क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
सवाल: क्या अंक पत्र किसी विद्यार्थी की काबिलियत बताने में सक्षम है...?
सोशल मीडिया पर बेतहर प्रतिशत अंक लाने वाले बच्चों को प्रोत्साहन, कम प्रतिशत अंकों के साथ पास होने वाले बच्चों के लिए बन रहा है अवसाद की वजह...?
शुक्रवार को सेन्ट्रल बार्ड ऑफ सैकेन्डरी ऐजूकेशन (सीबीएसी) दिल्ली द्वारा वर्ष 2021-22 के परिणामों की घोषणा कर दी गई सीबीएसी द्वारा घोषित परीक्षा परिणामाें के तहत बहुत से बच्चों ने 85 से अधिक प्रतिशत अंकों के साथ बेहतर प्रदर्शन किया है, मैं अपने इस लेख के माध्यम से सीबीएससी इंटरमीडिएट और हाईस्कूल परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले तमाम विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देने के साथ उनके उज्जवल भविष्य की कामना करना हुं, साथ ही उन विद्यार्थियों को भी यह संदेश देना चाहुंगा कि असफलता या परीक्षा में कम प्रतिशत अंकों के साथ पास होने के मायने सब कुछ खत्म हो जाना नही है दरअसल असफलता हमारे लिए यह सीख लेकर आती है कि हमारे द्वारा सफलता पाने के लिए किए गये प्रयास नाकाफी थे और यदि हम भविष्य में सफल होने का ईमानदारी से प्रयास करें तो जीवन में सफलता को आत्मसात करना कोई बहुत बड़ी बात नही हैं, इसलिए निराश होने की जरूरत बिल्कुल नहीं है बस अपनी गलतियों से सबक लेकर उन्हें सुधारते हुए फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है।
लेकिन यहां मुद्दा यह नहीं है कि कौन विधार्थी अच्छे प्रतिशत अंकाें के साथ उत्तीर्ण हुआ और कौन बेहतर प्रतिशत अंक ला पाने में नाकामयाब रहा, इस सम्बन्ध में हमेशा से मेरें मन में जो ज्वलंत सवाल बार-बार सिर उठाता रहा है वो यह है कि क्या सोशल मीडिया पर बेहतर प्रतिशत के साथ परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए छात्र-छात्रओं के परिजनों और अन्य लोगों द्वारा दिया जा रहा प्रोत्साहन, बधाई अथवा शुभकामनाएं जायज
हैं? क्या सोशल मीडिया पर अपने बच्चों के बेहतर प्रदर्शन का ढिढौरा पीटना सही है?
इस सवाल के जवाब में सबका अपना अलग-अलग नजरिया हो सकता है लेकिन जहां तक मेरा मानना है तो वह यह है कि दुनियां की कोई भी मार्कशीट किसी भी बच्चे के भीतर छुपी नरसर्गिक प्रतिभा, उसकी काबिलियत बयां नहीं कर सकती है। यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि जो बच्चा पढाई में औसत है वह अपनी आइंदा जिन्दगी में सफलता के आसमान पर धूमकेतू की भांति चमक नहीं बिखेर सकता है, ऐसा कहने के पीछे दुनियां भर में भरे पडे़ वो तमाम उदाहरण हैं जिन्होंने स्कूल और कालेज अथवा अन्य स्तर पर जारी परीक्षाफल (अंकपत्रें) में बेशक बेहतर प्रदर्शन नहीं किया था लेकिन आगे चल कर वे लोग अपनी-अपनी रूचि के क्षेत्र में बेहद सफल रहे, उन्होंने इतिहास रचा और आने वाली पीढियों के लिए उदाहरण पेश किए। खेल, विज्ञान, इतिहास, रसासन शास्त्र, भूगोल, अंतरिक्ष विज्ञान, व्यापार, पत्रकारिता, चिकित्सा, पुलिस और प्रशासनिक सेवाआें सहित ऐसे दर्जनों क्षेत्रें में ऐसे सैेंकड़ों उदाहरण मौजूद हैं जो शुरूआती दिनों में पढाई में बेहद औसत दर्जे के छात्रें में गिने जाते थे लेकिन उन्होनें स्कूल-कालेजों द्वारा जारी अंकपत्रें में मिले अंक प्रतिशत को मिथक साबित कर सफलता की उंचाईयों को छूकर तमाम आलोचनाओं और किदवंतियों को धूल धूसरित करके दिखाया।
