क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 983711714
शमशान भूमि
आज यूँ ही चलते चलते चर्चा होने लगी कि शमशान भूमि भी बिरादरी के आधार पर अलग अलग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। कुछ को यह जान कर आश्चर्य भी हुआ ठीक वैसे ही जैसे हमें हुआ था ।
बल्कि आज हमने विचार किया मन ही मन में कि ऐसी परम्परा भला क्यूँकर चली ? राजा महाराजाओं के काल में शायद ऐसा नहीं था ।मुसलमानों के आने पर कब्रिस्तान बनने ही थे ।शायद भूमि कानून कुछ अलग प्रकार के रहे होंगे ।मुगलकाल में भी कर प्रणाली रही होगी ।
हम बिना खोज खबर के ही एक सामान्य सोच आपके समक्ष रख रहे हैं ।
अंग्रेजी शासन आया तब शासन प्रणाली में अमूलचूल परिवर्तन हुए होंगे जिसमें भूमि के कानून उनके अनुसार बने होंगे ।और हमें ऐसा प्रतीत होता है कि आजादी के बाद भी सम्भवतः वही कानून चल रहे हैं क्योंकि अक्सर अखबारों में हम पढ़ते रहते हैं ।तीन बिंदुओं पर तो हम भी कह सकते हैं ।
1-सिंचाई विभाग की कोठी जिनका अब कोई उपयोग नहीं है ।बड़ी मशक्कत के पश्चात राजकीय कन्या इण्टर कोलेज के लिए हस्तांतरित करवाई।
2-हमारे गाँव में आज भी नीलकोठी की भूमि है जिसमें अंग्रेजी शासन में नील की खेती होती थी और आज उसका कोई उपयोग नहीं ।स्नातक महिला कोलेज के लिए हस्तांतरण हेतु प्रस्ताव शासन में गया हुआ है ।
3-शमशान भूमि का आवंटन जातिगत आधार पर होना ।हमारे गाँव में जाटव,बाल्मीकि, प्रजापति, वैश्य समाज की और अन्य की भी हो अलग शमशान भूमि है ।जिसमें जाटव समाज की बन गयी।प्रजापति समाज को भी संघर्ष के पश्चात प्राप्त हुई ।
बाल्मीकि समाज ,वैश्य समाज की शमशान भूमि सशक्त समाज के द्वारा कब्जे में है ।उनको भी कब्जा मुक्त कराने के लिए अभियान चलेगा ।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम आज भी परतंत्रता के कानूनों के अधीन हैं ।
अनिला सिंह आर्य