World Thalassemia Day: थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से आनुवांशिकता में मिलने वाला रोग

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

सटीक उपचार के लिए बोनमैरो ट्रांसप्लांट करा सकते हैं।

लखनऊ। थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से आनुवांशिकता में मिलने वाला रोग है। इसके रोगी एनेमिक होते हैं। इसलिए इनमें अन्य बीमारियों के संक्रमण की भी आशंका बनी रहती है। इस रोग के प्रति जागरूकता बहुत जरूरी है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल इसकी थीम रखी है, 'वी अवेयर शेयर एंड केयर।' इससे ग्रसित रोगियों में हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया जन्म से ही बाधित होती है। जिसके कारण शरीर में रक्त नहीं बनता है। शुरुआत में इससे ग्रसित शिशुओं को एनीमिया का शिकार समझा जाता है। इस बीमारी का पता शिशु के तीन से पांच माह का होने पर ही पता चलता है। थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों में रक्त का निर्माण न होने के कारण कुछ दवाओं के साथ रोग की स्थिति के अनुसार समय-समय पर रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है।

यह रोग दो प्रकार का होता है। यदि बच्चे के माता-पिता, दोनों के जीन में माइनर थैलेसीमिया है तो संतान को मेजर थैलेसीमिया होगा और यदि माता-पिता में से किसी एक के जीन में माइनर थैलेसीमिया है तो बच्चे में इस रोग का प्रभाव धीमा रहता है। इसलिए काफी संभावना रहती है कि माइनर थैलेसीमिया से ग्रसित रोगी मेजर थैलेसीमिया के रोगी की अपेक्षा बीमारी से थोड़ी अधिक लड़ाई लड़ जाए। इस पर लगातार शोध होने के बाद भी अभी इस बीमारी का सटीक उपचार नहीं है। इसके नवीनतम उपचार में बोनमैरो ट्रांसप्लांट थेरेपी काफी मददगार साबित हो रही है, लेकिन ये उपचार काफी महंगा है। हालांकि सरकारी चिकित्सालयों में इसके रोगियों को मुफ्त में रक्त व दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

नहीं होता ग्लोबिन का निर्माण: 

शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण दो तरह के प्रोटीन से होता है। इनमें एक है अल्फा और दूसरा, बीटा ग्लोबिन। थैलेसीमिया के पीडि़तों में रक्त में ग्लोबिन का निर्माण निष्क्रिय रहता है। इसके कारण लाल रक्त कणिकाएं नष्ट होती हैं और रोगी एनेमिक रहता है। इसके साथ ही शरीर को आवश्यक आक्सीजन भी नहीं मिल पाती है। इन जटिलताओं के कारण रोगी को समय-समय पर रक्त चढ़वाने की जरूरत पड़ती है।

खतरा बढ़ाता है आयरन: इसके रोगियों का उपचार रोगी के शरीर में आवश्यक रक्त की मात्रा को बनाए रखना है। लगातार रक्त चढऩे के कारण थैलेसीमिया के मरीजों में आयरन की मात्रा की स्थिति बिगडऩे लगती है और शरीर में आवश्यकता से अधिक आयरन इकट्ठा हो जाता है। जिसके कारण अन्य बीमारियों जैसे हृदय, लिवर, फेफड़ों आदि की समस्याएं होने लगती हैं। इसके साथ ही ये स्थिति आस्टियोपोरोसिस की आशंका भी बढ़ा देती है।

लक्षण:

-रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण रोगी किसी न किसी बीमारी की चपेट में आता रहता है।

- एनेमिक होने के कारण इसके रोगी कमजोर होते हैं।

- रक्त की कमी होने के कारण चेहरे में रूखापन रहता है।

- अच्छी देखभाल के बाद भी वजन में गिरावट आती रहती है।

उपचार:

- रोगी के शरीर में रक्त की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने के लिए चिकित्सक की सलाह पर रक्त चढ़वाते रहें।

- किसी अन्य बीमारी से बचने के लिए चिकित्सक से संपर्क बनाए रखें।

- रोगी का मनोबल न टूटने दें। इसके लिए उपचार के साथ माहौल खुशनुमा रखें।

रक्त जांच से हो सकता है नियंत्रण:

विशेषज्ञों के अनुसार, थैलेसीमिया आनुवांशिक रोग है। ये माता-पिता द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचता है। इसलिए इससे बचने का आसान उपाय है शादी के पूर्व महिला-पुरुष के रक्त की जांच कराना। इससे इस रोग के नियंत्रण में मदद मिल सकती है।