समझदारी (कहानी)

   क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

समझदारी

सुबह से समुंद्र के किनारे बैठा रमण अपनी छोटी-छोटी नावों को बेच रहा था । खूब दुकानदारी की । अब शाम का समय होने लगा और आसमान में भी धीरे-धीरे गहरे काले बादल छाने लगे थे, लगता था जैसे कुछ ही देर बाद बारिश शुरू हो जायेगी ।



रमण ने जल्दी-जल्दी अपने सामने रेत पर पड़ी हुई अपनी नावों को उठा-उठाकर टोकरी में रखना आरंभ किया ।

घर जाने का समय हो गया है, यह सोचकर रमण का कुत्ता टॉमी जो थोड़ी दूर पर रेत में लेट रहा था, भागा-भागा उसके पास आया और उसका हाथ चाटने लगा ।

टॉमी का सिर थपथपाते हुए रमण ने कहा- “शाम हो गई है टॉमी, अब तो यहां कोई ग्राहक नहीं आएगा और मौसम भी खराब होता जा रहा है । अच्छा यही है कि हम अपना सामान समेट ले और जल्दी से जल्दी घर लौट चलें । तब तक पिताजी और बड़े भाई भी मछलियां पकड़कर लौट आयेंगे । उनके साथ बैठकर खाना खाते समय हम उनके सफर की बातें सुनेंगे ।”

टॉमी ने ऐसे सिर हिलाया, मानो रमण की सारी बातें समझ रहा हो ।

जल्दी-जल्दी अपने सामान को समेटकर टोकरी में भरा और उसे अच्छी तरह बांधकर रमण और टाँमी अपने घर की ओर रवाना हो गये ।

रमण के पिताजी रोज नाव में बैठकर समुद्र से मछली पकड़ने जाते थे । मछलियां बेचकर वे अपने परिवार का गुजारा करते थे ।

रमण अपने चार भाइयों में सबसे छोटा था । उसके तीनों बड़े भाई अपने पिता की मछली पकड़ने में सहायता करते थे । रमण को समुंदर से बहुत लगाव था । और वह चाहता था कि वह भी अपने भाइयों की तरह अपने पिताजी के साथ समुंद्र में मछलियां पकड़ने जाये ।

लेकिन जब भी वह अपने पिता से इसके लिए कहता था तो वे उसे यह कह कर टाल देते थे कि वह भी बहुत छोटा है, जब बड़ा हो जायेगा, तब मैं उसे अपने साथ ले जाया करेंगे ।

रमण जब अपने घर के पास पहुंचाँ, तो उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसके पिताजी अभी तक घर वापस नहीं लौटे थे । घर के बाहर समुंदर के किनारे अपनी नाव न होने से ही उसने यह अनुमान लगा लिया था ।

उस समय हल्की-हल्की बूंदे पड़ने लगी थीं । रमण तेजी से घर में घुसा, सामान की टोकरी उसने एक तरफ रखी और उसके बाद वह पास में पड़ी एक चारपाई पर लेट गया ।

आहट सुनकर उसकी मांँ कमरे के अंदर आई और बोली- “चल बेटा ! खाना खा ले, दिनभर की मेहनत से तू बहुत थक गया होगा ।”

“नहीं मांँ, मैं अभी खाना नहीं खाऊंगा ।” रमण ने अपनी मां को जवाब दिया, उसकी बात सुनकर मांँ अपने कामों में जुट गयी ।

धीरे-धीरे रात घनी होती गयी, लेकिन उसके पिता और भाई अभी तक वापस नहीं लौटे थे ।

अब रमण और उसकी मांँ को चिंता होने लगी । क्योंकि इससे पहले कभी भी उनके लौटने में इतना समय नहीं लगा था ।

दरवाजा खोलकर रमण ने बाहर झाँका तो बारिश अभी भी हो रही थी । सभी घरों के सामने छोटी-छोटी नाव पीठ के बल लेटी हुई पड़ी थीं । इसका मतलब यह था कि उनके पिताजी के अलावा अन्य सभी मछुआरे वापस लौट आए थे ।

उसने सोचा- “पिताजी और भाई कहां गये ?” वह मन ही मन बुदबुदाया और फिर उसने दरवाजा बंद कर दिया ।

थोड़ी देर बाद रमण ने बरसाती उठाई और अपनी मांँ से कहकर कि वह समुद्र तट पर जा रहा है, घर से बाहर निकल आया । 

उसका कुत्ता टॉमी भी के साथ चल दिया ।

तट पर पहुंचकर उसने दूर-दूर तक नजर दौड़ाई, लेकिन भारी वर्षा के कारण उसे अपने पिताजी की नाव का कोई निशान तक दिखाई नहीं दिया । पास में बने लाइट हाउस के ऊपर तेज रोशनी चमक रही थी । इस रोशनी की सहायता से पिताजी को सही रास्ता ढूंढने में कोई दुश्वारी नहीं होनी चाहिए ।

