आजाद की आजादी(सम्पादकीय)

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(सम्पादकीय)

आजाद की आजादी

आजाद ने कांग्रेस छोड़ने के क्रम में सोनिया गांधी को जो पत्र लिखा, उसमें उन्होंने 2014 के बाद से चुनावी राजनीति में लगातार पार्टी की कई बड़ी हार और बिगड़ती तस्वीर के अलावा मुख्य रूप से राहुल गांधी के नेतृत्व को निशाना बनाया। उनके मुताबिक, पार्टी रिमोट कंट्रोल से चल रही है और फैसले राहुल गांधी के सुरक्षाकर्मी और निजी सचिव भी ले रहे हैं।

Congress, Ghulam Nabi Azad
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद(फोटो सोर्स: PIT)।

इसमें संदेह नहीं कि राजनीति लगातार उतार-चढ़ावों का मैदान है और राजनीतिक दल इसी मुताबिक अपना रुख तय करते रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि वक्त के तकाजे के लिहाज से कोई पार्टी इस मैदान में अपने पांव मजबूत करने वाले कदम नहीं उठाती है तो कोई मामूली चूक भी उसे दायरे से बाहर कर दे सकती है।

पिछले कई सालों से कांग्रेस लगातार इसी जद्दोजहद से गुजर रही है। आमतौर पर इसके निष्ठावान नेता अपने स्तर पर पार्टी के संघर्ष में शामिल रहे। लेकिन शुक्रवार को कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद ने जिस तरह कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की, वह पार्टी के लिए न सिर्फ एक बड़ा झटका है, बल्कि एक ऐसा आईना भी, जिस पर उसे शायद काफी पहले नजर डाल लेनी चाहिए थी। लेकिन कई बार वक्त निकल जाने के बाद उसकी अहमियत समझ में आती है।


अब कांग्रेस की ओर से यह जरूर कहा जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद ने एक ऐसे नाजुक दौर में पार्टी छोड़ने का फैसला किया, जब न सिर्फ पार्टी, बल्कि देश के लिए संघर्ष करना बड़ी चुनौती है। लेकिन अगर आजाद के सामने कई बड़ी शिकायतों के साथ पार्टी छोड़ने की नौबत आई, तो इसके लिए कौन-सी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं! ये वही गुलाम नबी आजाद हैं, जिन्होंने करीब डेढ़ साल पहले यह कहा था कि मैं मरते दम तक कांग्रेस नहीं छोड़ूंगा।

आजाद ने कांग्रेस छोड़ने के क्रम में सोनिया गांधी को जो पत्र लिखा, उसमें उन्होंने 2014 के बाद से चुनावी राजनीति में लगातार पार्टी की कई बड़ी हार और बिगड़ती तस्वीर के अलावा मुख्य रूप से राहुल गांधी के नेतृत्व को निशाना बनाया। उनके मुताबिक, पार्टी रिमोट कंट्रोल से चल रही है और फैसले राहुल गांधी के सुरक्षाकर्मी और निजी सचिव भी ले रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने पार्टी में सलाह-मशविरे की परंपरा को खत्म कर दिया और वरिष्ठ अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया। हालांकि सोनिया गांधी की उन्होंने तारीफ की। संभव है कि कांग्रेस के भीतर इन आरोपों को एक असंतुष्ट नेता का बयान मान लिया जाए और आगे की लड़ाई को अहम माना जाए। लेकिन आजाद ने अपने पत्र में पार्टी के सामने जो आईना रखा है, वह कांग्रेस के लिए अपने रवैये पर पुनर्विचार की मांग करता है।

गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के भीतर बने ‘जी-23’ के कुछ अहम नेताओं में से एक हैं, जिसे पार्टी की कमजोरियों की ओर ध्यान दिलाने वाले एक समूह के तौर पर जाना जाता है। आजाद ने शिकायत की कि यह जिम्मेदारी निभाने वाले नेताओं को अपमानित किया गया।

अगर आजाद के आरोपों में सच्चाई है तो लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ने का दम भरने वाली कांग्रेस को इस पर विचार करना चाहिए कि फिर पार्टी की राजनीति की दिशा क्या है और उसमें नेताओं-कार्यकर्ताओं की हैसियत क्या है! हालांकि माना यही जाता रहा है कि आजाद पार्टी के भीतर अहम सलाह-मशविरे और कोर कमेटी के बैठकों का हिस्सा रहे हैं।

शायद यही वजह है कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने उनके इस्तीफे को ऐसे समय में पार्टी से धोखा बताया, जब वह मुश्किल में है। जाहिर है, सचमुच एक संघर्ष की हालत से गुजरती कांग्रेस के लिए आजाद का ताजा रुख नया संकट लेकर आया है। अब देखना है कि गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही पार्टी आजाद के सवालों को क्या आत्ममंथन का मौका मानती है या फिर उनकी कमी की भरपाई के लिए आगे का रास्ता देखती है!