मदन लाल ढींगरा जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटी-कोटी नमन

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

हरदिन पावन
मदन लाल ढींगरा जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटी-कोटी नमन

                17 अगस्त 1909 को मदन लाल धींगरा को फांसी हुई थी. वो लड़का जिसने लंदन में कर्जन वायली को गोली मार दी थी. उस वक़्त, जब गोरे साहिबों के सामने हिन्दुस्तानी खड़े होने से भी डरते थे.

               

उनके पिता ने अखबार में छपवा दिया था कि इस लड़के से मेरा कोई लेना-देना नहीं. घरवालों ने उस लड़के को पागल कह दिया था. जिसके खानदान वाले आज भी उसे अपना नहीं मानते. इतना ही नहीं 2015 में मदन लाल के बलिदान की याद में हुए समारोह में भी नहीं आये.
                आज़ादी के कॉन्सेप्ट तो बचपन से ही क्लियर थे. 8 फ़रवरी 1883 को अमृतसर में पैदा हुए मदन लाल धींगरा. पिताजी सिविल सर्जन थे. नामी आदमी थे. इतने कि अंग्रेज अफसर कर्जन वायली इनके दोस्त हुआ करते थे. मदन 6 भाई थे. सारे लन्दन गए थे पढ़ने के लिए.

                 पर उसके पहले ही मदन लाल धींगरा ने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. लाहौर में MA करते हुए मदन स्वदेशी आन्दोलन के मूड में आ गए. कॉलेज में इंग्लैंड से आये कपड़ों के खिलाफ धरना दे दिया. कॉलेज से निकाल दिए गए. मदन का कॉन्सेप्ट एकदम क्लियर था. गरीबी, अकाल सब पर अच्छा-खासा पढ़ा था इन्होंने. पता था कि भारत की ‘भलाई’ का दंभ भरता अंग्रेजी राज ही इसकी वजह है. और स्वराज उपाय.

                कॉलेज छूटने के बाद मदन ने कालका में क्लर्क का काम करना शुरू कर दिया. पर वहां भी काम करने वालों की यूनियन बनाने लगे. तो छोड़ना पड़ा. फिर बम्बई चले गए. कुछ-कुछ करते रहे. बड़े भाई ने सलाह दी कि लंदन चले आओ तुम. सारे भाई यही हैं. 1906 में मदन लाल ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लन्दन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया.

                लन्दन में मदन लाल की मुलाकात हुई विनायक सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा से. वही वर्मा जी जिनकी अस्थियाँ नरेन्द्र मोदी लन्दन से लाये थे. दोनों लोगों को मदन लाल की स्पष्ट सोच और हिम्मत पसंद आई. सावरकर क्रांति में भरोसा रखते थे. उनका मानना था कि क्रांति लानी है, चाहे जैसे आये. ऐसा कहा जाता है कि सावरकर ने ही मदन लाल को बन्दूक चलानी सिखाई. और अपने अभिनव भारत मंडल में जगह दी. 
                  इसी दौरान बंगाल का विभाजन हो गया. इस विभाजन ने देश के लोगों में काफी गुस्सा भर दिया था. क्योंकि बिलावजह लोग एक-दूसरे से अलग होने लगे थे. मदन लाल ने इस विभाजन के खिलाफ कुछ करने का मन बना लिया.

                1 जुलाई 1909 को इम्पीरियल इंस्टिट्यूट, लन्दन में एक फंक्शन हुआ. इसमें सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, इंडिया के असिस्टेंट कर्जन वायली भी आये. मदन लाल ने अपने भाई से कह कर वहां जाने का जुगाड़ बना लिया. फंक्शन चलता रहा. मदन लाल मौके का इन्तजार करते रहे थे. फंक्शन ख़त्म होने के बाद जब वायली घर जा रहा था, मदन लाल धींगरा उसके सामने आ गए. चार फायर किये. सारी गोलियां वायली को लग गईं. इसी बीच एक पारसी डॉक्टर वायली को बचाने सामने आ गया. दो गोलियां उनको भी लग गईं.

                23 जुलाई को मदन लाल का ट्रायल शुरू हुआ. उन्होंने ब्रिटिश कोर्ट को अथॉरिटी मानने से ही इनकार कर दिया. कहा कि मैं अपने डिफेन्स में कुछ नहीं कहना चाहता. मुझे कोई वकील भी नहीं चाहिए. पर मैं अपने इस काम के बारे में जरूर बताऊंगा.

                 पहली बात तो ये कि मैं इस कोर्ट को ही नहीं मानता. इस कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है मुझ पर केस चलाने का. पिछले 50 सालों में 8 करोड़ हिन्दुस्तानियों की हत्याओं के जिम्मेदार ब्रिटिश क्या चलाएंगे केस. मेरे देश के नौजवानों को फांसी दी हैं इन लोगों ने. 

                जब जर्मन तुम पर हमला करेंगे, तो क्या कहोगे अपने लोगों से? लड़ने के लिए ही बोलोगे ना? वही मैं कर रहा हूं. जब तुम्हारे लोग जर्मन को मारेंगे तो देशभक्त हो जायेंगे. तो मैं क्या हूं? मेरी इच्छा है कि तुम लोग मुझे फांसी दो. मेरे देशवासी इसका बढ़िया से बदला लेंगे.

                    मैं फिर कहता हूं कि मैं तुम्हारे कोर्ट को नहीं मानता. तुम अभी ताकतवर हो. जो चाहे, करो. पर हमारा दिन भी आएगा.

                  कोर्ट ने फांसी की सजा दी. वहां से बाहर निकलते हुए मदन लाल ने जज को थैंक यू बोला.

                 ब्रिटेन के भावी प्रधानमन्त्री चर्चिल ने प्राइवेट में किसी से कहा था, मदन लाल धींगरा की कोर्ट स्पीच के बारे में: देशभक्ति के नाम पर बोली गयी सबसे अच्छी स्पीच.
                  कहा जाता है कि फांसी होने से पहले मदन लाल धींगरा ने कहा था:

                 मैं ऐसा मानता हूं कि जो देश किसी विदेशी के हाथों बन्दूक की नोक पर खड़ा है, वो हर क्षण युद्ध की पोजीशन में है. ये एक ऐसा युद्ध है जिसमें हमारे पास हथियार नहीं हैं. तो जो मुझे मिला, मैंने उसी से हमला कर दिया. ना तो मैं अमीर हूं, ना मेरे पास बहुत ज्यादा बुद्धि है. मेरे पास खून देने के अलावा कुछ नहीं है. वो मैंने कर दिया. 

         भारत के लोगों को अभी बस ये सीखना है कि कैसे जान दें. और सिखाने का सबसे बढ़िया रास्ता यही है. मैं बार-बार जन्म लेकर यही करना चाहूंगा. वन्दे मातरम.
                मदन लाल ढींगरा जी को उनके बलिदान के लिए कोटि-कोटि प्रणाम्