विज्ञान की ढाल(सम्पादकीय)

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

विज्ञान की ढाल

विज्ञान की ढाल
ब्रह्मांड।

इसके बाद तो ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगाने की दिशा में अंतरिक्ष अभियानों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अब थमने वाला कहां है! दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज और सृष्टि की उत्पत्ति का रहस्य जानने के मकसद से कई देश अंतरिक्ष अभियानों में जोरशोर से जुटे हैं। इसी का नतीजा है कि आज अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के रहस्यों को लेकर नई-नई चीजें सामने आ रही हैं।


हालांकि ऐसे अंतरिक्ष अभियान आसान नहीं होते और खर्चीले भी काफी होते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि विज्ञान के क्षेत्र में इंसान ने आज जो कुछ हासिल कर पाया है, समंदरों और धरती से लेकर अंतरिक्ष की गुत्थियों को सुलझाने में जितने कदम बढ़ा पाया है, वह उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में विज्ञान के विकास के ही संभव हो पाया। इसे मानव की कल्पनाओं का ही नतीजा माना जाना चाहिए कि आज सुदूर अंतरिक्ष की यात्रा के लिए अकल्पनीय गति से उड़ने वाले यान बनाने में कामयाबी मिल सकी है।

वैज्ञानिक शोधों और उपलब्धियों का यह सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें अब एक और नई चीज जुड़ गई है। वैज्ञानिकों ने अब आकाशीय पिंडों की टक्कर से धरती को बचाने का भी रास्ता निकाल लिया है। जैसे चंद्रमा पर पहली बार कदम रखना ऐतिहासिक घटना थी, उसी तरह यह प्रयोग भी मानव जाति के इतिहास में दर्ज हो गया। दो दिन पहले नासा के वैज्ञानिकों ने पहली बार धरती के करीब से गुजर रहे डिमोरफोस नामक एक छोटे पिंड में डार्ट अंतरिक्ष यान से टक्कर मार कर उसका रास्ता बदल दिया

खतरा यह था कि यह पिंड कहीं धरती से न टकरा जाए। एक करोड़ किलोमीटर से भी ज्यादा दूर बैठ कर इस तरह का सफल प्रयोग कोई मामूली काम नहीं था। हालांकि अंतरिक्ष में उपग्रहों को नष्ट करने जैसे प्रयोग भारत सहित कुछ देश कर चुके हैं। लेकिन अंतरिक्ष में विचरण कर रहे आकाशीय पिंडों को नष्ट करना या उनका रास्ता बदलने का प्रयोग अब तक सपना ही बना हुआ था। वैसे आकाशीय पिंडों से धरती को खतरा कोई नई बात नहीं है।

यह तो धरती की उत्पत्ति के साथ ही खड़ा हो गया था। जैसा कि अब तक के वैज्ञानिक शोधों से स्थापित हुआ है कि सबसे विशालकाय जीव डायनासोर के खात्मे का कारण भी किसी आकाशीय पिंड का धरती से टकराना ही था। ऐसे में आकाशीय पिंडों के खतरे से निपटना आज भी इंसान के लिए आसान नहीं है। हां, अंतरिक्ष और खगोल विज्ञान के विकास से इतना जरूर संभव हो पाया है कि अब गणनाओं के आधार पर यह पता लग जाता है कि कौन-सा आकाशीय पिंड धरती के कितने पास से और कब गुजरेगा।

सच तो यह है कि ब्रह्मांड आज भी इंसान के लिए रहस्यों का पिटारा ही है। फिर, अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं पर तो इंसान का वश नहीं है। ब्रह्मांड आज भी एक तरह से विकास और विस्तार की अवस्था में ही है। असंख्य छोटे-बड़े पिंड अकल्पनीय वेग से निरंतर विचरण कर रहे हैं। ऐसे में धरती के लिए सबसे बड़ा खतरा तो यही है कि कभी कोई पिंड इससे टकरा न जाए।

हालांकि अंतरिक्ष से धरती पर उल्का पिंडों के गिरने की घटनाएं होती रहती हैं, जिन्हें रोक पाना संभव नहीं है। पर अब डिमोरफोस का रास्ता बदलने में कामयाबी मिलने से वैज्ञानिकों को यह उम्मीद तो बंधी है कि भविष्य में वे धरती के लिए खतरा बनने वाले किसी बड़े आकाशीय पिंड का भी रास्ता बदल कर मानव जाति को बचा सकते हैं।