क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
भगवान शिव को देवों के देव महादेव ही नहीं कहा जाता बल्कि उन्हें उनके व्यक्तित्व के कई गुणों की वजह से भी सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कभी वो सौम्य-शांत है, तो कभी वो अत्यंत क्रोधी। ऐसे में उनके व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है कि कैसे जीवन में संतुलन लाना है। वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला। वेद जिन्हें रुद्र कहते हैं पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व के कालों में भी शिव थे। उन कालों की शिव की गाथा अलग है। देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्योंए राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।
नकरात्मकताओं से गुजरते हुए भी सकरात्मक बने रहना
समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया, तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उन्हें नीलकंठ नाम दिया गया। इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिलता है कि हम भी जीवन में आने वाली नकरात्मक चीजों को अपने अंदर रखकर या इससे गुजरते हुए भी जीवन की सकरात्मकता बनाए रख सकते हैं।
शांत रहकर खुद को नियंत्रित रखना
शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी परिस्थिति से खुद को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है। महादेव एक बार ध्यान में बैठ जाएं, तो दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता है। शिव का यह गुण हमें जीवन की चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाता है।
जीवन के हर रूप को खुलकर जीना
शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार, वे हर रूप में बिल्कुल अलग हैं। फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ, अर्धनारीश्वर, सबसे पहले प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ का हो। वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं।
बाहरी सुंदरता की जगह गुणों को चुनना
शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीजों को अपने आस-पास देख भी नहीं सकते, उसे उन्होंने बड़ी आसानी से अपनाया है। उनके विवाह में भूतों की मंडली पहुंची थी। वहीं, शरीर में भभूत लगाए भोलेनाथ के गले में सांप लिपटा होता है। बुराई किसी में नहीं बस एक बार आपको उसे अपनाना होता है।
अपनी प्राथमिकताओं को समझना
भगवान शिव को हमेशा से अपनी प्राथमिकताओं का भान रहा। उन्होंने अपनी पत्नी से प्रेम और सम्मान को सबसे ऊपर रखने के साथ अपने मित्र और भक्तों को भी उचित स्थान दिया।
जीवनसाथी के प्रति सम्मान
शिव का यह रूप जगजाहिर है। हिंदू मान्यताओं के हिसाब से परफेक्ट पार्टनर महादेव को ही माना जाता है। अगर पार्वती ने उन्हें मनाने के लिए सालों की तपस्या की तो दूसरी ओर शिव ने उन्हें अर्धांगिनी बनाया। तभी तो 33 करोड़ देवताओं में शिव को ही अर्धनारीश्वर कहा जाता है।
हर समय समान भाव रखना
शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीजों को अपने आस-पास देख भी नहीं सकते उसे उन्होंने बड़ी आसानी से अपनाया है। तभी तो उनकी शादी पर भूतों की मंडली पहुंची थी और शरीर में भभूत लगाए भोलेनाथ के गले में सांप लिपटा होता है। बुराई किसी में नहीं बस एक बार आपको उसे अपनाना होता है।
तीसरी आंख का खुलना
शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है. इसलिए बनी बनाई चीजों पर चलने से पहले खुद समझे-सोचें।
अपनी राह चुनना
शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार। वे हर रूप में बिल्कुल अलग हैं। फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ, अर्धनारीश्वर, सबसे पहले प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ का हो। वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं।