क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
आज विश्व धरोहर दिवस पर आइए इनके संरक्षण के लिए कृतसंकल्प होते हुए इतिहास को सुरक्षित रखें और अपनी विरासत को अवगत कराते हुए उनके महत्व आदर्श, सिद्धांत बताएं।
प्रकृति ने जो दिया जल जंगल जमीन हम अपने क्रियाकलापों से उनको प्रदूषित न करें बल्कि संवर्धन के लिए प्रयास रत रहें। तालाब को कचरा डाल कर गंदा और उथला न करें, धरती से जल का दोहन व दूषित न करें, वृक्षों के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण को प्रदूषित न करें।
एतिहासिक इमारतें अर्थात अनगिनित इतिहास से सम्बंधित जय-पराजय की घटनाओं को समेटे उनका भी संरक्षण के प्रति सजग रहना है
हम जानते है कि यह कर्तव्य सरकार का , पुरातत्व विभाग का है परंतु हम सब भी इसमें भागी दार हो सकते हैं।
अक्सर हम किसी ऐतिहासिक स्थल पर जाते हैं तो वहाँ अनेक अपने प्रियजनों के नाम लिख कर आते हैं, तारीख लिखकर आते हैं और भी न जाने कितनी ऊल जलूल बातें लिख कर न जाने कौनसे संदेश छोड़ कर क्या दर्शाना चाहते हैं।
हम भूल जाते हैं यह कि हमें कितना क्रोध आता है जब कोई हमारे छोटे घर में कील ठोक दे।
विश्व की प्राचीन इमारतों में जाकर जो अहसास होता है उसकी अभिव्यक्ति के लिए शब्द ही नहीं मिलते।
जरा सोचिये जब आज की तरह संसाधन उपलब्ध नहीं थे कैसे पहाड़ पर निर्माण सामग्री पहुँची होगी।तब भी इतनी पुख्ता इमारतें बनीं कि सैकड़ों, हजारों वर्षों बाद भी अपने होने का अहसास कराती है और आधुनिक तकनीक को ठेंगा दिखाते हुए दिखती हैं क्योंकि की घर हमने पच्चीस तीस वर्ष में ही ध्वस्त होते देखे हैं, कहीं भूकम्प की तबाही नजर आती है।उधर वो प्रकृति के प्रहारों को झेल कर भी अपनी गाथाओं को हमें सुनाती हैं। वो बताती हैं कि बिजली जैसी सुविधा के अभाव में भी सर्दी गर्मी में कैसे आराम से जीते थे ,शुद्ध जल की व्यवस्था थी।वो प्रकृति के साथ-साथ जीते थे ।
हम आपसे विदा लें इससे पूर्व बस तीन बातें साझा करेंगे।
पहली जय गढ़ के किले में एक तोप रखी है। गाइड ने बताया कि इतनी बड़ी तोप को अलग-अलग टुकड़ों में ऊपर लाकर जोड़ा गया था। उसका परीक्षण या उपयोग मात्र एक बार ही हुआ। गोला जहाँ जाकर गिरा वहाँ बहुत बड़ा गड्ढा बन गया और बहुत से लोग धमाके के शोर से बहरे हो गए।
दूसरी बात वहाँ एक तस्वीर राजसी परिवार की अंग्रेज मेहमानों के साथ दीवार पर लगी है जिसमें महारानी ने लम्बा सा घूंघट डाला हुआ है ।
तीसरी बात यह है कि महाराजा की साईकिल सवार होकर एक तस्वीर भी लगी है जिसे देख कर हमें मन ही मन में हंसी आई और आज की राजनीति की ओर ध्यान चला गया।
तत्कालीन शासन,वास्तुशास्त्रियों को नमन् करते हुए विश्व धरोहर दिवस पर सभी का अभिनन्दन है। संकल्प लिया जाए कि ऐसे ही निर्माण आज भी हों कि आने वाली पीढ़ी देख कर गर्व कर सके इतिहास पर।ऐसा न हो कि भविष्य में बुलडोज़र चले ऐसे निर्माण से तौबा सो बार ।
अनिला सिंह आर्य