क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
(सम्पादकीय)
सेहत का मोर्चा
कोरोना काल में जब संक्रमण से बचने के लिए बंदी की गई, तब नियमित चिकित्सीय सेवाएं बाधित हो गईं।

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया की व्यवस्थाओं के सामने गंभीर चुनौतियां पेश की हैं। उनमें एक बड़ी समस्या स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी पैदा हुई है। खासकर विकासशील देशों में, जहां लंबे समय से चली आ रही कुछ बीमारियों को जड़ से समाप्त करने के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं। ये देश पहले ही कुपोषण, जलजनित बीमारियों आदि से पार पाने की कोशिश कर रहे हैं। उसमें कोरोना काल में जब संक्रमण से बचने के लिए बंदी की गई, तब नियमित चिकित्सीय सेवाएं बाधित हो गईं।
जाहिर है, नियमित लगने वाले टीकों का चक्र टूटने या पूरा न हो पाने से उन बीमारियों के उभरने का खतरा बना रहेगा। किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त करने के लिए उसके विषाणु का चक्र तोड़ना बहुत जरूरी होता है, नहीं तो फिर से भयावह रूप में उसके पांव पसारने का खतरा रहता है। भारत जैसे देश में चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों के विषाणु का चक्र तोड़ने में वर्षों लग गए। पोलियो के लिए लंबे समय तक अभियान चलाए रखना पड़ा। मगर काली खांसी, टिटनेस, हेपेटाइटिस आदि पर काबू पाना अब भी चुनौती है।
दरअसल, भारत जैसे देश में न तो हर व्यक्ति को पीने का साफ पानी उपलब्ध है, न साफ वातावरण में रहने की जगह और न बहुत सारे लोगों को उचित पोषण मिल पाता है। इसके चलते भुखमरी और कुपोषण यहां सबसे बड़ी समस्या है। हर साल इनके आंकड़े कुछ बढ़े हुए ही दर्ज हो रहे हैं। महिलाओं में रक्ताल्पता का आंकड़ा चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है। ऐसे में शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर होने से उनके फैलने की आशंका लगातार बनी रहती है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने ऐसी बीमारियों पर काबू पाने के मकसद से कई स्वास्थ्य योजनाएं चला रखी हैं और गांव स्तर पर भी इनसे संबंधित सेवाएं उपलब्ध कराने को लेकर गंभीरता दिखाई देती है।
मगर बचपन में ही रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाए, तो आगे चल कर व्यक्ति के स्वस्थ रह पाने की संभावना क्षीण ही रहती है। अब कोरोना का प्रकोप काफी कम हो चुका है, जीवन सामान्य गति में लौट रहा है, स्वास्थ्य सेवाओं पर महामारी से लड़ने का दबाव कम है। इसलिए अब टीकों को सुचारु करने के साथ-साथ उन बच्चों पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है, जो नियमित टीकों से वंचित रह गए या जिनका टीकों का चक्र पूरा नहीं हो पाया। अब तो हर गांव तक स्वास्थ्य कर्मियों की पहुंच है, उन्हें ऐसे बच्चों की पहचान और उन्हें सहायता उपलब्ध कराने में लगाया जा सकता है। मगर इसके साथ ही उन बिंदुओं पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है, जिसकी वजह से बच्चों को उचित पोषण नहीं मिल पाता।