परीक्षाओं में बेहतर प्रतिशत अंकों के साथ सफल होने वाले विद्यार्थियों की निसंदेह सराहना की जानी चाहिए और वे प्रोत्साहना के भी हकदार हैं लेकिन कम प्रतिशत अंकों के साथ परिक्षाओं में उत्तीर्ण हुए छात्र-छात्रओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि मेरा यह मत है कि सोशल मीडिया पर बेतहर प्रतिशत अंक लाने वाले बच्चों को मिलने वाला प्रोत्साहन कम प्रतिशत अंकों के साथ पास होने वाले बच्चों के लिए कहीं ना कहीं अवसाद की वजह बनकर उनमें खुद के प्रति हीन भावना को जन्म देने वाला साबित हो रहा है
मैं हमेशा से इस बात का पूरजोर समर्थन करता रहा हूं कि प्रतिभा अंक पत्रें में नहीं बल्कि काबिलियत व्यक्ति के व्यक्तित्व में छुपी होती है। यहां मैं अपनी इस बात के समर्थन के लिए एक बहुचर्चित हिन्दी फिल्म थ्री इडियट का उदाहरण देना चाहुंगा जिसमे फिल्म का नायक अपने सह नायक को यह कह कर प्रोत्साहित करता है कि सफलता के पीछे मत दौड़ो काबिल बनो सफलता खुद झक मारकर तुम्हारे पीछे आयेगी।
अपने बच्चों की सफलता पर खुश होकर सोशल मीडिया पर उनकी तारीफ और प्रोत्साहन सम्बन्धि पोस्ट शेयर करने वाले अभिभावकों की मानिसकता निसंदेह यह दर्शाती है कि वे अपने बच्चों से पढाई के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं हालांकि सभी अभिभावकों को अपने बच्चों से कुछ ऐसी ही उम्मीद होती है, अभिभावकों की अपने बच्चों से बेहतर करने की उम्मीद को मैं गलत साबित करने को तमन्नाई नहीं हुं लेकिन यहां गौर करने लायक तथ्य यह है कि हम अपनी इस उम्मीद का बोझ जाने अनजाने में अपने बच्चों पर लाद रहे हैं और बच्चें अपनी खुद की जिज्ञासाओं और इच्छाओं का बलिदान अपने अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए किए दे रहे हैं और जब उन्हें लगता है कि वे अपने माता पिता की उन उम्मीदों पर खरा नही उतर पा रहे हैं तो उन्हें या तो अवसाद यानि डिप्रेशन घेर लेता है या फिर उन्हें अपना जीवन ही बेकार नजर आने लगता है नतीजतन वे आत्महत्या करने के रास्ते का चुनाव कर अपनी ईहलीला समाप्त कर लेते हैं
दुनियाभर में आत्महत्या से जुडे़ आंकडे़ बेहद चौकानें और भयभीत करने वाले हैं आंकड़ों की जद में दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष आत्महत्या करने वालों की संख्या करीब 8 लाख है जिसमे से आत्महत्या करने वाले करीब 1 लाख 35 हजार लगभग 17 प्रतिशत लोग भारतीय होते हैं जबकि दुनिया के अलग-अलग देशों में निवास कर रहे भारतीय लोगों का प्रतिशत करीब 17-5 है। जानकारों को कहना है कि 2016 के बाद आत्महत्या के मामलों में 23 हजार 315 लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या की दर से वृद्धि दर्ज की गई है, आत्महत्या करने के कारणों का शोध करने वालों के अनुसार दुनियां भर मे प्रतिघंटा एक छात्र आत्महत्या कर मौत को गले लगा लेता है।
