हिन्दी मंथ समापन समारोह की यादें (व्यंग्य)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

Hindi
वार्षिक पत्रिका का विमोचन हड़बड़ी में निबटाने लगे तो जल्दी में छपवाई बेचारी पत्रिका का केवल मुखपृष्ठ झेंपते हुए मुश्किल से बाहर निकला । कार्यक्रम में यह राज़ खोला गया कि हिन्दी को सही ढंग से अपनाने के लिए हर साल प्रोत्साहन पुरस्कार दिए जाते हैं।


आज जब हिंदी का परचम विश्व में कई मंचों पर लहरा रहा है मुझे एक राज्य की राजधानी में आयोजित हुआ हिंदी मंथ का समापन दिवस याद आ रहा है जिसे बहुत शानदार ढंग से आयोजित किया गया था। इस यादगार आयोजन में, मुख्य अतिथि का स्वागत पढ़कर किया गया ताकि स्वागतकर्ता को हिन्दी बोलने में परेशानी न हो। कार्यक्रम के दौरान सूचित किया गया कि देश की राजधानी से एक सरकारी तोप यहां आ रही हैं जो हिन्दी के प्रयोग और विकास बारे विचार सभी को मुफ्त वितरित करेंगी।

वार्षिक पत्रिका का विमोचन हड़बड़ी में निबटाने लगे तो जल्दी में छपवाई बेचारी पत्रिका का केवल मुखपृष्ठ झेंपते हुए मुश्किल से बाहर निकला। कार्यक्रम में यह राज़ खोला गया कि हिन्दी को सही ढंग से अपनाने के लिए हर साल प्रोत्साहन पुरस्कार दिए जाते हैं। एक शरारती श्रोता बोला, ‘हिन्दी इज़ ए लैंग्वेज फार पुअर लोग’। कार्यक्रम संचालिका ने हिंदी के ऐतिहासिक आयोजन को रूहानी कार्यक्रम बताते हुए, दर्जनों रोमांटिक शेर पेश कर आगे धकियाया। इस बीच अनेक श्रोताओं ने मज़े से नींद पूरी की।

कार्यक्रम निर्देशक दर्शकों के बीच बैठे रहे और वहीं से तकनीकी कर्मियों को हाथ हिलाकर, मोबाइल से निर्देश देते रहे। ग़ज़ल गायक आए तो पहले उन्होंने पेश की जा रही गज़ल में प्रयोग हो रहे राग बारे इतमिनान से अंग्रेज़ी में समझाया और तब हिन्दी में ग़ज़ल पेश की। युवा नर्तकी तराना पेश करने लगी तो पुरानी सीडी ने चलने के लिए बार बार मना कर दिया। सरकारी रेडियो उदघोषिका ने समझाया, तकनीकी व्यव्धान बारे हमें खेद है, इसके सामने हम सभी बेबस हो जाते हैं। 

हर वर्ष की तरह, हिन्दी के दोहे, पद, गीत व कविताएं किसी को याद नहीं रही, साल में एक बार बहुत मुश्किल से की गई मेहनत से आयोजित हो सकने वाले इस विशेष कार्यक्रम में कैसे प्रवेश पाती। बेबसी हिंदी से भी बड़ी चीज़ होती है। सितम्बर महीने के दौरान हिंदी सेवा के लिए की गई प्रतियोगिताओं के पुरस्कार, कई दिग्गज अतिथियों ने मिल कर सलीके से निबटा दिए। मुख्य अतिथि ने भी अपना वक्तव्य हिंदी में पढ़ कर सुनाया और उन्हें पढ़ते पढ़ते ही पता चला कि उन्होंने क्या कहना था और सामने बैठे ठालों ने क्या सुनना था। तोप टाइप उच्च अधिकारी जो देश की राजधानी से कार्यक्रम में शामिल होने पधारीं थीं, ने अपना समापन भाषण हिन्दी में शुरू किया, विचार प्रकट नहीं किए बल्कि लगभग निर्देश दिए कि सरकारी बोलचाल व कामकाज सरल हिन्दी में ही होना चाहिए। 

आदतन भाषण देने की शौकीन ने माहौल को अपने अनुरूप मानते हुए अंग्रेजी बोलने की पटरी आराम से पकड़ ली। नौकरशाही की सांस्कृतिक व पारम्परिक छाप के अनुरूप, उन्होंने हाल में बैठे सम्बंधित कर्मचारियों और अधिकारियों की क्लास के साथ साथ श्रोताओं की भी क्लास ले डाली। सरकारी कर्मचारियों की तो बोलती बंद रहनी ही थी, बेचारे पुरस्कार विजेता, हिन्दी प्रेमी श्रोता व अन्यों ने भी वही रसपान किया। हिन्दी माह पुरस्कार वितरण समारोह को, ‘आफिशियल मीटिंग’ में तब्दील हो चुका देख कुछ बंदे अंग्रेज़ी में भी नाराज़ हो गए। 

इस यादगार कार्यक्रम की सबसे स्वादिष्ट वस्तु थी, खूबसूरत लॉन में परोसी गई चाय व पकौड़े जो अंग्रेजी बोलते हुए खाए गए क्यूंकि हिंदी माह समारोह तो संपन्न हो चुका था।