क्लूटाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

मोदीनगर। मोदीनगर में जिस शत्रु संपत्ति ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 30 हजार से ज्यादा की आबादी की नींद उड़ा रखी है। उसकी पूरी कहानी सांठगांठ और मिलीभगत पर टिकी है। दरअसल, उस संपत्ति से इस वक्त न तो पाकिस्तानी अलाउउदीन का कोई वास्ता है और न ही इस जमीन से शेख निजामुददीन का कोई लेना देना है। किसी समय जमीन उनके नाम दर्ज जरूर रही, लेकिन उन्होंने इस जमीन पर न कभी अधिकार जमाया और न ही उन्होंने पिछले तीन, चार दशक में यहां लौटकर जमीन को देखा।
अरबों की इस संपत्ति पर मेरठ के लालकुर्ती के भूमाफिया महीउद्दीन की नजर लगी हुई थी, जो खुद को अलाउददीन और निजामुद्दीन का रिश्तेदार बताता है। उसने ही अफसरों से मिलीभगत कर इस जमीन में अपने नाम दर्ज करा लिए। चूंकि, 85 बीघा खेवट की जमीन में अचानक से 2018 में तत्कालीन तहसीलदार राजबहादुर सिंह ने पाकिस्तानी अलाउद्दीन का नाम दर्ज कर दिया था। इसलिए यह पूरा जिन्न बाहर आ गया। सच्चाई यह थी कि उसके पीछे भूमाफिया सक्रिय थे। इनमें मुख्य महीउददीन ही है।
उसने पूर्व में भी कुछ जमीन में अपना नाम दर्जकर उसको बेच दिया था। अब खेवट की 85 बीघा जमीन पर भी उसकी नजर थी। अलाउददीन का नाम दर्ज होने के बाद वह इस जमीन पर अपना अधिकार जमाता, लेकिन तत्कालीन एसडीएम पवन अग्रवाल ने पूरे मामले से पर्दा उठाकर रिपोर्ट डीएम को भेज दी। नतीजा यह हुआ कि जांच होने पर 1800 बीघा जमीन शत्रु संपत्ति घोषित हो गई। गठजोड़ इसी से साबित होता है कि महीउददीन की वकालत भाजपा के दो बड़े नेताओं ने भी की थी। यह बात और है कि अब बड़ी आबादी के विरोध को देखते हुए वह अपना पैर पीछे खींच रहे हैं।
शत्रु संपत्ति से बन गया अरबपति: महीउद्दीन नाम के व्यक्ति की निगाह मोदीनगर की शत्रु संपत्ति पर ही नहीं थी, वह पूरे पश्चिम में इस तरह की संपत्तियों का रिकार्ड खंगाल अफसरों से मिलीभगत करके उसमें अपना, रिश्तेदारों का नाम दर्ज करा लेता था और उसको बेचकर जमीन पर कब्जा करा देता था।
मुजफ्फरनगर में भी इसी तरह का मामला पिछले दिनों सामने आया था। खास बात यह है कि खुद वादी बनकर किसी परिचित को प्रतिवादी बना देता था और अफसरों से मिलकर किसी एक के हक में फैंसला करा लेते थे। इस जमीन में ऐसा ही कुछ करने का उन्होंने ताना बाना बुना था। फिलहाल उन्होंने इस मामले में सिविल कोर्ट में भी वाद दायर किया था।