हमें हमारे हक़, हमारी जरूरतों, रोज़ी रोटी का अमृत कब उपलब्ध कराया जाएगा! और जब इस देश का प्रत्येक नागरिक, युवा और किसान खुशहाल होगा तब होगा वास्तविक आज़ादी का अमृत महोत्सव!

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

हम आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं सरकार ने इसे आज़ादी का अमृत महोत्सव करार दिया है! ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हम हक़ीकत में आज़ादी का महोत्स्व मनाने की स्थिति में हैं सरकार से ऐसे ही दर्जनों ज्वलंत सवाल पूछता मेरा ये लेख आपकी नज़र कर रहा हूं कृपया अवलोकन व पठन कर अपनी बेशकीमती राय से जरूर अवगत कराएं!

हर घर रोज़ी, हर घर रोटी पहुँचाने की विफलता छुपाने के लिए पेश है हर घर तिरंगा...?

शगूफ़ों और जुमलों के शिकंजे में है भारत का शिक्षित युवा वर्ग...?



भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में समस्त देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, भारत के प्रधानमंत्री और  सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को सम्बोधित करते हुए अपनी सोशल मीडिया अकाउंट की डीपी पर ना सिर्फ तिरंगा लगाने का आवाहन किया था बल्कि आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हर घर तिरंगा लगाने की अपील भी  की थी, प्रधानमंत्री द्वारा की गई इस अपील और आवाहन को अमलीजामा पहनाने के लिए भाजपा और संघ की विचारधारा से संबंध रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति तो इस मुहिम को पूरा करने में जुट ही गया साथ ही इस देश के प्रत्येक नागरिक जो भारत देश से प्यार करता है उसने भी राष्ट्रध्वज के प्रति अपनी आस्था का खुले दिल से प्रदर्शन करते हुए आजादी का अमृत महोत्सव मनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी यह लाज़मी भी है कि किसी भी राष्ट्र के नागरिकों के लिए उनके राष्ट्र का राष्ट्रीय दिवस व राष्ट्रीय ध्वज आस्था, भावना और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक होता है लेकिन जिस राष्ट्र के नागरिकों,युवाओं, अन्नदाता किसान और बच्चों के भविष्य पर बेरोजगारी,भुखमरी, महंगाई, अशिक्षा,कुपोषण,निम्न स्तर की चिकित्सा व्यवस्थाओं से जुड़ी समस्याओं के बादल मंडरा रहे हों तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या उस राष्ट्र में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जाना सार्थक कदम हो सकता है? क्या वहां आजादी का महोत्सव मनाए जाने का कोई औचित्य है ? और क्या यह बदहाली झेल रही देश की जनता के प्रति न्याय संगत है ?, इससे भी बड़ा सवाल भी है कि क्या इस राष्ट्रीय पर्व को मनाए जाने के पीछे सरकार की  ईमानदार सोच , सच्चाई और नेक नियत है अथवा यह मौजूदा सरकार द्वारा राष्ट्र और जन सामान्य के हित से जुड़े असल मुद्दों से देशवासियों का ध्यान वर्तमान में हावी ज्वलंत मुद्दों से हटाने के लिए छदम राष्ट्रवाद, हिन्दू मुस्लिम, मंदिर मस्जिद की तरह ही एक प्रपंच मात्र है ?

यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि देश हालिया समय में गहन आर्थिक संकट, महंगाई, बेरोजगारी, नगण्य शिक्षा व  चिकित्सा सुविधाओं से जूझ रहा है और देश का युवाओं का कमोबेश एक पढ़ा लिखा तबका धर्म और राष्ट्रवाद की अफ़ीम की पिनक में देश को गर्त में जाते हुए ना सिर्फ देख रहा है बल्कि ख़ुद इसके लिए जानते बुझते जिम्मेदार बना हुआ है!

