माता सीताजी की शरण में श्री हनुमान

   क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141


एक दिन हनुमानजी जब
सीता जी की शरण में आए
नैनों में जल भरा हुआ है
बैठ गए शीश झुकाए,

सीता जी ने पूछा उनसे
कहो लाडले बात क्या है
किस कारण ये छाई उदासी 
नैनों में क्यों नीर भरा है,

हनुमान जी बोले, मैया 
आपनें कुछ वरदान दिए हैं
अजर अमर की पदवी दी है 
और बहुत सम्मान दिए हैं
अब मैं उन्हें लौटानें आया
मुझे अमर पद नहीं चाहिए
दूर रहूँ मैं श्री चरणों से
ऐसा जीवन नहीं चाहिए,

सीता जी मुस्काकर बोली 
बेटा ये क्या बोल रहे हो
अमृत को तो देव भी तरसे
तुम काहे को डोल रहे हो ?

इतने में श्रीराम प्रभु आ गए और बोले
क्या चर्चा चल रही है माँ और बेटे में..

सीता जी बोली सुनो नाथ जी
ना जाने क्या हुआ हनुमान को
पदवी अजर-अमर
लौटानें आया है ये मुझको,

राम जी बोले क्यों बजरंगी
ये क्या लीला नई रचाई
कौन भला छोड़ेगा 
अमृत की ये अमर कमाई,

हनुमानजी रोकर बोले
आप साकेत पधार रहे हो
मुझे छोड़कर इस धरती पर
आप वैकुंठ सिधार रहे हो
आप बिना क्या मेरा जीवन
अमृत का विष पीना होगा
तड़प-तड़प कर विरह अग्नि में
जीना भी क्या जीना होगा
प्रभु अब आप ही बताओ
आप के बिना मैं यहाँ कैसे रहूँगा ?

प्रभु श्रीराम बोले-
हनुमान सीता का यह वरदान
सिर्फ आपके लिए ही नहीं है
बल्कि यह तो संसार भर के 
कल्याण के लिए है
तुम यहाँ रहोगे और संसार का कल्याण करोगे..
माँगो हनुमान वरदान माँगो 

हनुमान जी बोले :
जहां-जहां पर आपकी कथा हो, आपका नाम हो
वहां-वहां पर मैं उपस्थित होकर हमेशा आनंद लिया करूँ 

सीता जी बोलीं : दे दो, प्रभु दे दो..

भगवान राम नें हँसकर कहा-
तुम नहीं जानती सीते
ये क्या मांग रहा है
ये अनगिनत शरीर माँग रहा है
जितनी जगह मेरा पाठ होगा 
उतनें शरीर मांग रहा है

सीता जी बोलीं-
दे दो फिर क्या हुआ
आपका लाडला है..

प्रभु श्रीराम बोले
तुम्हरी इच्छा पूर्ण होगी
वहां विराजोगे बजरंगी
जहां हमारी चर्चा होगी
कथा जहां पर राम की होगी
वहां ये राम दुलारा होगा
जहां हमारा चिंतन होगा 
वहां पर जिक्र तुम्हारा होगा..

कलयुग में मुझसे भी ज्यादा 
पूजा हो हनुमान तुम्हारी
जो कोई तुम्हरी शरण में आए
भक्ति उसको मिले हमारी..
मेरे हर मंदिर की शोभा बनकर
आप विराजोगे
मेरे नाम का सुमिरन करके
सुध बुध खोकर नाचोगे..

नाच उठे ये सुन बजरंगी
चरणन शीश नवाया
दुख-हर्ता, सुख-कर्ता प्रभु का
प्यारा नाम ये गाया

जय सियाराम-जय जय सियाराम।
जय सियाराम-जय जय सियाराम॥