स्वादिष्ट जूतों की मीठी दुकान (व्यंग्य)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

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व्यक्तित्व की तरह पेंसिल नुमा ऊंची एडियां हैं। क्या हुआ अगर जूतों की वारंटी या गारंटी नहीं है वैसे भी फैशन के मौसम में ऐसी चिंताएं नहीं करनी चाहिए। कीमतें महंगी तो हैं मगर अस्सी प्रतिशत तक डिस्काउंट, एक जोड़ी के साथ दूसरी जोड़ी मुफ्त भी तो दी जाती है।

कल पत्नी के साथ शहर के सबसे बड़े मॉल में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महिलाएं वातानुकूलित बाज़ार जाएं और जूते न खरीदें ऐसा हो नहीं सकता। इसलिए जूतों के ऊंचे, लंबे, चौड़े, रंग बिरंगे शानदार शो रूम में जाने का सुनहरी मौक़ा भी मिला। बहुत भीड़ थी जूते लेने वालों की और परोसने वालों की। मुझे दो सौ प्रतिशत महसूस हुआ कि यह डिज़ाइनर मिठाई का शो रूम है। मैंने पत्नी से कहा क्या यह मिठाई का शो रूम है तो उन्होंने मुझे लगभग लताड़ दिया, चुप रहो कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा आपके बारे में। 


हालांकि मैं इतना ज़ोर के नहीं बोला था फिर चुपचाप सोचने लगा कि शो रूम का प्रबंधक या मालिक सुन ले तो खुश ही होगा कि चलो किसी समझदार बंदे ने जूतों के शो रूम को मिठाई का शो रूम भी कहा। वह जूते की जोड़ी मुझे उपहार में ज़रूर देगा चाहे उस पर कुछ दिनों बाद डिस्काउंट होने वाला हो। यह विकास की सफलता ही है कि जूते मिठाई की तरह वातानुकूलित माहौल में पेश कर बेचे और खरीदे जा रहे हैं। जूतों की बड़ी दुकानें वातानुकूलित हैं उनमें खूबसूरत मॉडल्स के चित्र हैं। बेचने वालों की वर्दी है। सुन्दर ट्रेनुमा शो विन्डोज़ में आकर्षक रंग और डिज़ाइन के जूते सजाए गए हैं। उनमें से अलग अलग ब्रांड्स की लुभावनी स्वादिष्ट खुशबू आ रही है। कई डिज़ाइन बहुत दिलकश हैं।

व्यक्तित्व की तरह पेंसिल नुमा ऊंची एडियां हैं। क्या हुआ अगर जूतों की वारंटी या गारंटी नहीं है वैसे भी फैशन के मौसम में ऐसी चिंताएं नहीं करनी चाहिए। कीमतें महंगी तो हैं मगर अस्सी प्रतिशत तक डिस्काउंट, एक जोड़ी के साथ दूसरी जोड़ी मुफ्त भी तो दी जाती है। यहां आकर लगता है जूते रोटी से भी ज्यादा ज़रूरी वस्तु हैं। पत्नी जूते नापसंद कर रही थी तो मुझे याद आया आजकल तो बड़े बड़े फ़िल्मी हीरो अपने कौशल के बहाने जूतों को हाथ में पकड़कर, अच्छे से दिखाकर यूं बेच रहे हैं मानो स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाने वाली चीनी रहित स्वादिष्ट महंगी मगर स्वादिष्ट मिठाई मुंह में रखी जा रही हो।  

जूतों के विज्ञापन भी कम नहीं। जूते बेचने के लिए जिस तरह से कई दशक पहले पांव में जूते पहनाकर महिला और पुरुष मॉडल को अजगर के सहारे पूरा नंगा किया गया था। वह विज्ञापन पैसे कमाने से कहीं ज्यादा जूते खिलाने वाला विज्ञापन था।  उस विज्ञापन के सहारे खूब जूते बिके होंगे क्यूंकि जूते और मिठाई दोनों को किसी भी रेट पर बेच सकते हैं खरीदने वाले तो तैयार हैं। ज़्यादातर जूते मनमाने दामों पर ही बिकते हैं। इनको बेचने वालों की किस्मत ठीक हो तो बंदा करोड़पति हो जाता है लेकिन जूते मरम्मत करने वाला बाज़ार के कोने में बैठा रह जाता है।

जूते पसंद करने में समय का इतना सदुपयोग किया जाता है जितना सेहत के लिए व्यायाम करने में नहीं किया जाता। कपड़ों की सेहत बनाए रखने के लिए मैचिंग जूतों का सक्रिय रोल है। मनपसंद जूते पहनकर शरीर इतना संतुष्ट हो उठता है जितना किसी की मदद कर नहीं होता। मनपसंद जूतों को स्वादिष्ट मिठाई मानने में हर्ज़ नहीं है।