिशन गैप को खत्म करने के लिए कुछ ठोस कदम
उठाए हैं। 
सीओपी26 ने क्षेत्रवार समझौतों की एक श्रंखला भी प्रस्तुत की है। इनमें देशों तथा निजी
प्रतिभागियों द्वारा वनों के कटान, मीथेन और कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म
करने की संकल्पबद्धताएं भी शामिल हैं। अगर इन पर पूरी तरह से अमल किया गया तो
दुनिया ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 1.8 डिग्री सेल्सियस तक ही सीमित रखने के रास्ते पर
आगे बढ़ पाएगी। हालांकि इनमें से ज्यादातर वचनबद्धताओं को औपचारिक रूप से देश की
प्रतिबद्धताओं में तब्दील करना अभी बाकी है और 2030 तक वनों की कटान को खत्म करने
जैसे महत्वपूर्ण समझौते धन की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। 
सकारात्मक प्रगति होने के बावजूद अब भी क्रियान्वयन में एक अंतर बाकी है
नीति तथा प्रौद्योगिकी में उत्साहजनक विकास के बावजूद दुनिया बताए गए लक्ष्यों और जमीन
पर उनके अमल के बीच अंतर का सामना कर रही है
इस साल यूरोपीय संघ अमेरिका और चीन ने उल्लेखनीय नीतिगत कदम उठाए हैं जिससे
क्रियान्वयन में अंतर को भरा जाना शुरु हुआ है। इन देशों ने आरई पावर ईयू पैकेज, यूएस
इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट तथा चीन ने 14 में पंचवर्षीय योजना में कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य
(जिनके क्रियान्वयन की बहुत संभावनाएं हैं) निर्धारित किए हैं। 
डेढ़ डिग्री सेल्सियस की उम्मीद को जिंदा रखने के लिए क्या किया जा सकता है?
दुनिया में डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लिए कार्बन बजट में कमी हो रही है इसलिए इस दिशा में
काम करने का वक्त हाथ से निकलता जा रहा है। 

विकासशील देशों और चीन के संकल्पों तथा उनके क्रियान्वयन को लेकर अच्छी खबर होने के
बावजूद मौजूदा आंकड़े ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की उम्मीद
नहीं जगाते। संपूर्ण क्रियान्वयन होने के बावजूद ऐसी संभावना है कि विकसित देश, चीन और
भारत ही डेढ़ डिग्री सेल्सियस की उम्मीद को जिंदा रखने के लिए जरूरी कार्बन बजट की सीमा
को पार कर जाएंगे। 
उभरती हुई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वैश्विक उत्सर्जन में कमी लाने और आर्थिक विकास
के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए यह जरूरी होगा कि सभी देश खासकर विकसित अर्थव्यवस्था
और चीन उत्सर्जन शमन संबंधी अपने संकल्पों को न सिर्फ पूरा करें बल्कि बेहतर होगा कि वह
इससे ज्यादा हासिल कर लें या फिर वह अपने उत्सर्जन कटौती संबंधी संकल्पों को और बढ़ा
लें। ऐसा करने से प्रौद्योगिकीय विकास होगा जिससे पूरी दुनिया में शमन संबंधी खर्च में कमी
आएगी। 
ब्रिटेन के लिए यूएन क्लाइमेट चेंज हाई लेवल चैंपियन नाईजेल टॉपिंग ने कहा "अगर दुनिया
को ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का कोई मौका बाकी
रखना है तो इस सिलसिले में ईटीसी ने देशों और कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण कदमों को
रेखांकित किया है। रेस टू रेसिलियंस और रेस टू जीरो अभियान वैश्विक नेतृत्व को मजबूत
करने के केंद्र में हैं और ईटीसी की सिफारिशें यह दिखाती हैं कि सहयोग की शक्ति के माध्यम
से हमें वापस पटरी पर लाना तकनीकी और आर्थिक रूप से संभव है। रफ्तार पकड़ना एक चीज
है लेकिन अब यह बात निर्णायक हो चुकी है कि हम उस चीज की सुपुर्दगी के लिए तेजी से
काम करें जो वर्ष 2020 के शुरू में छूट गई थी।"
वैसे तो सभी क्षेत्रों में महत्वाकांक्षी नीतिगत कदम उठाने से मार्ग प्रशस्त हो सकता है लेकिन
हमने कार्रवाई के दो प्रमुख अतिरिक्त वाहकों की पहचान की है :
