विश्व साईकिल दिवस

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141



अनिला सिंह आर्य
डैडी की साईकिल भरी दुपहरी में कैंची की तरह चलाई
अन्य दिवसों की भांति विश्व साईकिल दिवस है। दिवस ने हमें बहुत पीछे भेज दिया जब दूसरी कक्षा में  पढ़ते थे।तब आजकल की भांति खूबसूरत साईकिल नहीं होतीं थीं।परंतु सामान्य साईकिल डैडी ने लाकर हमें चलाना सिखाया। तत्पश्चात पचास पैसे घंटा के हिसाब से मध्यम आकार की साईकिल मिलती थी।तत्पश्चात डैडी की साईकिल भरी दुपहरी में कैंची की तरह चलाई।
दौड़ाता थे।थोड़ा बड़े हुए तो पैडल पर पाँव रख कर सीट पर बैठ कर जो पैडल ऊपर आता था उस पर पाँव मार कर खूब हवा से बातें करते थे। छठी क्लास में थे शाम को पीछे बिठा कर साईकिल चलाना ही हमारा खेल था।
हमें आज भी याद है सातवीं कक्षा में एक साइकिल पर हम और हमारी बहन होती थी दूसरी पर अर्दली होथा था।चलाते हुए हमारा अक्सर एक जूता पांव से निकल जाता था अब बिना साईकिल रोके गति धीमी करते हुए  बहन उतरती थी जूता लाकर पहनाती दी और बैठ जाती थी।अनेकों किस्सों से भरी बाते बचपन की थीं  जब कभी गिरे कभी चोट खाती कभी दूसरों  को गिराया। 
चहमने साईकिल की फ़रमाइश की तो हर बार डैडी दोनों बहनों को कह देते थे कि अबकी प्रथम आना तब साईकिल ले देंगे।फिर जी साईकिल मिली जब हम लखनऊ विश्वविद्यालय में जाने लगे।एक हाथ से चलाना है ।दोनों हाथ छोड़ कर चला नहीं पाये।तब भी हजरतगंज में भीड़ होती थी परंतु लालबत्ती पर रुकना होता था वरना कभी नहीं रुकी नाही हनुमान पुल की ऊंचाई पर उतरी। यह भी तय ताकि अपने से आगे किसी को जाने नहीं दिया। 
सब समय-समय की बात है ।कभी हम सुनते थे दहेज में  घड़ी साईकिल का मिलना बड़ी बात होती थी।
फिल्मी गाने भी नायक नायिका के साईकिल पर बैठ कर ही फिल्माये जाते थे।
डैडी जव विद्यालय कभी-कभी छोड़ने जाते थे तब हम किसी राजा महाराजा से स्वयं को कम नहीं मानते थे 
आज पर्यावरण संरक्षण के लिए साईकिल दिवस मनाया जा रहा है जबकि हम हैरान हैं क्योंकि हम किसी भी आयोजन में साईकिल से आने वाले अतिथि को वो सम्मान नहीं दे पाते जो एक चमचमाता गाड़ी में  आने वाले को देते हैं। 
साईकिल पर्यावरण के संरक्षण व संवर्धन के साथ व्यायाम कराती है,सड़कों के जाम पर भी नियंत्रण रखती है ।
विशेष दिवस विशेष सोच के साथ होता है जिससे मानव का हित होता है।
सभी बधाई और शुभकामनायें स्वस्थ जीवन के लिए देते हुए बताते चलें  कि हमने अपने बच्चों को भी साईकिल चलानी सिखायी थी और आज भी जब मौका मिलता है तब ही थोड़ी बहुत चला लेते हैं। 
अनिला सिंह आर्य