रियायत में विकल्प(सम्पादकीय)

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

रियायत में विकल्प

रियायत में विकल्पअब दिल्ली सरकार ने फैसला किया है कि उन्हीं लोगों को बिजली मुफ्त या सस्ती मिलेगी, जो इसकी मांग करेंगे। यानी अब उपभोक्ता चाहें तो मुफ्त बिजली की सुविधा लेना छोड़ सकते हैं। दिल्ली सरकार का कहना है कि कुछ लोगों की मांग थी कि जब हम बिजली का बिल चुका सकते हैं, तो हमें क्यों मुफ्त या रियायती बिजली दी जा रही है।


इसे वैकल्पिक बनाना और इससे मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल स्कूलों और अस्पतालों पर किया जाना चाहिए। अब लोगों को मुफ्त या रियायती बिजली पाने के लिए एक फार्म भर कर जमा करना होगा। अगले महीने से नई योजना लागू हो जाएगी। अभी तक सरकार दो सौ यूनिट बिजली सभी को मुफ्त देती है, जिसका लाभ तीस लाख परिवार उठाते हैं। दो सौ से चार सौ यूनिट तक की बिजली पर रियायत यानी सबसिडी दी जाती है।

उन्हें आधा भुगतान करना होता है, जिसका लाभ करीब सत्रह लाख लोग उठाते हैं। अब जो लोग इस सुविधा को छोड़ना चाहते हैं, वे छोड़ सकते हैं। यानी जो फार्म भर कर जमा नहीं करेंगे, मान लिया जाएगा कि वे इस योजना का लाभ नहीं लेना चाहते। हालांकि यह देखने की बात है कि कितने लोग स्वेच्छा से मुफ्त या रियायती बिजली लेना बंद करते हैं।कुछ समय पहले मुफ्त की रेवड़ी बांटने को लेकर काफी हंगामा मचा। खासकर आम आदमी पार्टी पर अधिक निशाना साधा गया। हो सकता है, दिल्ली सरकार ने उसके मद्देनजर भी यह बीच का रास्ता चुना हो। दूसरी वजह यह भी हो सकती है कि पिछले कई सालों से वस्तुओं और सेवाओं पर सबसिडी देना सरकारों के लिए बोझ महसूस होता रहा है, इसलिए वे धीरे-धीरे सबसिडी हटाती रही हैं।

विश्व व्यापार संगठन भी सबसिडी कम करने का दबाव बनाता रहा है। मगर भारत में इसे पूरी तरह समाप्त करना इसलिए मुश्किल काम रहा है कि यहां की बहुसंख्य आबादी अभावों में बसर करती है। दिल्ली सरकार ने भी सबसिडी का अपना बोझ कम करने के लिए यह रास्ता चुना होगा। यह उचित भी है कि जो लोग किसी वस्तु या सेवा का भुगतान कर सकते हैं, उन्हें रियायत क्यों मिलनी चाहिए।

गरीबों के कल्याण के उद्देश्य से शुरू की गई योजनाओं का लाभ उन्हें ही मिले, तो बेहतर। मगर जिस तरह पहले बिजली की चोरी रोकना एक बड़ी चुनौती थी, उसे मुफ्त और रियायती बिजली योजना ने काफी हद तक रोक दिया। अब समर्थ लोगों पर इस योजना का लाभ छोड़ने का नैतिक दबाव बनाया जा सकता है।

मगर यह सवाल तो रेखांकित हुआ ही है कि सरकारें आखिर ऐसी मुफ्त सुविधाओं की योजनाएं चलाती ही क्यों हैं, जब वे उन्हें लंबे समय तक लागू नहीं रख सकतीं। चुनावी लाभ लेने के लिए ऐसी योजनाओं की घोषणा हर दल करता देखा जाता है, बिना यह विचार किए कि उसका खर्च वह कैसे वहन कर पाएगा। पहले भी पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि में कई सरकारें किसानों को मुफ्त बिजली देने की योजनाएं चला कर आखिरकार अपने कदम वापस खींच चुकी हैं। उनसे सबक लेने की जरूरत क्यों नहीं समझी गई।

दिल्ली में नए नियम लागू होने के बाद हजारों ऐसे लोगों के सामने समस्या खड़ी होगी कि वे मुफ्त बिजली पाने के लिए कैसे आवेदन करें, जो झुग्गी और अवैध कालोनियों में रहते या ऐसी जगहों में किराए पर रहते हैं। कहीं फिर से बिजली चोरी की प्रवृत्ति न बढ़े। योजनाओं को लागू करने से पहले उनके व्यावहारिक पक्षों का आकलन जरूर होना चाहिए।