यह स्थिति उस वक्त बेहद भयावह, नाटकीय और हास्यपद हो जाती है जब देश का प्रधानमंत्री और सरकार आमजन से जुड़े मुद्दों को पूरी तरह से  नजरअंदाज कर छदम राष्ट्रवाद, मंदिर मस्जिद, हिंदू मुस्लिम, पाकिस्तान, काला जादू, सेना जैसे मुद्दों के पीछे छुप कर अपने, अपनी राजनीतिक पार्टी व अपने अमीर मित्रों के हित में कार्य करते हुए देशवासियों को बरगलाने का लगातार प्रयास करता रहता है यदि गत 8 वर्षों से चली आ रही देश की राजनीति और परिणीति पर नजर दौड़ाए तो यह निर्विवाद रूप से साबित हो जाता है कि भारत का प्रधानमंत्री टेलीविजन व रेडियो के माध्यम से सिर्फ अपने मन की बात करने का तो तमन्नाई है लेकिन देश और देशवासियों के हितों से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए किसी भी माध्यम से देश की जनता का सामना करने के लिए तैयार नहीं है! यहां अहम और मुख्य मुद्दा यह है कि वास्तव में क्या हम अथवा हमारी मौजूदा सरकार आजादी का अमृत महोत्सव बनाने की स्थिति में हैं ? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जो अपने भीतर देश और देशवासियों के हित से जुड़े सैकड़ों मुद्दे समेटे हुए हैं लेकिन न तो देश के प्रधानमंत्री ही इन सवालों का जवाब देने के इच्छुक हैं और ना ही सत्तारूढ़ भाजपा ही!  

मैं इस लेख के माध्यम से आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर सत्तारूढ़ भाजपा व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथित आजादी के अमृत महोत्सव के पीछे छिपी कथित राष्ट्रवाद की मुहीम को अपने हितों से पूरी तरह आंखें मूंद परवान चढ़ाने में दिन रात एक किए दे रही शिक्षित किंतु रोजी रोटी से महरूम युवा पीढ़ी व अन्य देशवासियों से सवाल करना चाहता हूं कि क्या हम आजादी का अमृत महोत्सव मनाने की स्थिति में है ? क्या देश में महंगाई कम हुई , शिक्षा का स्तर सुधर गया, चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराइ गई, दो करोड़ रोजगार उपलब्ध करा दिए गए हैं, नोटबंदी से आतंकवाद कम हुआ, कालाधन सामने आया, विदेशों से काला धन वापस आया,पाकिस्तान झुका, एक के बदले दस सिर आए, चाइना को लाल लाल आँखे दिखाई, महिलाओं को सुरक्षा मिली, गंगा साफ हुई, गौ हत्या बंद हुई, बीफ निर्यात पर रोक लगी, डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ, जीडीपी में सुधर हुआ, मंदी की मार पड़नी बंद हुई, भ्रष्टाचार कम हुआ,  घोटाले बंद हुए, जो गांव गोद लिए थे उनकी हालत सुधरी, सौ स्मार्ट सिटी बनकर तैयार हो गई, किसानों के लोन, गन्ने का एक हफ्ते में भुगतान होना शुरू हो गया, बिजली की दरें, किसानों द्वारा की जा रही आत्म हत्याएं कम हुई, जाति वाद, परिवार वाद खत्म हुआ नहीं ऐसा नहीं हुआ 

बल्कि इससे उलट इन समस्याओं में द्रुत गति से वृद्धि हुई है और लगातार हो रही है कैसे आइए इन आंकड़ों पर नजर दौड़ाते हैं पहले 

