महंगाई की करवट(सम्पादकीय)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

महंगाई की करवट

महंगाई की करवट
सांकेतिक फोटो

खुदरा महंगाई का नया आंकड़ा निश्चय ही सरकार के लिए चिंता का सबब है। पिछले तीन महीनों से लगातार महांगाई का रुख नीचे की तरफ बना हुआ था, मगर अगस्त में फिर उसमें बढ़ोतरी दर्ज हुई है। जुलाई में खुदरा महंगाई 6.71 फीसद तक उतर आई थी, मगर अगस्त में बढ़ कर वह सात फीसद पर पहुंच गई। रिजर्व बैंक ने माना है कि अगर महंगाई चार से छह फीसद के बीच बनी रहती है, तो आर्थिक विकास दर में संतोषजनक वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है।


इसके अलावा औद्योगिक उत्पादन की विकास दर भी निराशाजनक ही दर्ज हुई है। विनिर्माण, खनन, बिजली आदि क्षेत्रों में काफी खराब प्रदर्शन देखा गया है। इस तरह औद्योगिक विकास दर पिछले चार महीनों के सबसे निचले स्तर 2.4 फीसद पर पहुंच गई है। यानी उत्पादन और खपत दोनों मोर्चों पर शिथिलता चिंता पैदा करने वाली है। कुछ दिनों पहले चालू वित्तवर्ष की पहली तिमाही में विकास दर का आंकड़ा आया, तो उद्योग जगत में कुछ उत्साह नजर आया था। सरकार ने भी दावा किया था कि भारत जल्दी ही आर्थिक मंदी के दौर से बाहर निकल आएगा। यहां तक कि भारतीय अर्थव्यवस्था के ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था से आगे निकल जाने पर खुशी जाहिर की गई थी।

हालांकि पहली तिमाही में दर्ज विकास दर को लेकर तब भी कई विशेषज्ञों ने न सिर्फ असंतोष जताया, बल्कि सतर्क किया था कि सरकार को महंगाई पर काबू पाने और लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने के उपायों पर कड़ाई से ध्यान देना चाहिए। यहां तक कि रिजर्व बैंक ने भी इस विकास दर को संतोषजनक नहीं माना था। मगर वित्तमंत्री ने उत्साहपूर्वक कहा कि महंगाई को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं। अब सरकार का ध्यान नए रोजगार सृजित करने पर है।

अगर वित्तमंत्री खुद महंगाई और औद्योगिक उत्पादन में निराशाजनक स्थिति को लेकर अगंभीर बनी रहेंगी, तो आगे स्थितियां शायद ही सुधरें। अर्थव्यवस्था के न संभल पाने की वजहें स्पष्ट हैं। उस दिशा में गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। फिलहाल कई दृष्टि से अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अनुकूल स्थितियां हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें उतार पर हैं।

त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है और अगली दो तिमाहियां खरीदारी की दृष्टि से उत्साहजनक मानी जाती हैं। मगर सरकार का ध्यान अगर महंगाई को काबू में करने पर नहीं है, तो इन स्थितियों का शायद ही पर्याप्त लाभ मिल पाए। कच्चे तेल की कीमतें उतार पर होने के बावजूद पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में कमी नहीं की जा रही। इससे महंगाई पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ है।

दरअसल, सरकार अभी आंकड़ों के खेल में उलझी हुई है, जबकि जमीनी हकीकत आंकड़ों से अलग है। महंगाई की मार आम लोगों पर पड़ रही है। उसे जब तक जमीन पर उतर कर जांचने का प्रयास नहीं होगा, तब तक आंकड़ों से कोई समाधान नहीं निकलेगा। ताजा आंकड़ों में सब्जी, मसाले, जूते-चप्पल जैसी रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली चीजों के दाम बढ़ गए हैं। ईंधन की कीमतों में कटौती करके कुछ हद तक इन पर लगाम लगाया जा सकता है, मगर सरकार न जाने क्यों यह कदम उठाने से बच रही है। फिर औद्योगिक उत्पादन और निर्यात जैसे मोर्चे पर निराशाजनक प्रदर्शन नए रोजगार के सृजन में बाधा उत्पन्न कर रहा है। नए रोजगार नहीं पैदा होंगे, तो बाजार की चमक फीकी रहेगी और महंगाई पर काबू पाना भी मुश्किल बना रहेगा।