सरकार की मर्यादा(सम्पादकीय)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

सरकार की मर्यादा

tej pratap yadav| bihar|nitish kumar

सरकारी कामकाज का एक तय तरीका होता है। उसकी अपनी मर्यादा होती है। उनके कुछ नियम-कायदे बने होते हैं। चाहे मंत्री हों या अफसर, सबसे उन तरीकों, मर्यादाओं और नियम-कायदों के पालन की अपेक्षा की जाती है। मगर सरकार के शीर्ष पदों का निर्वाह करने वाले कुछ लोग शायद इस तकाजे को भूल जाते या यह मान बैठते हैं कि वे जिस ढंग से काम करना चाहते हैं, वही तरीका उचित है।

इसी वजह से अक्सर विवाद भी खड़े हो जाते हैं। बिहार में नवगठित सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री की पहली बैठक में ही सरकारी कामकाज की मर्यादा के उल्लंघन का मामला उठ गया। दरअसल, इस मंत्रालय की जिम्मेदारी लालू यादव के बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के भाई तेजप्रताप को दी गई है। तेजप्रताप प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की समीक्षा बैठक में अपने बहनोई यानी मीसा यादव के पति को भी साथ ले गए थे।

उस बैठक की तस्वीर फैलनी शुरू हुई तो स्वाभाविक ही विपक्ष यानी भाजपा को इस पर निशाना साधने का मौका मिल गया। उसने कहा कि बिहार में फिर से जीजा-साले की सरकार चलनी शुरू हो गई है। जब लालू यादव मुख्यमंत्री थे, तब उनके दो साले, साधू और सुभाष यादव सरकारी कामकाज में दखल दिया करते थे, अब उनके दामाद देने लगे हैं। यानी फिर से जंगलराज की शुरुआत हो चुकी है।

विपक्ष के एतराज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं माना जा सकता कि सरकारी कामकाज के नियम-कायदों से तेजप्रताप वाकिफ न हों। वे लंबे समय से राजनीति में हैं। उनके पिता और मां मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उन्होंने सरकारी कामकाज के तौर-तरीके नजदीक से देखे हैं। फिर उनके बहनोई को भी इससे अपरिचित नहीं माना जा सकता। सरकारी बैठकों में जो बातचीत होती है, जो फैसले किए जाते हैं, उन्हें गोपनीय रखा जाता है। इसलिए उनमें बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित होता है।

वह चाहे परिवार का खास व्यक्ति ही क्यों न हो, मंत्रालयों आदि की बैठकों में उसे प्रवेश नहीं दिया जाता। हैरानी है कि संबंधित अधिकारियों ने भी इस बात की परवाह क्यों नहीं की। तेजप्रताप के बहनोई को उस बैठक में प्रवेश ही क्यों दिया गया। हालांकि यह इकलौता मामला नहीं है। उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे तेजस्वी यादव भी अपने विभाग की एक बैठक में पार्टी के एक कार्यकर्ता को साथ ले गए। उस पर भी विवाद है।

मंत्रियों को अपने सलाहकार आदि नियुक्त करने का अधिकार है, कुछ पदों पर वे सरकारी अफसरों के अलावा बाहरी लोगों को भी नियुक्त कर सकते हैं। ऐसा तमाम मंत्री करते भी हैं। इस तरह उनके करीबी लोगों को बैठकों आदि में हिस्सा लेने का अधिकार मिल जाता है। मगर यह अधिकार किसी परिवार के व्यक्ति या रिश्तेदार को नहीं होता। सरकारी कामकाज परिवार और रिश्तों से अलग होते हैं, होने ही चाहिए।

मगर क्या वजह है कि बिहार के दोनों भाई मंत्रियों को इस तकाजे का खयाल नहीं। क्या उनमें इतना आत्मविश्वास नहीं कि अपने विभागों से संबंधित फैसले खुद या अपने अधिकारियों से विचार-विमर्श कर ले सकें। इसके लिए रिश्तेदारों और पार्टी कार्यकर्ताओं की अनुचित बैसाखी का सहारा लेना पड़ रहा है। किसी राजनेता की योग्यता महज इससे नहीं आंकी जाती कि वह किस तरह जोड़-तोड़ कर सरकार बना लेता है, इससे आंकी जाती है कि वह सरकारी कामकाज में कितनी ईमानदारी बरतता है।