क्लूटाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन जीवनदायिनी, पुण्यदात्री, पापहारिणी, जगततारिणी मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। स्वर्ग से गंगावतरण सहज कार्य नहीं था। इसकी पृष्ठभूमि में वर्षों की साधना, कठिन तप एवं अनवरत प्रयास सम्मिलित थे। पुराणों में वर्णित कथानुसार इक्ष्वाकुवंशी महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया।
तदनुसार यज्ञ का घोड़ा स्वतंत्र विचरण करता है और जिस प्रदेश से गुजरता है वहां का शासक या तो अधीनता स्वीकार कर लेता है अथवा युद्ध करता है। यज्ञाश्व घूमते घूमते कपिल मुनि के आश्रम जा पहुंचा। वहां उसे ढूंढ़ने निकले सगर के पुत्रों और प्रजाजनों को यह भ्रम हो गया कि अश्व कपिल मुनि ने जानबूझकर अपने पास रख लिया है और वे उनको अपशब्द कहने लगे।
इस कोलाहल से तपस्यारत कपिल मुनि का ध्यान भंग हुआ और उनकी योगाग्नि से वे 60000 पुत्र और प्रजाजन भस्म हो गए। सगर के पौत्र अंशुमान ने कपिल मुनि को प्रसन्न कर उनकी मुक्ति का उपाय पूछा। ज्ञात हुआ कि गंगाजी ही इन अतृप्त, असमय कालकलवित आत्माओं को मुक्त कर सकती है। अंशुमान तुरंत तपस्या में लीन हो गए। उनके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी घोर तपस्या की किन्तु सफल ना हो सके तदुपरांत इस कुल को भगीरथ मिले। भगीरथ ने दृढ़संकल्प कर लिया था कि वे अपने पूर्वजों को मुक्ति अवश्य दिलाएंगे।
संकल्प ही असंभव को संभव और अप्रत्याशित को प्रत्याशित करता है। भगीरथ की तपस्या सफल हुई। ब्रह्मदेव गंगा जी को भेजने को तैयार हो गए पर समस्या यह आ गई कि हरहराती गंगा जी का वेग कौन सहन करेगा। इसप्रकार तो वे रसातल में समा जाएंगी। इस हेतु भगीरथ ने भगवान आशुतोष को प्रसन्न किया। शिव जी ने गंगा जी को जटाओं में धारण किया। अंतत: अतृप्त पितरों की प्रतीक्षा पूर्ण हुई। आगे-आगे भगीरथ चले पीछे गंगा मैया चल पड़ी। भागवत स्कंद, वामन आदि पुराणों के अनुसार हिमालय का कैलाश देवाधिदेव का निवास है।
इस हिमवान की चतुर्दिक प्रसारित चोटियां शिव के जटाजूट है। त्रिविष्टप अथवा आधुनिक तिब्बत के मध्य स्थित मानसरोवर झील पवित्रतम झील है । पांडवों ने भी स्वर्गारोहण के समय यहां की यात्रा की थी। मानसरोवर से प्रत्यक्ष नि:सृत तीन नदियां ब्रह्मपुत्र, सिन्धु और शतुद्री या सतलज है। उत्तर भारत की भूमि, जन को तृप्त करने गंगा जी का आना वरदान था। महाराज सगर के वंशजों ने अभूतपूर्व धैर्य, साहस, तपस्या और विश्वास के साथ प्रयत्न किया और अंत में सिद्ध कर दिया की असंभव, संभव की अंतिम सीमा है जिसे संकल्प से प्राप्त किया जा सकता है।
गंगाजल में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज उसे कभी खराब नहीं होने देते। अनेक वैज्ञानिक शोध ये साबित भी कर चुके हैं। गंगाजी में 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं। बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु बैक्टीरिया की कोशिका पर संक्रमणोपरान्त बैक्टीरिया की कोशिका को नष्ट कर देता है। इसी विचित्र कारक के कारण गंगा नदी के जल में सड़न नहीं होती और जल स्वच्छ व शुद्ध बना रहता है। गंगा दशहरा पर मां गंगा कि स्तुति के साथ हम सबको यह संकल्प करना चाहिए कि हम माता के समान हमारा लालन-पालन करने वाली, जलरूपी अमृत से हमें तृप्त करने वाली नदियों को प्रदूषित नहीं करेंगे। जल ही जीवन है और जल है तो कल है ये मात्र नारे बनकर ना रहें, हम अपने जलस्रोतों की संरक्षा करें, यही इन पर्वों को मनाए जाने का प्रमुख उद्देश्य है।