भागीदारी का तंत्र(सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

भागीदारी का तंत्र

भागीदारी का तंत्र
सांकेतिक फोटो।

खासकर जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य की मूल निवासी महिलाओं को तीस फीसद आरक्षण दिए जाने के एक शासनादेश पर रोक लगा दी थी तब इस विशेष अधिकार को लेकर बहस खड़ी हुई थी। उच्च न्यायालय के उस फैसले में बाहरी राज्यों के अभ्यर्थियों की आपत्ति को एक तरह से स्वीकार्यता मिली थी कि कोई भी राज्य सरकार जन्म और स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती।


हालांकि इस फैसले के खिलाफ उत्तराखंड सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी कि स्थानीयता के आधार पर राज्य की महिलाओं को आरक्षण दिया जाना सही है। मगर अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा कर एक तरह से उत्तराखंड सरकार के पक्ष को सही ठहराया है। जाहिर है, अब एक बार फिर राज्य के अलग-अलग महकमों में वहां की मूल निवासी महिलाओं को तीस फीसद आरक्षण मिल सकेगा। मगर इसके साथ ही उत्तराखंड से बाहर की अभ्यर्थियों के लिए वहां अवसरों का दायरा छोटा होगा।

दरअसल, देश भर में अलग-अलग राज्यों में स्थानीय निवासियों के लिए नौकरियों में कुछ खास हिस्सा आरक्षित किए जाने का मसला अब एक बहस की शक्ल ले रहा है। मुख्य दलील यह है कि देश में अगर राज्यों में स्थानीयता को आरक्षण का आधार बनाया जाता है तो यह संविधान में दर्ज प्रावधानों का उल्लंघन है। इसलिए किसी भी राज्य सरकार को नौकरियों में आरक्षित श्रेणी तय करने के लिए जन्म और स्थायी निवास को आधार नहीं बनाना चाहिए।

इस तर्क के संदर्भ में देखें तो उत्तराखंड में मूल निवासी की पहचान वाली महिलाओं को आरक्षण दिए जाने का मामला है। लेकिन कुछ अन्य राज्यों में स्थानीय या स्थायी निवास के आधार पर नौकरियों में अवसर आरक्षित करने को लेकर पहल हुई, कहीं लागू किया गया तो कहीं इस पर बहस हुई। पिछले कुछ सालों से यह देखा गया है कि राज्यों की नौकरियों में स्थानीय आबादी के लिए सीटें आरक्षित करने की कोशिश ने जोर पकड़ा है। हालांकि राष्ट्रीय संदर्भों में इसे लेकर अक्सर सवाल भी उठते रहे हैं कि एक देश का नागरिक होने के नाते किसी व्यक्ति के लिए उनके मूल राज्य से बाहर के राज्यों में अवसरों को सीमित नहीं किया जाना चाहिए।

अब उत्तराखंड में स्थानीय महिलाओं को तीस फीसद आरक्षण दिए जाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संभव है कि स्थानीय आबादी के लिए नौकरियों में अवसर आरक्षित करने को लेकर एक नया आधार मिले। जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में महिलाओं को तीस फीसद आरक्षण देने के मामले में मूल निवासी होने के आधार को सही माना है, तो यह अन्य राज्यों के लिए भी नजीर बन सकता है।

हालांकि यह देखने की बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्या स्थानीयता के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण से बाहरी राज्यों के अभ्यर्थियों के अवसरों को भी प्रभावित करेगा। इस व्यवस्था के समर्थन और विपक्ष में कई तरह की दलीलें रही हैं। स्थानीय प्रतिभाओं के विकास से लेकर उन्हें अवसर देकर राज्य के हित में उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल करने पर एक आम राय बनती रही है। इसी का विस्तार उत्तराखंड में महिलाओं को दिए जाने वाले विशेष आरक्षण के रूप में आया, जिसमें तंत्र में महिला भागीदारी बढ़ने की संभावना भी देखी जा सकती है।