लेकिन वे अब तक वापस क्यों नहीं लौटे ? रमण ने फिर सोचा ।

थोड़ी देर तक समुंदर की ओर ताकते रहने के बाद जब उसने एक बार फिर लाइटहाउस की ऊंची मीनार पर चमकने वाली रोशनी को देखा, तो यह देखकर उसे आश्चर्य का ठिकाना न रहा की रोशनी पूरी तरह अंधेरे में डूब गई है ।

इसका मतलब यह था कि तेज वर्षा की वजह से समुद्र तट के आसपास की बिजली फेल हो गयी थी ।

रमण बुदबुदाया- “अब क्या होगा ? यदि ज्यादा समय तक रोशनी गायब रही तो पिताजी निश्चित रूप से किनारे का अन्दाजा नहीं लगा पायेंगे और वे समुद्र में ही भटकते रहेंगे ।”

वह तुरंत अपने घर की ओर भागा और अपने पड़ोसी मछुआरों को उसने सारी बात बताई ।

“अब क्या किया जाये ?” एक ने पूछा ।

“हम किनारे पर कुछ स्थानों पर आग जलाते हैं, ताकि आने वाला कोई भी नाव का स्वामी यह अनुमान लगा सके तट पास ही है और वह बिना किसी परेशानी तट तक आ जाये ।” रमण ने उन्हें सलाह दी ।

“यह तो ठीक है, लेकिन वर्षा के कारण सारी लकड़िया गीली हो गयी हैं, गीली लकड़ियों में आग कैसे लगेगी ?” एक वृद्ध व्यक्ति ने पूछा।

रमण ने कुछ पल सोचा, फिर भागता हुआ अपने घर में जा घुसा ।

जब वह बाहर निकला तो उसके हाथों में नावों की टोकरी थी । वही नावें जिन्हें वह बरसात के मौसम में अपने भाइयों और पिताजी के साथ मिलकर बड़ी मेहनत से बनाया था और जब उसके पिताजी समुद्र में मछलियां पकड़ने जाते थे, तो वह तट पर बैठक पर बैठकर वहांँ सैर करने के लिए जाने वाले व्यक्तियों को नावें बेचा करता था ।

उसने टोकरी में से कुछ नावे निकाली और अपने दोस्त राजू से बोला- “वर्षा रुक चुकी है, तुम कुछ सुखी लकड़ियां ढूंँढने का प्रयास करो । थोड़ी गीली लकड़ी की चार पांच ढेरियाँ बना दो । मेरी नावे सुखी होने के कारण आसानी से जल जायेगी और तब उन्हें हम लकड़ियों के ढेर पर रख देंगे ।”

इतना कहकर उसने नावों को तोड़ना शुरू कर दिया ।

अपनी छोटी-छोटी नावे-नावें जलाकर रमण ने उन्हें प्रत्येक ढेर पर रखना शुरू कर दिया ।

गीली लकड़ियों भुर्र-भुर्र करके जलने लगीं । और जैसे ही किसी ढेर की लपट कम होने लगती उसमें लकड़ियां और सूखे पत्ते डाल दिये जाते ।

अचानक एक व्यक्ति जोर से चिल्लाया- “अरे वो देखो एक नाव आ रही है ।”

वह नाव रमण की पिताजी की ही थी ।

अब रमण को यह डर सताने लगा कि यदि पिताजी को यह पता चल गया कि उसने सभी नावों को तोड़कर जला दिया है, तो वे उस पर बहुत क्रोधित होंगे ।

लेकिन रमण की पिताजी को यह पता चला, तो वे उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले- “तुमने बहुत समझदारी से काम लिया है, बरसात में हम रास्ता भूल गये थे । अगर तट पर हमें रोशनी न दिखाई देती, तो हम भटक जाते ।”

इतना कहकर रमण के पिताजी ने उसको गले से लगा लिया ।

मित्रों'" व्यक्ति छोटा हो या बड़ा, यदि वह समझदारी से काम नहीं लेता तो उसे अन्य लोग कभी अच्छा नहीं कहते । अच्छा बनने के लिए मनुष्य को बड़ी समझदारी से काम लेना पड़ता है । अपना बहुत कुछ त्यागना पड़ता है । जिस प्रकार रमण ने अपनी नावों का बलिदान देखकर अपने पिताजी की नाव को तट तक आने के लिए रोशनी का प्रबंधन किया । उसकी समझदारी को देखकर पिताजी ने उसे शाबासी दी ।”