दूध में उबाल(सम्पादकीय)

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

दूध में उबाल

मदर डेयरी और अमूल ने एक बार फिर दूध के दाम दो रुपए प्रति लीटर बढ़ा कर लोगों पर बोझ और बढ़ा दिया।

थोक और खुदरा महंगाई के आंकड़े भले बताते रहें कि महंगाई घटने लगी है, लेकिन हकीकत में ऐसा दिखता नहीं। उन चीजों के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं जो आमजन की रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी हैं। आज से दूध और महंगा हो गया। मदर डेयरी और अमूल ने एक बार फिर दूध के दाम दो रुपए प्रति लीटर बढ़ा कर लोगों पर बोझ और बढ़ा दिया। जबकि ये दाम अभी मार्च में भी बढ़ाए गए थे।

अब दूसरी कंपनियों के लिए भी दाम बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया। दूध ऐसी चीज है जिसकी खपत सबसे ज्यादा होती है। शायद ही कोई घर हो जहां दूध इस्तेमाल न होता हो। वैसे भी चाय से लेकर होटल, रेस्तरां और मिठाइयां बनाने तक में इसका इस्तेमाल होता है। ऐसे में दूध से बनने वाली हर चीज भी और महंगी होगी। चाय की थड़ियों पर इसका असर कहीं ज्यादा दिखेगा। यानी दूध के दाम बढ़ने से सबसे ज्यादा मार गरीब पर ही पड़नी है।


दूध के दाम इस समय क्यों बढ़ाना पड़े, इसे लेकर कंपनियों के पास कोई नया कारण नहीं दिख रहा। दाम बढ़ाने की वजह बढ़ती लागत ही बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि पिछले पांच महीनों में दूध उत्पादन और इससे जुड़े खर्च तेजी से बढ़े हैं। गौरतलब है कि कंपनियां ज्यादातर दूध किसानों और पशुपालकों से ही खरीदती हैं। ऐसे में कंपनियों को किसानों से जिस दाम पर दूध मिलता है, वह दाम बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण माना जा सकता है। वैसे भी कंपनियां अपना लगभग अस्सी फीसद पैसा दूध खरीद पर खर्च करने की बात कहती रही हैं।

इस बार भी किसानों से दूध खरीद की लागत दस से ग्यारह फीसद बढ़ने की बात कही जा रही है। हालांकि किसानों की भी अपनी मजबूरी है। चारे के बढ़ते दाम से किसान भी संकट में हैं। ऐसे में बात घूम-फिर कर वहीं आ जाती है कि अगर कंपनियों को ही दूध महंगा मिलेगा तो वे सस्ता कैसे बेचेंगी। जाहिर है, उसकी लागत उपभोक्ता से ही वसूलेंगी। इसके अलावा कई कंपनियां परिचालन लागत बढ़ने की बात भी कहती रही हैं। बिजली महंगी होने से लेकर दूध की पैकिंग और ढुलाई जैसे खर्च भी लगातार बढ़ ही रहे हैं। इससे भी कंपनियों को दाम बढ़ाने का बहाना मिल गया।

यह सही है कि कंपनियों की लागत बढ़ रही है, लेकिन इस बढ़ती लागत की वसूली का रास्ता भी तो तर्कसंगत होना चाहिए। आम आदमी पर ही बोझ डाल कर लागत वसूलने को तो जायज नहीं ठहराया जा सकता। दूध कंपनियां दूध के अलावा भी कई तरह के उत्पाद बेचती हैं। मसलन, दही, छाछ, पनीर, चीज, आइसक्रीम और दूध से बनने वाली मिठाइयां भी। इनके दामों को थोड़ा समायोजित कर दूध के दाम स्थिर रखे जा सकते हैं।

हालांकि दूध के दाम बढ़ने से इनके दाम भी स्वत ही बढ़ जाते हैं। पर इनके दाम बढ़ने का असर उतना नहीं दिखता, जितना कि दूध महंगा होने से तत्काल दिखाई देने लगता है। अभी संकट यह है कि रसोई गैस से लेकर आटा, डबलरोटी जैसी चीजों सहित खाने-पीने की ज्यादातर वस्तुओं के दाम पहले से ही आसमान छू रहे हैं। पिछले महीने खाद्य पदार्थों पर जीएसटी ने मुश्किलें और बढ़ा दीं। उधर, पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने की चर्चाएं भी हैं। यानी महंगाई तो और बढ़ेगी। संकट यह है कि लोगों की आमद बढ़ नहीं रही है। ऐसे में दूध के बढ़े दाम क्या और मुश्किलें पैदा नहीं करेंगे?