बारिश का कहर(सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

बारिश का कहर

पिछले कुछ दिनों से देश के कई राज्यों में हो रही भारी बारिश से हालात बिगड़ गए हैं। ज्यादातर जगहों पर बाढ़ आ गई है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात से लेकर आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र तक में स्थिति भयावह है। लाखों लोग बेघर हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में तो मूसलाधार बारिश और बादल फटने की घटनाओं ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। पहाड़ धंसने, चट्टाने गिरने, पुल ढह जाने और मलबे से रास्ते अवरुद्ध होने से संकट गहरा गया है। हिमाचल प्रदेश में इस साल जून से लेकर अब तक करीब पांच सौ लोग वर्षा-जनित हादसों में मारे जा चुके हैं।

उत्तराखंड में भी हालात इससे अलग नहीं हैं। नदियां पूरे उफान पर हैं। ग्रामीण हलकों में स्थिति ज्यादा विकट इसलिए है कि वहां ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से पैदा होने वाले हालात से निपटने के पर्याप्त इंतजाम भी नहीं होते। ग्रामीण इलाकों में नुकसान कहीं ज्यादा बड़ा होता है। खेत डूब जाते हैं, फसले चौपट हो जाती हैं, बड़ी संख्या में मवेशी बह जाते हैं और बिजली गिरने जैसी घटनाओं में लोग भी मारे जाते हैं। ऐसा कमाबोश हर साल देखने को मिलता रहता है।


मौसम विभाग का कहना है कि करीब एक सौ बीस साल बाद इस बार वर्षा चक्र में अप्रत्याशित बदलाव आया है। कहीं तो बहुत ज्यादा पानी पड़ गया और कहीं बिल्कुल भी नहीं। इसका असर यह हुआ कि गंगा के चार बड़े मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में एक जून से बीस अगस्त तक सबसे कम बारिश हुई और इन राज्यों के बड़े हिस्से में सूखे के हालात बन गए हैं। लेकिन जहां बारिश हुई वहां रेकार्ड तोड़ पानी पड़ा।

आंध्र प्रदेश और मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से में खूब बारिश हो रही है। ओड़ीशा के भी कई जिले बारिश और बाढ़ की मार झेल रहे हैं। दरअसल, ओड़ीशा और आंध्र प्रदेश बंगाल की खाड़ी से सटे हैं, इसलिए समुद्र में कम दबाव का क्षेत्र बनते ही बारिश कहर बरपाती है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने और भारी बारिश का कारण कहीं न कहीं हिमालय क्षेत्र में आ रहे बदलाव भी माने जा रहे हैं।

इसमें संदेह नहीं कि मौसम संबंधी गतिविधियों में आ रहे बदलाव का बड़ा कारण जलवायु संकट है। और ऐसा सिर्फ भारत या एशियाई क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरी धरती पर देखने को मिल रहा है। इसलिए जब तक हम जलवायु संकट से निपटने के उपायों पर ध्यान केंद्रित नहीं करेंगे, तब तक इससे निजात मिलना संभव नहीं है। हालांकि पिछले कुछ सालों में मौसम विभाग का आकलन भी दुरुस्त हुआ है। समय रहते भारी बारिश, खासतौर से तटीय राज्यों में समुद्री तूफान आदि के बारे में सटीक सूचना भी मिल जाती है। इससे लोगों को पहले ही सुरक्षित जगहों पर पहुंचा देना संभव हो गया है।

इसके अलावा आपदा प्रबंधन भी बेहतर हुआ है। लेकिन देखने में आ रहा है कि बारिश के कारण ज्यादातर शहरों में बाढ़ के हालात बन जा रहे हैं। ऐसा इसलिए नहीं कि पानी ज्यादा बरसता है, बल्कि शहरों के बेतरतीब विकास और बसावट ने पानी की निकासीे के रास्ते बंद कर दिए हैं। नदियों के किनारे बसे शहरों ने तटों को भी नहीं बख्शा है। पहाड़ी राज्यों में विकास के नाम पर हो रहे निर्माण ने हमें विनाश के रास्ते पर धकेल दिया है। अगर कुदरत के कहर से बचना है तो पहले हमें इन मानव-जनित समस्याओं से निपटने के उपाय करने होंगे, जो आसान नहीं लगते।