क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
वर्तमान में जिस वापी की बात हो रही है वो तालाब और कुएं के बीच का जल श्रोत था। कहते हैं उसी कूप में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ा था तो शिवलिंग को लेकर पुजारी कूद गए थे। वक्त के साथ तालाब, वापी और कूप का भेज मिटता गया।
काशी की परंपरा में जल की अहमियत
ज्ञानवापी दो शब्दों ज्ञान+वापी से मिलकर बना है। जिसका मतलब हुआ ज्ञान का सरोवर। दरअसल, काशी की परंपरा में जल की अहमियत है। ज्ञानवापी मस्जिद जिसे कहा जा रहा है उस परिसर के अंदर एक कुआं है जिसे ज्ञानवापी कहते हैं। हजारों साल पहले से वहां जल के पांच जरिया होते थे। स्कंदपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था।
जल के पांच श्रोत
पहला- बावली जिसका पानी ऊपर होता था।
दूसरा- तालाब जो जल का बड़ा श्रोत था।
तीसरा- वापी जो तालाब से छोटा होता था।
चौथा- कुआं जो वापी से भी छोटा होता था।
पांचवा- कुएं से भी छोटा होता है हिद।
औरंगजेब ने मंदिर तोड़ा और शिवलिंग को लेकर पुजारी कूद गए
वर्तमान में जिस वापी की बात हो रही है वो तालाब और कुएं के बीच का जल श्रोत था। कहते हैं उसी कूप में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ा था तो शिवलिंग को लेकर पुजारी कूद गए थे। वक्त के साथ तालाब, वापी और कूप का भेज मिटता गया। इसलिए कोई उसे तालाब कहता है तो कोई कूप और कोई वापी। उस वापी के पवित्र जल से बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक होता था। उसका जल लेकर बाबा विश्वनाथ का संकल्प होता था। संकल्प लेना और संकल्प छुड़ाना दोनों ही उसी वापी के पवित्र जल से होते थे। कहते हैं इसी ज्ञानवापी में आकर औरंगजेब के भाई दारा शिकोह संस्कृत भी पढ़ते थे। ये उस दौर में केवल मंदिर नहीं था बल्कि हिन्दुस्तान के ज्ञान का बड़ा केंद्र था।