डोभाल की रणनीति और अफगानिस्तान में चीन-पाकिस्तान का पलट गया पूरा खेल, तालिबानी शासन में कैसे मजबूत हुई भारत की पकड़?

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

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भारत की कूटनीति के चलते तालिबान के सुर बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। तालिबान ने अपील की है कि सभी हिंदू और सिख अफगानिस्तान वापस लौट आए, जिन्होंने डर की वजह से देश छोड़ा था। तालिबान ने ये भी आश्वासन दिया है कि वो इनकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखेगा।

दुनिया के नक्शे पर ऐसा देश जो बीते दो दशकों में दक्षिण एशिया की राजनीति पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। उस मुल्क का नाम है अफगानिस्तान जहां 21 साल के लंबे अतंराल के बाद 2021 के अगस्त में बड़े बदलाव देखने को मिला और तालिबान राज ने फिर से दस्तक दे दी। तालिबान से पाकिस्तान की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। यहां तक की तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद उस वक्त के पाकिस्तानी आका इमरान ने इसे गुलामी की बेरियों से आजाद होने सरीखा बताया था। लेकिन भारत के भौगोलिक लिहाजे से भी अफगानिस्तान बेहद महत्वपूर्ण रोल निभाता है। लेकिन अब भारत की कूटनीति के चलते तालिबान के सुर बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। तालिबान ने अपील की है कि सभी हिंदू और सिख अफगानिस्तान वापस लौट आए, जिन्होंने डर की वजह से देश छोड़ा था। तालिबान ने ये भी आश्वासन दिया है कि वो इनकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखेगा। अब ऐसे में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि ऐसा क्या हो गया जो तालिबान ने पाकिस्तान का साथ छोड़ भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। बता दें ऐसा नहीं है कि ये बस रातो रात बदलाव आ गया है, बल्कि ये भारत की कूटनीति का नतीजा है।


सालों बाद तालिबान ने जब दोबारा अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की थी उस वक्त लग रहा था कि तालिबान भारत के लिए फिर से मुसीबत बन जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, एनएसए अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मिलकर ऐसी रणनीति बनाई जिसने अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान का पूरा खेल ही पलटकर रख दिया। तालिबान और पाकिस्तान के बीच नजदीकी के बावजूद भारत की यहां मौजूदगी कमजोर नहीं हुई है। बीते साल नवंबर के महीने में भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भारत की राजधानी नई दिल्ली में अफगानिस्तान पर तीसरे क्षेत्रीय संवाद की मेजबानी की थी। इस दौरान भारत की तरफ से ये साफ कर दिया गया था कि उसका उद्देश्य तालिबान को उखाड़ फेंकने के लिए किसी गठबंधन से हाथ मिलाना नहीं, अपितु आईएसआईएस-के और अलकायदा जैसे संगठनों को रोकना है। जून 2022 में जब दोनों के बीच दोबारा बातचीत हुई तो भी भारत ने यही बात दोहराई। 

भारत ने तालिबान में विकास के लिए बहुत सारे काम किए हैं। जिसके बाद तालिबान भी अब ये समझ चुका है कि भारत के साथ ही उसकी तरक्की और बेहतरी के रास्ते खुलते हैं। भारत की तरफ से यह संकेत देने की कोशिश हुई कि वह अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहता है। अफगानिस्तान की राष्ट्रीय एयरलाइन को भारत उतरने की अनुमति दिए जाने के मामले में भी अभी विचार किया जा रहा है। अफगानिस्तान में भारत की एंट्री अब भारत के लिए खतरे की घंटी बन चुकी है। ये इस बात का इशारा है कि भारत के रहते हुए अफगानिस्तान में पाकिस्तान की दाल नहीं गलने वाली है।  भारत अपनी एक टीम को काबुल दूतावास पर तैनात कर चुका है।