गेंहू की बढ़ती कीमत और सरकार !

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

गेंहू की बढ़ती कीमत और सरकार !

वापस लिए गए तीनो कृषि कानूनों में जो सबसे महत्वपूर्ण बात थी वह यह थी कि किसान अपनी उपज को मंडी केबाहर भी किसी को भी और कही भी बेच सकेंगे जिस पर बिना कोई कानून बने ही किसानों ने इस बार पूरा अमल किया तथा अपनी गेंहू की फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार को कम जबकि उससे कही अधिक मूल्य पर निजी क्रेताओं को बेचा जिसके कारण इस बार सरकार की कुल खरीद हर बार के मुकाबले लगभग 30% कम हुई और सरकार की मुफ्त खाधान्न वितरण करने की क्षमता पर भी असर पड़ा है। केंद्र सरकार ने 8 राज्यो जिनमे उत्तरप्रदेश भीसम्मलित है, को इस वर्ष अपने कोटे से गेंहू का आवंटन न करके सिर्फ चावल का आवंटन किया है।इधर यूक्रेन एवम रूस के युद्ध के अधिक लम्बे खींच जाने से पूरे विश्व मे खाधान्न सहित लगभग सभी वस्तुओं के मूल्यों में भारी वृद्धि हुई है तथा इस वृद्धि के हाल फिलहाल वापस होने की कोई उम्मीद भी नही है क्योंकि रूस औरयूक्रेन क्षेत्रफल में सबसे बड़े देश होने के कारण उनकी खाधान्न उपजाने की क्षमता सबसे अधिक थी जो कि युद्ध से कुंड पड़ गयी है। इसके चलते पूरे विश्व मे गेंहू की कीमतें बहुत अधिक बढ़ गयी है तथा लगभग 50 वर्षो बाद विश्व एक बार फिर खाधान्न संकट की और बढ़ चला है। ऐसे में भारत को सबसे अधिक परेशानी झेलनी पड़ेगी क्योंकि यहां की सरकार कोविड महामारी के चलते आयी आर्थिक मंदी से उबारने के लिए देश के कमजोर वर्ग को मुफ्त खाधान का वितरण कर रही है और इस कारण से उसने देश मे एक बड़ा लाभार्थी वर्ग खड़ा कर दिया है जो मुफ्त खाता भी है और सरकार के पक्ष में वोट भी करता है। मुफ्त खाधनन मिलने के कारण इस वर्ग की बाजार से खाधान क्रय करके खाने की क्षमता प्रभावित हुई है या यूं कहिए कि इस लाभार्थी वर्ग की पैसा खर्च करके खाने की आदत अब समाप्त हो गयी है और यदि उसे मुफ्त खाने को गेहूं नही मिला तो वह सरकार का प्रबल विरोधी बन कर खड़ा हो जाएगा।

इस परिस्थिति से निपटने के लिए सरकार को घनघोर उपाय करने होंगे और निजी क्रेताओं जिन्होंने अपार मात्रा में गेहूँ की खरीद करके अपने गोदाम भर रखे है और जिनके कारण सरकार ने इस वर्ष गेंहू के निर्यात पर लगी रोक हटाते हुए इसे निर्यात करने की अनुमति प्रदान की थी, उंस पर पुनर्विचार करना होगा। साथ ही देश की जनता को मुफ्त में खाधान्न, बिजली, पानी, पेंशन, लेपटॉप, वाईफाई डाटा आदि बांटने की अपनी नीति का विश्लेषण इस तरह से करना होगा कि यह लाभार्थी वर्ग क्या अपनी कार्य करने की क्षमता को खो चुका है? जरा सोचिए…..

- डॉ मुकेश गर्ग

(लेखक एक स्वतंत्रत उद्यमी, विचारक एवम ब्लॉगर है)



- डॉ मुकेश गर्ग

(लेखक एक स्वतंत्रत उद्यमी, विचारक एवम ब्लॉगर है)