खतरे की हवा (सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141 

(सम्पादकीय)

खतरे की हवा

खतरे की हवा
दिल्ली वायु प्रदूषण (Photo- Indian Express File)
इसके समांतर इसकी वजहें भी सुर्खियों में रहती हैं और सरकारें इन पर काबू पाने के लिए काम करने का दावा करती हैं। लेकिन विचित्र यह है कि हर अगले साल फिर वैसे ही हालात का सामना करना पड़ता है और सरकारों की ओर से पुराने आश्वासन और दावे दोहराए जाते हैं।

यों हर दिवाली के बाद दिल्ली की हवा के बेहद प्रदूषित हो जाने की खबरें कोई नई नहीं हैं, इसलिए इस साल भी अगर यहां प्रदूषण से दम घुटने की खबर आने लगी है तो यह हैरानी की बात नहीं है। यह तब है जब दिवाली के दौरान पटाखे कम छोड़े जाने के बीच प्रदूषण का स्तर घटने की भी खबरें आर्इं। लेकिन अब एक बार फिर दिल्ली में स्थिति गंभीर होती दिखने लगी है। आमतौर पर जब हवा चलती है तब प्रदूषण के स्तर में कमी आती है, मगर इस बार पंजाब और आसपास के इलाकों में पराली जलाने के मामलों में बढ़ोतरी के साथ धीमी हवा की वजह से भी मंगलवार को दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता कहीं ‘बेहद खराब’ तो कहीं ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज की गई।


जाहिर है, यह उस अनदेखी का नतीजा है, जो कारण के रूप में मौजूद होती है, मगर उसे दूर करने या उस पर काबू पाने के लिए दिखावे की सक्रियताओं के अलावा शायद ही कुछ होता है। यही वजह है कि वायु की गुणवत्ता बहुत खराब श्रेणी में पहुंचने की वजह से मंगलवार को दिल्ली-एनसीआर में धुंध और धुएं की परत छाई रही और दृश्यता का स्तर भी कम रहा।

वायु गुणवत्ता पर नजर रखने वाली संस्था ‘सफर’ के मुताबिक बुधवार सुबह भी राजधानी और इसके आसपास सटे मुख्य शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक ‘बेहद खराब’ या ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किया गया। गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक अगर तीन सौ एक से चार सौ के बीच हो तो उसे ‘बहुत खराब’ और चार सौ एक पांच सौ के बीच हो तो उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। आंकड़ा इससे ऊपर पहुंचने पर सांस तक लेने में मुश्किल होने लगती है। राजधानी की हवा में जिस रफ्तार से गिरावट बढ़ रही है और आम लोगों को दिक्कत होने लगी है, उससे सरकार के स्तर से होने वाले प्रयासों की हकीकत का पता चलता है।

करीब एक महीने पहले इस समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने पंद्रह सूत्री शीतकालीन कार्ययोजना की घोषणा की थी, जिसमें कचरा जलाने, धूल और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को रोकने के लिए दल गठित करने के अलावा दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर धुएं और कोहरे को दूर करने वाले यंत्र लगाने की बात कही गई थी। इसके साथ ही शुरुआती तौर पर निर्माण कार्य रोकने जैसे कुछ कार्यों पर पाबंदी लगाने की घोषणा भी हुई।

कहने को प्रदूषण ज्यादा बढ़ने पर दिल्ली में सड़क पर चलने वाले वाहनों को लेकर सम-विषम का नियम लागू किया जाता रहा है, ताकि वाहनों से निकलने वाले धुएं को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सके। लेकिन प्रदूषण को काबू में रखने की घोषणाओं के बरक्स हालत यह है कि पंजाब या अन्य इलाकों में पराली जलाने के मसले पर भी कोई ठोस पहलकदमी नहीं हो सकी है। बीते वर्षों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल यहां बढ़े प्रदूषण के लिए पंजाब में पराली जलाए जाने को जिम्मेदार बताते थे। लेकिन अब जब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है और तब भी यही समस्या बनी हुई है तो इसकी जिम्मेदारी किस पर आनी चाहिए!