क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
कवियत्री ने 'फूल की भूल' कविता में फूल के बारे में बहुत अच्छा वर्णन किया है। कवियत्री ने इस कविता में फूल के सुख और दुख दोनों का वर्णन किया है। इस कविता के माध्यम से यह भी बताया कि फूल का उपयोग मनुष्य किस प्रकार करता है।
मैं एक फूल हूं,
किसी वाटिका की शोभा हूं,
किसी नारी के केशों की आभा हूं,
मैं एक फूल हूं।
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कभी परमात्मा के कंठ का हार हूं,
कभी मृतात्मा के तन की चादर हूं,
कभी वरमाला की कलइयां हूं,
मैं एक फूल हूं।
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कहीं मैं प्रेम का यौवन हूं,
किसी के देह की सुगंध हूं,
कभी मैं तोरण की रौनक हूं,
मैं एक फूल हूं।
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हर रूप में मुझे तोड़ा गया,
मुरझाने पर मैं फेंका गया,
खिलने पर काटा गया,
स्वाद-रस के लिए निचोड़ा गया,
किताब में यादों का कब्रिस्तान बनाया गया,
क्रोधाग्नि में पैरों तले रौंद दिया गया।
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किस बात की सजा इंसान मुझे दे रहा,
कभी-कभी विचारों के झरोखे से झांकता हूं,
तो नजर आती है- बस मेरी एक भूल,
की-मैं हूं एक फूल।