इन छापों में कुल दो करोड़ पिच्यासी लाख रुपए बरामद हुए और सोने के एक सौ तेंतीस सिक्के भी मिले। हालांकि जैन के घर पर सुबह से देर रात तक चली कार्रवाई में सिर्फ दो लाख उनयासी हजार रुपए ही मिलने की बात है। पर एक मंत्री के घर अगर छापा पड़ता है और कुछ भी मिलता है तो इससे जनता में एक नकारात्मक संदेश तो जाता ही है, भले सच्चाई कुछ भी क्यों न हो।
इससे पहले इसी साल अप्रैल में ईडी ने जैन के परिवार और उनकी कंपनियों से जुड़ी चार करोड़ इक्यासी लाख की संपत्तियां जब्त की थीं। स्वास्थ्य मंत्री पर आरोप है कि उनके परिवार से जुड़ी कंपनियों में कोलकाता की कुछ मुखौटा कंपनियों से सोलह करोड़ से ज्यादा रुपए आए थे। दिल्ली हाई कोर्ट भी इसे धनशोधन करार दे चुका है। लेकिन अभी तक ईडी यह पता नहीं लगा पाया है कि इन मुखौटा कंपनियों के पास यह पैसा कैसा कहां आया था।
सत्येंद्र जैन दिल्ली सरकार के ताकतवर मंत्री हैं। उनके पास स्वास्थ्य के अलावा गृह और पीडब्लूडी जैसे महत्त्वपूर्ण महकमे भी हैं। जाहिर है, उनकी गिरफ्तारी से भाजपा, कांग्रेस जैसे विरोधी दलों को मौका मिल गया है। जैन को मंत्री पद से हटाने के लिए इन दलों ने मुहिम चला रखी है। यह मांग इसलिए भी जोर पकड़े हुए है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार और किसी भ्रष्टाचारी को जरा भी बर्दाश्त नहीं करने की बात कहते हैं। ऐसे में जैन को सरकार में बनाए रखने पर सवाल तो उठेंगे ही।
हालांकि जैन पर अभी सिर्फ आरोप ही हैं। जब तक ये आरोप साबित नहीं हो जाते तब तक जैन को दागी कहना किसी भी तरह से उचित नहीं है। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री खुद जैन के बचाव में उतरे हुए हैं और ईडी की कार्रवाई को चुनौती दे रहे हैं।
पर ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि जब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार अपने भ्रष्ट मंत्री को हटा सकती है तो फिर केजरीवाल क्यों नहीं ऐसा कर रहे? इससे सरकार और पार्टी की छवि पर असर तो पड़ ही रहा है, जनता में भी यह संदेश जा रहा है कि जो आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर सत्ता में आई थी, आज उसी का एक वरिष्ठ मंत्री धन शोधन जैसे मामले में फंसा हुआ है।
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले ही पंजाब में सत्ता में आई आम आदमी पार्टी ने ऐसे ही एक मामले में मिसाल पेश की। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने घूसखोरी के मामले में अपने ही स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को न केवल सरकार से हटाया, बल्कि उन्हें गिरफ्तार भी करवा दिया। अब मामला अदालत में चलेगा, जहां सिंगला को अपने को बेकसूर साबित करना होगा।
विपक्षी दल केजरीवाल से भी यही चाह रहे हैं। ऐसे में क्या यह बेहतर नहीं होगा कि जैन अदालत में साक्ष्यों के साथ अपनी लड़ाई लड़ें और अपनी बेगुनाही साबित करें। इससे उनकी छवि निखरेगी ही। पर विडंबना यह है कि गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल जनप्रतिनिधि चाहे वे किसी भी दल के हों, तब तक अपने पद पर रहने का अधिकार समझते हैं, जब तक कि अदालत उन्हें दोषी करार न दे दे।