 कृषि वनों और अन्य भूमि उपयोग के क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन से निपटने की
जरूरत और खास तौर से मीथेन उत्सर्जन और लाल मांस की खपत के परिणाम स्वरूप
होने वाली वनों की कटान से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड से निपटने की जरूरत है।
ऐसा करने के लिए या तो हमें अपना आहार बदलना होगा या फिर प्रौद्योगिकीय
बदलाव करने होंगे जैसे कि सिंथेटिक मांस तैयार करना।
 और कोयले की खपत को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने, वनों की कटाई रोकने और
बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए वित्तपोषण में बड़े पैमाने पर तेजी
लाने की जरूरत है। 
एनर्जी ट्रांजीशंस कमीशन के उपनिदेशक माइक हेम्सली ने कहा "सीओपी26 शिखर बैठक के बाद
एक वर्ष के दौरान राष्ट्रीय प्राथमिकताएं जलवायु परिवर्तन के गंभीर मुद्दे से दूर होती नजर
आई। वहीं, इस मामले में जमीन पर हुई प्रगति का जायजा लेने पर एक मिली जुली तस्वीर
सामने आती है। अक्षय ऊर्जा उपकरणों और इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में काफी तेजी आई

है। इसके अलावा भारी उद्योगों तथा ऊर्जा दक्षता के क्षेत्रों में भी आशाजनक प्रगति हुई है।
हालांकि सिर्फ इतना ही काफी नहीं है। मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने, कोयले के
इस्तेमाल को जल्द से जल्द चरणबद्ध ढंग से खत्म करने और वनों के कटान को रोकने की
फौरन जरूरत है।"
जहां अधिक आमदनी वाले तथा विकासशील देशों दोनों के ही पास अपने-अपने यहां होने वाले
प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए और भी काफी कुछ करने की गुंजाइश है,
वहीं दो और विकल्प हैं जो इसकी प्रगति को तेज कर सकते हैं :
1- कम आमदनी वाले देशों को प्रौद्योगिकी और नीति की तुलना में अधिक तेजी से आगे बढ़ने
में सक्षम बनाने के लिए निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों से निवेश और भुगतान के रूप में धन का
प्रवाह किया जाए।
2- उत्सर्जन में तेजी से गहरी कटौती करने के साथ-साथ तीव्रता से स्केलिंग और नकारात्मक
उत्सर्जन समाधानों का बढ़ा हुआ योगदान जरूरी है। जैसा कि ईटीसी द्वारा 'माइंड द गैप : हाउ
कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल्स मस्ट कंप्लीमेंट डीप कार्बोनाइजेशन टू कीप 1.5 डिग्री सेल्सियस
अलाइव' में रेखांकित किया गया है। 
रीन्यू पावर के अध्यक्ष संस्थापक एवं सीईओ सुमंत सिन्हा ने कहा "यह जरूरी है कि दुनिया के
तमाम देश आगे बढ़कर जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौतियों का मिलकर सामना करें।
उभरते हुए विकासशील देशों में प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने और आर्थिक
विकास संबंधी आवश्यकताओं जैसे दोहरे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए फौरन कदम उठाना जरूरी है।
धरती को फायदा पहुंचाने वाले वास्तविक अर्थव्यवस्था रूपांतरण को सुनिश्चित करने के लिए
सही नीतिगत वातावरण द्वारा घोषित शून्य कार्बन वाली बिजली को तेजी से प्रसार देना जरूरी
है।
पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिये विजिट करें : https://www.energy-
transitions.org/publications/degree-of-urgency/ [यह लिंक बुधवार 2 नवंबर को 00:01 यूकेटी
से लाइव होगा]
सम्‍पादक के लिये नोट
यह रिपोर्ट एनर्जी ट्रांजीशन कमीशन का एक सामूहिक नजरिया गढ़ते हैं। ईटीसी के सदस्‍य इस
रिपोर्ट में दिये तर्कों के सामान्‍य जोर को मान्‍यता देते हैं मगर इसे हर निष्‍कर्ष या सिफारिश पर
रजामंदी के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये। उन संस्‍थानों, जिनसे कमिश्‍नर जुड़े हुए हैं उनसे यह
नहीं कहा गया है कि वे रिपोर्ट