अब प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाएंगे पालिथीन के थैले

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

अब प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाएंगे पालिथीन के थैले
सांकेतिक फोटो।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के एक प्रोफेसर ने प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले पालिथीन के थैले बनाने की प्रौद्योगिकी विकसित की है। भारत सरकार ने जुलाई 2022 से पालिथीन के थैले के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि इनका उपयोग पर्यावरण के लिए खतरनाक है।
आइआइटी रुड़की के रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर पीपी कुंडू पालिमर प्रौद्योगिकी के विषय विशेषज्ञ हैं।


कुंडू ने एक ‘थर्मोप्लास्टिक स्टार्च’ विकसित किया है जिसे एलडीपीई ‘बायोडिग्रेडेबल’ (प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाली) बनाने के लिए कम घनत्व पालिथीन (एलडीपीई) के साथ मिश्रित किया जाएगा। भारत स्टार्च-उत्पादन से संबंधित सब्जियों और खाद्यान्न का उत्पादन करता है जैसे कि आलू, चावल, गेहूं और मक्का शामिल हैं। इस अवसर पर आइआइटी रुड़की के निदेशक अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि इस प्रौद्योगिकी का लाभ, भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध स्टार्च के कारण और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग के कारण बहुत अधिक है।

आइआइटी रुड़की ने प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले पालिथीन के थैले का बड़ी मात्रा में निर्माण करने के लिए इस प्रौद्योगिकी को नोएडा स्थित अग्रसार इनोवेटिव्स एलएलपी को हस्तांतरित कर दिया है। फर्म बड़ी मात्रा में इस तरह के पालिथीन के थैले के निर्माण के लिए वर्तमान प्रौद्योगिकी का व्यावसायिक उपयोग करेगी। पालीबैग पर प्रतिबंध को देखते हुए देश में ऐसी प्रौद्योगिकी काफी काम की साबित हो सकती है।