क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
आदि आनंद है तो अंत आँँसुओं से भीगा क्यों?हमने गुजारा हर पल हर्ष और विषाद में क्यों?सुख सागर में दुख समुद्र में डुबकियाँ कैसे और क्यों?
जीवन की नैया को खैने का श्रेय सिर्फ मेरा है और डुबाया अनदेखे किरदार ने क्यों ?हम हँस दिए खिलखिलाकर जब फूल खिले दिल में और आँखों से बही अश्रुधारा जरा भी काँटा चुभा क्यों ?
हम जन्म से भी भयभीत हैं और मृत्यु से भी भयभीत हैं।नवजीवन का अवतरण पीड़ा के द्वार से गुजरता है ।जीवन का अवसान भी पीड़ा से गुजरता है ।जीतना है उस पीड़ा को ।उबरना है उस दर्द से ।
बचपन भोला है ।बड़प्पन में समझदारी है ।अतः सही सोच के साथ सत्य की खोज के साथ जीवन जीने की कला आनी चाहिए।
जीवन नश्वर है ।शाश्वत कर्म का परिणाम है ।वह भी सृष्टि के अंत तक मात्र है ।प्रलय सब बहा कर ले जाती है।और होता पुनर्जन्म सृष्टि का ।बातें हमारी अमरत्व की हैं।यूँ ही भटकते रहते हैं तन से और मन से ।रोकना तो उस भटकन को है ।हम दुनिया से बंधें या विरागी रहें ।अंतर्द्वंद्व तो यही है ।आदि देखते हैं तो मोहित होते हैं ।अंत देखकर वैराग्य होता है ।
इन सब से परे होकर एक सोच जन्म लेती है ।हम जहाँ हैं जैसे है संतोष का दामन थामते हुए कर्तव्य पथ पर निरंतर राह के राही रहें ।जब लगे की यात्रा पूर्ण होने जा रही है तब उसका स्वागत करने के लिए तत्पर रहें।।
मान लें कि संसार रूपी मंच के महाकाव्य की हमारी जितनी भूमिका थी वह हमने पूर्ण कर ली ।अब मंच पर किसी ओर को अपनी भूमिका निभाने दीजिए।
निर्भीक और निडर रहिए ।