क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
हमें याद है जब छोटे थे तब एक चलचित्र खुले में मुहल्ले में दिखाया गया था जिसमें बडे़ परिवार मेंआए दिन होने वाली परेशानियों का चित्रण और छोटे परिवार का आनंदित माहौल का चित्रण था ।अर्थात परिवार नियोजन का संदेश था ।यद्यपि बड़े परिवार फिर भी चलते रहे ।जिनको अपनाना था इसे उन्होंने अपनाया भी ।तब कहते थे दो या तीन बच्चे होते हैं घर मैं अच्छे।दूसरा बच्चा कब पहला पढ़ने जाए जब।परन्तु कहीं बेटे की चाहत में तो कहीं बेटियों की चाहत में परिवार बड़े हो ही जाते हैं यह बात अलग है कि आजकल भ्रूण के लिंग की जांच कराकर कन्या की हत्या हो रही है ।तत्पश्चात् हम दो हमारे दो का नारा भी लगा ।तब इसे अपनाने के लिए कोई सख्त नियम नहीं बना था।परंंतु पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंद्रागांधी जी ने आपातकाल लगाया और नसबंदी का अभियान सख्ताई से चलाया जिसमें अविवाहितों की भी हो गयी ।परिवार नियोजन को अपनाने में एक समुदाय ने रूचि दिखाई तो दूसरे ने खिलाफत करी कि उनके धर्म में इसकी इजाजत नहीं है ।
लेकिन मित्रों एक राष्ट्र में बना कोई कानून सभी के लिए होता है वर्ग विशेष उससे अछूता कैसे रह सकता है ।
जनसंख्या विस्फोट के कारण विकास के लिए बनी योजनाएं निष्प्रभावी हो जाती हैं क्योंकि आज बनी योजना आज की जनसंख्या के आधार पर होती हैं परंंतु जब वो तैयार होकर जमीन पर उतरती है तब तक जनसंख्या और बढ़ जाती है।परिणाम शून्य होता है ।
यह राष्ट्रव्यापी समस्या है ।
अब इसका एक दूसरा पहलू भी है ।चूँकि हम लोकतंत्रीय प्रणाली में जी रहे हैं जहाँ सरों की गिनती होती है और उसी के आधार पर जनप्रतिनधि चुनकर सत्तारूढ़ होता है ।और चुनावी आंकड़े जातिगत व धर्मगत होते हैं ।जिनकी संख्या कम होती है वो फिसड्डी रह जाते हैं ।अतः हमारे शब्द थोडा़ स्पष्ट होते हैं तो कृपया अन्यथा न लें ।जो देखा जा रहा है सुना जा रहा है वही दर्ज किया जा रहा है ।
एक वर्ग कहता हैं बड़ा परिवार बनाओ ।दूसरा वर्ग भी कहता है कि परिवार बढ़ाओ और एक दिन प्रधानमंत्री हममें होगा ।एक वर्ग कहता है बड़ा कुनबा हो तो लोग डरते हैं ।छोटा कुनबा बड़े कुनबे की दबंगयी से सदैव दबा रहेगा ।इन भावनाओं में राष्ट्र कहीं बहुत पीछे छूट जाता है और कबिलाई संस्कृति के दर्शन होते हैं ।
राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हुऐ हमें अपने परिवार को सीमित स्वेच्छा से करना चाहिए ।और मांग भी है कि संसद भी दो बच्चों का कानून बनाए जो भारत के प्रत्येक नागरिक पर लागू हो ।सरकारी कर्मचारियों के लिए तो लागू है परंंतु निजी क्षेत्रों में भी लागू हो तभी कुछ होगा ।तीसरे बच्चे के जन्म लेते जो सरकारी सुविधाएं मिलतीं उनपर प्रतिबंध लगना चाहिए ।जब चीन अपने देश में एक बच्चे का कानून अपने नागरिकों से मनवा सकता है तो हमारा संविधान क्यों नहीं मनवा सकता ।इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए ।जो भारत का नागरिक है उसे दो बच्चों का कानून मानना ही है।
हमें समझना होगा कि धरती जितनी है उतनी ही रहेगी ।इस पर प्राप्त संसाधन जितने हैं उतने ही रहेंगें बल्कि कालांतर में कम और होते जायेंगे।इंसान बढ़ेंगे तो अराजकता वाली स्थिति उत्पन्न होगी ।परिणाम भयंकर बीमारी ,सूखा प्रदूषित हवा पानी उपज ,कम चहुँ ओर छोटे-छोटे घर ,सांस लेना दूभर।
ऐसे में संख्या तो क्या बढ़ेगी स्वयं का बचना भी मुश्किल होगा ।
हमारा प्रत्येक भारतीय नागरिक से निवेदन है कि दबंगयी को भूलिए, हमें अपनी तादाद बढ़ानी है इसे भी छोड़िए।सिर्फ यह जहन में रखिये कि हम स्वच्छ स्वस्थ सुरक्षित, सुव्यवस्थित, समाज की संरचना में स्वयं स्वेच्छा से अपनी भागीदारी निश्चित करें ।आपकी जानकारी में लाना चाहूँगी कि दो बच्चों का कानून लम्बित है बनने के लिए जिसके परिणाम स्वरूप चुनाव में वही व्यक्ति खड़ा हो सकता है जिसके दो बच्चे हैं ।अधिक बच्चों वाला अपात्र होगा ।राजस्थान में निगम चुनाव में यह नियम लागू था ।
अब भी समय है हमें चेतना है ।राष्ट्र धर्म को निभाना है ।राष्ट्र है तो हम हैं नहीं तो कुछ भी शेष नहीं है ।
अनिलासिंह आर्य