क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
पड़ोस वाली भाभी जी
"क्या इतनी देर से खिड़की पर लटके हुए हो , अंदर आओ और लंच कर लो"। ये आवाज़ थी हमारी गृह स्वामिनी अलका जी की। मगर उन्हें क्या पता था कि हम इतनी देर से भाभी जी के घर से बाहर आने का इंतजार कर रहे थे। आज ऑफिस की छुट्टी थी और इसका कुछ तो लाभ उठाना ही था ना ।भाभी जी रोज दोपहर में सज संवर के अपने बच्चे अंकुर को स्कूल से लेने जाया करती थी और जिस दिन हमारे ऑफिस की छुट्टी होती उस दिन हम खिड़की पर लटके हुए बस उनके बाहर निकलने की ही प्रतीक्षा करते रहते।"बस 2 मिनट, अभी आते हैं तुम टेबल पर खाना तो लगाओ मेरी जान"। हमने अलका जी को बड़े प्यार से बातों में उलझा दिया और वह नाश्ते की टेबल लगाते हुए हमारी प्रतीक्षा करती रही और हम प्रतीक्षा करते रहे "आए हाय" अपनी भाभी जी की। अरे वाह दोपहर के 1:00 बजे थे और हमें दिन में ही चांद के दीदार हो गए गुलाबी साड़ी जिस पर बने हुए बड़े-बड़े सफेद फूल उनकी गोरी त्वचा को बहुत अच्छे से कंपलीमेंट दे रहे थे। गोरे से चेहरे पर लगी लाल लिपस्टिक "आह" ! हम उन्हें तब तक देखते रहे जब तक की गली के मोड़ ने उन्हें ढक ना लिया।"अलका खाना लग गया क्या" ? हमने अपनी गृह स्वामिनी जी को आवाज लगाई।"जी कब का लग गया आपको बाहर ताक झांक से फुर्सत मिले तब तो आप खाना खाएंगे ना अंदर आकर" । अलका ने भी हौले स्वर में कहा।एक पल को तो हमें ऐसा लगा जैसे हमारी चोरी पकड़ी गई।मगर हम करते भी क्या दिल के हाथों मजबूर जो थे। अलका इतनी खूबसूरत नहीं थी हमें जैसी पत्नी अपने लिए चाहिए थी वह सारे गुण हमें भाभी जी में नजर आते थे मगर अब कर भी क्या सकते थे। बस दूर से ही दर्शन करके अपने दिल को सुकून देना हमारी जिंदगी रह गई थी। कभी-कभी मन में बैठे बैठे यूं ही विचार आता था , कितना खुश किस्मत है वह सामने वाला शर्मा जिसकी बीवी इतनी खूबसूरत है कि उसे देखकर आस-पड़ोस के मर्द भी आहें भरते हैं और एक हम और एक हमारी किस्मत। उफ्फ। मगर अभी विचारों से बाहर आकर सबसे पहले हमें खाना खत्म करना है और गली में टहलने जाना है अरे भाई जानते हैं ना आप लोग , भाभी जी अंकुर को लेकर वापस भी तो आएंगी।" अरे भाभी जी आप इतनी भरी दोपहर में कहां गई थी" ।भाभीजी को आते देख हम भी लपक के गली के मोड़ पर खड़े हो लिए थे।" बस बच्चे को लेने स्कूल गई थी , आप इस दोपहर में यह क्या कर रहे हैं" । भरी दोपहर में माथे से टपकता हुआ पसीना उनके गोरे रंग पर ऐसा लग रहा था जैसे सीप से मोती निकल रहा हो । हम तो उनकी पसीने की बूंदों में ही खो गए थे मगर उनके सवाल पर जैसे होश में आए।" अरे कुछ नहीं आज वह अलका ने छोले बना दिए थे बस उन्हें ही पचाने के लिए गली में टहल रहे हैं" ।भाभीजी हंस दी थी वह भी जरा जोर से।तब हमें ख्याल आया हमने इस सवाल का जवाब कुछ गलत तो नहीं दे दिया फिर सर झटकते हुए सोचा चलिए छोड़िए भाभी जी के दर्शन हो गए यह भी क्या कम है। और वो कहावत भी तो है न " हंसी तो फंसी" । और यह सोचते ही हमने मन में एक जोर का कहकहा लगा दिया। आज ऑफिस से घर आते हुए हम ने एक साड़ियों की दुकान देखी ना जाने क्यों मन किया कि अलका के लिए हम भी गुलाबी साड़ी ले।बस फिर क्या था हम फटाफट दुकान में घुस गए और हमने एक बड़ी प्यारी सी गुलाबी साड़ी अरे हां भाई वही गुलाबी साड़ी सफेद फूलों वाली पूरी दुकान ढूंढ ढूंढ कर हमने वह गुलाबी साड़ी निकाल ही ली और पहुंच गए अलका के पास।( हमारे घर पहुंचते ही अलका का नियम था वह हमें बहुत प्यार से पानी का गिलास थमाती और फटाफट चाय बनाने के लिए किचन में पहुंच जाती । उसके जीवन का एक-एक पल बस पति की सेवा करते ही गुजरता और वह इसमें बहुत खुश भी रहती थी। )"लो अलका आज हम तुम्हारे लिए एक बहुत ही प्यारा गिफ्ट लाए हैं जरा यह पहन के तो दिखाओ तुम्हारे ऊपर कैसे लगती है" ।अलका ने साड़ी का पैकेट हाथ में लिया और साड़ी खोलकर देखते ही मानो पगला ही गई थी , पगलाती भी क्यों ना हम से गिफ्ट भी तो उसे महीनों बाद मिला था या यूं कहें कि सालों बाद मिला था।वह साड़ी का पैकेट लेकर अंदर गई और कुछ देर बाद ही पहन कर बाहर आई । वह खुशी से घूम घूम कर हमें दिखाते हुए पूछ रही थी " कैसी लग रही हूं मैं" ।अब हम भला क्या कहते , की भाभीजी जैसी खूबसूरत तो नहीं लग रही मगर हमने ना चाहते हुए भी कह ही दिया कि " बहुत सुंदर लग रही हो तुम" ।अभी 2 दिन पहले ही इसी तरह की साड़ी में भाभी जी कितनी खूबसूरत लग रही थी और आज अलका , मगर चलिए जैसी हमारी किस्मत हमें तो रश्क होता था हर वक्त उस शर्मा की किस्मत से की क्या खूबसूरत बीवी पाई है उसने।" अरे अजय भाई साहब आइए आइए। और बताइए सब बढ़िया घर में सब कुशल मंगल तो है"? आज अजय भाई साहब घर आए थे हाथों में कुछ लिफाफा सा लिया हुआ था हमने भी बड़ी खुश दिली से स्वागत करते हुए पूछ ही लिया कि क्या बांट रहे हैं गलियों में। "अरे ...