सुनवाई बनाम सौहार्द(सम्पादकीय)

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

सुनवाई बनाम सौहार्द

सुनवाई बनाम सौहार्द
 
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित शृंगार गौरी की नियमित पूजा को लेकर दायर याचिका को आखिरकार अदालत ने सुनवाई के लायक मान लिया है। स्वाभाविक ही इसे लेकर याचिकाकर्ता पक्ष में उत्साह है और वह इसे अपनी जीत मान रहा है। दरअसल, जब यह याचिका दायर की गई थी, तो मस्जिद के प्रबंधन से जुड़े लोगों ने अपील की थी कि यह मस्जिद वहां आजादी के पहले से है और इसकी स्थिति में किसी भी तरह का बदलाव 1991 के पूजा स्थल कानून के खिलाफ होगा। इस कानून में अयोध्या को छोड़ कर देश के तमाम पूजा स्थलों में यथास्थिति बहाल रखने का प्रावधान है।

मगर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के हिंदू मंदिर की जगह बने होने का दावा प्रबल होने लगे, तो अदालत ने मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था। उस सर्वेक्षण में मस्जिद परिसर में हिंदू प्रतीक और शिवलिंग मिलने की पुष्टि की गई। उसके बाद दबाव और बढ़ने लगा था। तब सर्वोच्च न्यायालय ने वाराणसी की जिला अदालत को आदेश दिया कि वह तय करे कि याचिका पर सुनवाई की जा सकती है या नहीं। उसी के मद्देनजर अदालत ने तमाम गवाहों के बयान और सर्वेक्षण के साक्ष्यों के आधार पर फैसला किया है कि याचिका की सुनवाई की जा सकती है।

हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब ज्ञानवापी परिसर पर दावे के लिए अदालत में गुहार लगाई गई। इससे पहले भी कई बार अदालत का दरवाजा खटखटाया जा चुका है, मगर अदालत ने उन याचिकाओं को सुनवाई के लायक नहीं पाया। अब चूंकि सर्वेक्षण के बाद कुछ साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं और गवाहों के बयानों से अदालत को लगा है कि इस मामले की सुनवाई की जा सकती है, तो इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। अभी अदालत ने सिर्फ यह स्वीकार किया है कि मामले की सुनवाई की जा सकती है।

इसका अर्थ यह नहीं कि इससे ज्ञानवापी परिसर पर किसी की दावेदारी सिद्ध होती है। जब यह मामला चलेगा, तो दोनों पक्ष अपने-अपने पक्ष में दलीलें देंगे। साक्ष्यों और ऐतिहासिकता आदि की परख होगी। देश में बहुत सारी जगहों पर इस तरह दो समुदायों के पूजा स्थलों की भूमि पर कब्जे आदि का विवाद है। उन विवादों को समाप्त करने के मकसद से ही 1991 में पूजा स्थल कानून लाया गया था। इस कानून की मौजूदगी में ही अदालत तमाम पक्षों की परख और सुनवाई करेगा। इसलिए दोनों पक्षों से अपेक्षा की जाती है कि वे अदालत का अंतिम फैसला आने तक संयम बनाए रखें।

अदालत के विवेक पर भरोसा और उसके फैसले का सम्मान करना चाहिए। जिस तरह ज्ञानवापी परिसर में चल रहे सर्वेक्षण के समय कुछ लोगों ने संचार माध्यमों के जरिए एक समांतर अदालत चलानी शुरू कर दी थी और सर्वेक्षण का काम पूरा होने से पहले ही अपने फैसले सुनाने शुरू कर दिए थे, वैसा करना सामाजिक समरसता के लिए ठीक नहीं।

सर्वेक्षण का काम गुप्त रूप से होना था, मगर उसमें मिले प्रतीकों आदि के चित्र और सर्वेक्षण करने वालों के बयान तक बाहर आने शुरू हो गए थे, जिससे शहर में तनाव का वातावरण बन गया था। अदालत में जब तक सुनवाई चल रही है, तब तक ऐसी हरकतें न होने पाएं, इसका विशेष ध्यान रखना पड़ेगा। अच्छी बात है कि प्रशासन ने फैसला आने से पहले सुरक्षा बंदोबस्त कड़ा कर दिया था। ऐसी ही मुस्तैदी बनी रहनी चाहिए। इसे लेकर किसी भी तरह का उपद्रव सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ सकता है।