ड्राइविंग लाइसेंस ढाई सौ में बनता था अब लगभग साढ़े पांच हजार में बनता है, स्टील और सरिया की कीमत 36 सो रुपए थी अब 65 सो रुपए है, रेत 15 सो रुपए में मिलता था आज 6 हजार में मिलता है, सीमेंट का  कट्टा थी अब वही सीमेंट कट्टा 2 सो में मिलता था अब 6 सो में मिलता है, जो स्कूटी 63 हजार  में मिलती थी अब 95 हजार में  मिलती है, डिश का जो रिचार्ज सो रुपए में होता था वह अब साडे चार सो में होता है, जिस सिलेंडर की कीमत साढ़े चार सो थी वो साढ़े ग्यारह सो में मिल  रहा हूं बेरोजगारी की दर 2 प्रतिशत थी अब 22 प्रतिशत से भी अधिक है गरीबी रेखा से नीचे पहले 40 करोड़ लोग जीवन यापन कर रहे थे अब वही संख्या 80 करोड़ को भी लांघ चुकी है सरसों का तेल 70 रुपए में था अब दोगुनी कीमत में मिल रहा है पेट्रोल की कीमत ₹63 थी वही पेट्रोल आज ₹110 प्रति लीटर और डीजल 96 रुपए बिक रहा है 12 करोड़ से अधिक कंपनियों के दरवाजे पर लटका ताला बेरोजगारों को मुंह चिढ़ा रहा है इसके अलावा सब्जी खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे

आम आदमी की जेब और चूल्हा ख़तरे में है यह सरकार को दिखाई नहीं दे रहा इससे इतर हिन्दू को ख़तरे में बताकर भोली भाली देश की जनता को जरूर बरगलाने का काम लगातार किया जा रहा है जबकि हक़ीक़त यह है कि हिन्दू कभी ख़तरे में ना था ना होगा ना भारत में ना दुनियाँ भर में, अन्य देशों की बात करें तो इंडोनेशिया में 87% मुसलमान और 1.74% हिंदू हैं, मलेशिया में 63% मुसलमान 6.15 प्रतिशत हिंदू, अरब देशों में 99% मुस्लिम और 1% हिंदू, सिंगापुर में 7 फ़ीसदी हिंदू यूरोपियन देश ईसाई बाहुल्य हैं और हिंदुओं की तादाद 1.30 फ़ीसदी, वियतनाम में कुल आबादी का 1% हिंदू भी नहीं है थाईलैंड में 0.02 प्रतिशत हिंदू आबादी है जबकि भारत में 80% से अधिक हिंदू हैं, राष्ट्रपति हिंदू है उपराष्ट्रपति हिंदू है प्रधानमंत्री हिंदू हैं मुख्यमंत्री हिंदू हैं इसके अलावा 98% नौकरशाह हिंदू हैं बावजूद इसके हिंदू खतरे में है हिंदुत्व खतरे में है लेकिन हकीकत यह है कि ना तो हिंदुत्व खतरे में है और ना ही हिंदू बल्कि हिंदुओं की नौकरी, व्यापार, खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा,अमन शांति,भाईचारा वैज्ञानिक सोच देश की आर्थिक स्थिति एकता और अखंडता, बैंक, आर्थिक स्थिति खतरे में है! 

इसलिए इस देश के नागरिकों से खासकर शिक्षित युवाओं से अपील ये है कि अभी आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने का सही वक़्त नहीं है चूँकि अभी इस देश का गरीब, मजदूर, शिक्षित युवा, किसान अमृत महोत्सव मनाने की स्थिति में नहीं है, चूँकि वो हर रोज़ बदहाली,बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार का विष हर रोज़ पीने के लिए मजबूर है,

अगर सही मायनें में यह वक़्त है तो सरकार और सरकार के नुमाइंदों, जनप्रतिनिधियों से हमें जात पात धर्म, मंदिर,मस्जिद के लिए लड़वाकर अपना हित साधने में लगे मतलब परस्तों से चाहे फिर वो कोई भी क्यों ना हो किसी भी पार्टी से क्यों ना हो, यह पूछने का है की हमें हमारे हक़, हमारी जरूरतों, रोज़ी रोटी का अमृत कब उपलब्ध कराया जाएगा! और जब इस देश का प्रत्येक नागरिक, युवा और किसान खुशहाल होगा तब होगा वास्तविक आज़ादी का अमृत महोत्सव!