वर्ष 2012 में जारी लैंसेट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आत्महत्या करने वालों की उम्र 15 से 29 वर्ष के बीच होती है और इनमे सबसे अधिक कैरियर बनाने और परिक्षाओं में सफल ना होने के डर से अवसाद ग्रसित आत्महत्या करने वाले छात्रें की संख्या बेहद अधिक है।
लब्बोलुआब यह है कि बच्चें अपने सपनों को अपने मां-बाप की इच्छाओं की बली चढा रहे हैं। दरअसल हम इस सच्चाई से इंकार नहीं कर सकते कि हम जाने अनजाने अपनी इच्छाओं का बोझ अपने बच्चों के कंधे पर डाल रहे हैं और इस तथ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर रहे हैं कि हमारा बच्चा अपनी जिन्दगी में आखिर करना क्या चाहता है, वह कैरियर के तोर पर किस क्षेत्र का चुनाव करना चाहता है, हम तो बस यह इच्छा पाले रहते हैं कि वो अच्छे प्रतिशत के साथ पास हो, हम जो चाहते है वो उस क्षेत्र को अपने कैरियर के तोर पर चुने, लेकिन अपनी इच्छाओं को पूरा कराने के चक्कर में हम यह ध्यान नहीं देते कि हमारे बच्चा क्या करना चाहता और किस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं, जब अनमनें ढंग से वो हमारे द्वारा उस पर जबरन लाधी गई इच्छाओं के अनुसार अनमने मन से उस क्षेत्र का चुनाव कर लेता हैं तो सफलता की गांरटी का प्रतिशत सबसे निचले पायदान पर चला जाता है जिसका नतीजा होता असफलता, अवसाद और फिर आखिर में आत्महत्या।
मैं इस लेख के माध्यम से सिर्फ इतनी गुजारिश सभी अभिभावकों से करना चाहता हुं कि अपने बच्चों पर भरोसा जताना शुरू किजिए, वो परीक्षा में कितने प्रतिशत अंक के साथ पास हुआ है, उसने स्कूल-कालेज टॉप किया है या नहीं किया है, उसका प्रतिशत अन्य बच्चों के मुकाबले कम आया या ज्यादा नहीं आया तो क्यों नही आया, उसे भविष्य में आप अपने मनमुताबित इंजिनियर, डाक्टर, साईंसिटिस्ट या कुछ ओर बनाना चाहते है जैसी इन सब बातों को अपनी सोच और जेहन से ब्लात खुंरच कर फेंक दिजिए, बच्चों को स्पेश दिजिए, उनसे बात करिए उनसे यह जानने की कोशिश करिए कि वो आखिर चाहते क्या हैं, वो किस क्षेत्र का चुनाव करना चाहता है कैरियर के तौर पर। और जब ऐसा होगा तो निसंदेह हम अपने राष्ट्र को बेहतर भविष्य दे पाएंगे। बेहतर खिलाड़ी, वैज्ञानिक, इतिहासकार, रसासन शास्त्री, भूगोल शास्त्री, अंतरिक्ष वैज्ञानिक, व्यापारी, पत्रकार चिकित्सक, आईएएस और आईपीएस दे पाएंगे।
देखने और सोचने वाली बात यह है कि हमें अपनी इच्छाओं का अनमनें मन से बोझ ढोते और असफल होने पर जहर खाए, पंखों से लटके आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर रहे बच्चे चाहिए या फिर हंसते, खेलते मुस्कुराते अपने जीवन में और कैरियर में आगे बढते नित नये किर्तिमान स्थापित कर हमारा और समाज का नाम रोशन करते बच्चे। फैंसला हमें खुद करना है।