क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
दैत्य मोहिनी रूप धारी भगवान के सौंदर्य सुधा का मुसकुराते हुए पान कर रहे हैं। दैत्यों की पंक्ति में स्वरभानु नाम का दैत्य बड़ा बुद्धिमान था। वह भगवान की चाल समझ गया और धीरे से देवताओं की पंक्ति में सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर बैठ गया और अमृत पान करने में सफल रहा।
अहो रूपमहो धाम अहो अस्या नवं वय:।
मोहिनी भगवान का सुंदर स्वरूप देखकर सभी राक्षस अत्यंत विस्मित हो गए।
उनके रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए दैत्यगण मोहिनी भगवान के पास आकर बोले–
का त्वं कंजपलाशाक्षि कुतो वा किं चिकिर्षसि।
कस्यासि वद वामोरु मथ्नंतीव मनांसि न:॥
हे कमलनयनी ! आप कौन हैं, कहाँ से आई हैं, कहाँ जा रही हो। अकेली क्यों घूम रही हो? क्या तुम्हारा विवाह नहीं हुआ है? मुसकुराते हुए भगवान बोले- तुम हमारी जन्मपत्री लेने वाले कौन हो। दैत्यों ने कहा- हे देवी हम भी कोई ऐसे-वैसे नत्थू खैरे नहीं है।
वयम कश्यपदायादा; भ्रातर; कृत पौरुषा; हम सब कश्यप ऋषि के पुत्र सभी भाई हैं। हम सबने मिलकर समुद्र मंथन किया है अमृत प्राप्त कर लिया है। अच्छा, तो अब क्या कर रहे हो? दैत्य बोले– देवी जी ! बँटवारे के लिए आपस में झगड़ रहे हैं निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि कैसे वितरण किया जाये। भगवान की कृपा से आप ठीक समय पर आईं हैं, यदि बंटवारा आपके हाथ से हो जाय तो हमारा झगड़ा ही मिट जाएगा। क्या आप अपने हाथो से हमे अमृत पिलाएंगी? भगवान बोले अरे ! बाबा कश्यप का तो मैंने बड़ा नाम सुना है। ऐसे परम तपस्वी महात्मा के तुम जैसे मूर्ख पुत्र। दैत्यों ने कहा- हे देवी ! हम तुम्हें मूर्ख कहाँ से नजर आ रहे हैं? मोहिनी भगवान बोले- अरे ये मूर्खता नहीं तो और क्या है। मेरे बारे में कुछ अता नहीं, पता नहीं, कोई जान नहीं, पहचान नहीं। एक अपरिचित नारी पर विश्वास करके अमृत जैसी बहुमूल्य वस्तु बँटवारे के लिए मुझ पर सौंप रहे हो क्या यह बुद्धिमानी की बात है?
कथं कश्यपदायादा;पुंश्चल्याम मयि संगता
विश्वासो पंडितो जातु कामिनीषु न याति हि ॥
कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति अपरिचित स्त्री पर कभी भी भरोसा नहीं करता, जैसा कि तुम लोग कर रहे हो। यह सुनकर दैत्यों में और श्रद्धा-विश्वास बढ़ गया। एक बोला- मुझे तो लगता है बहुत पढ़ी-लिखी है। दूसरा बोला यार ! बड़ी ऊँची खनदान की लगती है। इतनी बढ़िया ज्ञान की बात करती है। ठीक ही कह रही है हमें विश्वास नहीं करना चाहिए। परंतु इसकी बातों से लग रहा है कि कुलीन स्त्री है। विश्वास करने के लायक है। राक्षसों ने कहा- देवी जी ! चाहे कुछ भी हो अमृत हम आपके हाथ से ही पिएंगे। भगवान बोले ठीक है, किन्तु मेरी भी एक शर्त है। बँटवारे के समय हो सकता है मात्रा कम-ज्यादा हो जाये तो मुझसे झगड़ा मत कर बैठना। राक्षसों ने कहा– अरे देवी जी चाहे जैसे बाँटो लेकिन बांटना तुम्हें ही है। हम वचन देते हैं। कोई भी आप से झगड़ा नहीं करेगा। मोहिनी भगवान बोले- अच्छा ठीक है लाओ। भगवान ने अमृत कलश अपने हाथ में ले लिया। तब तक दैत्यों को ढूंढ़ते हुए देवता वहाँ पहुँच गए। मोहिनी भगवान बोले- अच्छा एक काम करो, घड़े में मैं देख रही हूँ ऊपर-ऊपर पानी जैसा कुछ तरल पदार्थ उतरा रहा है इन्हें मैं देवताओं को पिला दे रहीं हूँ और जो नीचे गाढ़ा गाढ़ा अमृत है उसे मैं तुम लोगों को पिलाऊँगी। राक्षस खूब खुश हो गए। जो अच्छा लगे वो करो देवी। भगवान ने देवताओं को अमृत पिलाना शुरू कर दिया। इधर देवता सुधा पान कर रहे हैं उधर दैत्य मोहिनी रूप धारी भगवान के सौंदर्य सुधा का मुसकुराते हुए पान कर रहे हैं। दैत्यों की पंक्ति में स्वरभानु नाम का दैत्य बड़ा बुद्धिमान था। वह भगवान की चाल समझ गया और धीरे से देवताओं की पंक्ति में सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर बैठ गया और अमृत पान करने में सफल रहा। सूर्य चंद्र ने तुरंत इशारा किया, महाराज ये नकली है। प्रभु ने तुरंत सुदर्शनचक्र से सिर काट दिया। दो भागों में विभक्त हो गया, किन्तु मरा नहीं क्योंकि अमृत पान कर चुका था। ब्रह्मा जी ने उसे ग्रह मण्डल में राहू के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। वैर भाव से बदला लेने के लिए वही "राहू" अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा को ग्रसित करता है, जिसे हम सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण कहते हैं।