पानी के मामले में प्रकृति का मिस्ड कॉल सुनना होगा(सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

पानी के मामले में प्रकृति का मिस्ड कॉल सुनना होगा

भारत सरकार के जल जीवन मिशन के तहत अब ग्रामीण महिलाओं को पीने का पानी लाने के लिए अतिरिक्त मील नहीं चलना पड़ेगा। 2019 में मिशन के शुभारंभ के बाद से ग्रामीण परिवारों को आसानी से रहने के लिए 6.37 करोड़ से अधिक नल कनेक्शन प्रदान किए गए हैं। देशभर के 108 जिले ‘हर घर जल’ हो गए हैं, यानी इन जिलों के हर ग्रामीण परिवार को नल से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो रही है, और कोई भी घर अछूता नहीं है।


यह शुभ प्रयास है। जल जीवन मिशन की परिकल्पना भी एक गंभीर सोच है, जहां ग्रामीण भारत के सभी घरों में 2024 तक व्यक्तिगत नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने की बात कही गई है। साथ-साथ हम सभी ने भारत में केदारनाथ बाढ़, सूखा और जल प्रदूषण देखा है और प्रकृति का ऐसा प्रकोप प्रकृति और पानी के प्रति मानव स्वभाव को नीचा दिखाने की एक दुखद कहानी है।

हालांकि केपटाउन जल संकट ने हमारी शानदार नींद को थोड़ा तोड़ दिया है, फिर भी बीबीसी के सर्वेक्षण के अनुसार अगर लोग जीवन के प्रति अपने भौतिकवादी दृष्टिकोण से बाहर नहीं आएंगे तो बेंगलुरु भी उसी भाग्य का सामना करेगा। आज भारत के बहुत-से राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। बीबीसी हिंदी के इस समाचार ने मेरे मन को बहुत उद्वेलित किया कि एक बाल्टी पानी के लिए लोग अपनी जिंदगी दांव पर लगा देते हैं।

चाहे दिल्ली हो या खड़ीमल गांव, बेंगलुरु हो या केपटाउन- इंसान, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों को पानी तो चाहिए ही। पानी को शुद्ध बनाने के लिए प्रकृति से हमें कई विकल्प मिलेंगे लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि प्रकृति और पानी के बीच मानव की महत्वाकांक्षा की भी एक शक्तिशाली उपस्थिति है और भूजल में तो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ और अवसर प्रदान करने की क्षमता है।

संयुक्त राष्ट्र की परियोजनाओं के अनुमानों के अनुसार 2030 में ताजे पानी की वैश्विक मांग 40% तक आपूर्ति को पार कर जाएगी। नया शोध अधिक खतरनाक रहा है क्योंकि यह पुष्टि करता है कि 1.8 अरब लोगों को कम से कम आधे साल के लिए पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के पानी का केवल 2.53% ही ताजा पानी है और 1.3 अरब की आबादी वाले भारत में वैश्विक मीठे पानी के भंडार का केवल 4% हिस्सा है।

इस प्रकार पीने के पानी और खाद्य उत्पादन के लिए ताजे पानी का केवल एक छोटा प्रतिशत उपलब्ध है, जो जनसंख्या की बढ़ती वृद्धि के साथ कम हो रहा है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और मौसमी वर्षा परिवर्तन, हाइड्रोलॉजिकल चक्रों में परिवर्तन के साथ इस गंभीर स्थिति को और बढ़ा रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में जलसंकट का अधिक समझदारी से इलाज करना अत्यावश्यक है। मनुष्य नागरिक से अधिक उपभोक्ता बनता जा रहा है।

वह पानी को एक ब्रांड और कोल्ड्रिंक्स समझने लगा है। जिस तरह से पेड़ काटे जा रहे हैं और बड़े-बड़े अपार्टमेंट बन रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में मनुष्य और स्वार्थी होता जा रहा है। पहले वह जल को गंदा करता है फिर ब्रांड वैल्यू के साथ उसे बेचता है। मध्यवर्ग का उपभोक्ता पानी की बरबादी से कोताही नहीं करता। शहरी जीवन शैली में पानी सील्ड बॉटल है, वहीं गरीबों को दूषित पानी प्राप्त करना पड़ रहा है।

आखिर सभी को सिर्फ पानी नहीं चाहिए बल्कि शुद्ध जल चाहिए। कहां से एक गरीब के घर फिल्टर लगेगा? मनुष्य और प्रकृति के संबंध की अशुद्धि को बढ़ते मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग की विशाल क्रयशक्ति के साथ भी देखा जा सकता है। जल चक्र पानी से शुरू होता है और पानी पर ही समाप्त होता है। जल प्रबंधन विशेषज्ञ प्रो. अर्जेन होकस्टारा का मानना है कि सभी पर्यावरणीय समस्याओं में पानी की कमी सबसे ऊपर है। इस संकट को नजरअंदाज करने का कोई तरीका नहीं है। जरूरी है जल साक्षरता और जल संवेदनशीलता।

हालांकि, भारत के संविधान में जल शिक्षा प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 51-ए (जी) के भाग IV-ए में मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया है और यह परिकल्पना की गई है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह जंगल, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करे। पानी के इस पहलू को महसूस करना होगा लेकिन उपभोक्ता चरित्र से नहीं बल्कि एक प्रबुद्ध इंसान के रूप में। यदि नहीं तो प्रकृति से ऐसे मिस्ड कॉल आते रहेंगे। याद रहे : बिन पानी सब सून।

पानी को बाजार उत्पाद माना जा रहा है क्योंकि एक बढ़ता उपभोक्ता वर्ग है। कोविड के दौर में ऑक्सीजन की भी यही प्रकृति थी। जो हमें प्रकृति ने सुलभ कराया, हमने उसे बाजार के मापदंड पर परखा।