बेकाबू महंगाई(सम्पादकीय)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141 

(सम्पादकीय)

बेकाबू महंगाई

बेकाबू महंगाई
सांकेतिक फोटो

खुदरा महंगाई दर बढ़ कर 7.41 फीसद पर पहुंच गई और औद्योगिक उत्पादन में 0.8 फीसद का संकुचन दर्ज हुआ। ये दोनों आंकड़े अगस्त महीने के हैं। महंगाई पर पिछली तीन तिमाहियों से काबू पाना कठिन बना हुआ है। रिजर्व बैंक की कोशिश है कि महंगाई को घटा कर छह फीसद तक लाया जा सके। मगर इसमें कामयाबी नहीं मिल पा रही।


चिंता की बात है कि खाने-पीने की चीजों की महंगाई 8.6 फीसद पर पहुंच गई है, जिससे आम लोगों के रोजमर्रा की जिंदगी पर बुरा असर पड़ रहा है। पिछले दिनों रिजर्व बैंक ने दावा किया कि अगले दो सालों में महंगाई की दर चार फीसद पर स्थिर हो जाएगी, मगर जिस तरह अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं में संतुलन साधना मुश्किल बना हुआ है, उससे यह दावा धुंधला ही बना हुआ है। महंगाई को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन समेत तमाम रेटिंग एजंसियां अपना अनुमान बदल चुकी हैं। विश्व व्यापार संगठन का कहना है कि पूरी दुनिया में महंगाई की मार अगले दो सालों तक बनी रहेगी। मंदी का दौर अगले चार सालों तक चलेगा।

सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का विषय है कि औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि नहीं हो रही। चूंकि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में सबसे अधिक महत्त्व औद्योगिक क्षेत्र के योगदान का माना जाता है, उसके शिथिल पड़ने का अर्थ है कि पूरी अर्थव्यवस्था डावांडोल स्थिति में बनी रहेगी। पिछले दिनों वित्तमंत्री ने उद्योग क्षेत्र में निवेश न बढ़ पाने को लेकर चिंता जताते हुए एलान किया था कि उद्योग जगत अपनी समस्याएं बताए, जिसके आधार पर सरकार सहूलियतें देने का प्रयास करेगी।

हालांकि पहले ही उद्योग जगत को काफी रियायतें दी जा चुकी हैं, कोरोनाकाल के बाद राहत पैकेज की घोषणा भी की गई थी, मगर उद्योग जगत गति नहीं पकड़ पा रहा, तो इसकी वजहों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर सितंबर और अक्तूबर के महीने में औद्योगिक उत्पादन की दर पांच फीसद तक नहीं पहुंची तो जीडीपी पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि ये दो महीने त्योहारों के हैं, जिनमें बाजार में कुछ गतिशीलता रहती है, इसलिए अनुमान है कि इस दौरान उद्योग जगत को कुछ बल मिलेगा। मगर बुनियादी कमजोरियों को दूर करने की जरूरत फिर भी बनी रहेगी।

औद्योगिक उत्पादन गिरने का सीधा कारण है कि वस्तुओं की बाजार में खपत नहीं बढ़ पा रही। फिर खुदरा महंगाई की दर रोकने के लिए रिजर्व बैंक रेपो दरों में लगातार बढ़ोतरी कर रहा है। अभी फिर इसमें पैंतीस आधार अंक तक बढ़ोतरी के कयास लगाए जा रहे हैं। इससे भी औद्योगिक उत्पादन पर असर पड़ता है। फिर निर्यात की दर नीचे का रुख किए हुए है। पूरी दुनिया में मंदी का दौर है, इसलिए भारतीय वस्तुओं की खपत बाहरी बाजारों में घटी है।

इसके अलावा लोगों का रोजगार खत्म हो जाने, कमाई घटने, नौकरियां जाने की वजह से क्रयशक्ति काफी कमजोर हो गई है। इसलिए लोग बड़े खर्चों को लेकर अपने हाथ रोके हुए हैं। इस संतुलन को साधना सरकार के लिए कठिन बना हुआ है। जब तक यह संतुलन नहीं सधता, तब तक औद्योगिक उत्पादन की दर बेहतर होने का दावा कमजोर ही साबित होगा। इस बार असमान बरसात की वजह से कृषि उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ने का अनुमान है। ऐसे में खाने-पीने की चीजों की कीमतों में संतुलन लाना भी चुनौतीपूर्ण बना रहेगा।