क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
दोस्त सरीखे निकट संबंधी से उनके पुत्रों की ओर इशारा कर मैंने पूछा,-इनके बारे में आपके क्या विचार हैं? उन्होंने कहा,-अरे ये मेरे पुत्र हैं, मुझे इनसे कैसा भय।' दरअसल वे नौकर नौकरानियों द्वारा की जा रही वारदातों पर चिंता व्यक्त कर रहे थे जब मैंने यह प्रश्न पूछा। बात आई गई हो गई। गौतमबुद्धनगर के गांव चपरगढ़ की विरमा देवी भी इसी भरोसे या इसी मुगालते में जी रही थी कि उसकी बेटी उसके प्राणों की शत्रु कैसे हो सकती है।वह अपने बेटी दामाद और दो पोतों के साथ रह रही थी। बेटी दामाद ने 'ज़िन्दगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी' स्लोगन को गंभीरता से लिया। उन्होंने विरमा देवी का बीमा कराया।बीमे का धन विरमा देवी की मृत्यु का मुंहताज था। बेटी दामाद विरमा देवी के जिए चले जाने से दुखी हो गये। उनका धैर्य चुक गया। उन्होंने रसोई में बंद कर विरमा देवी को जला डाला। अपराधी नौसिखिए थे,रसोई का दरवाजा बाहर से बंद कर गये। विरमा देवी के बेटे ने बहन और बहनोई के विरुद्ध हत्या की रपट लिखाई है। पुलिस रिश्तों के हत्यारों को खोज रही है। मैंने मित्र सरीखे निकट संबंधी से आज पूछने की हिम्मत नहीं की।मन मानता नहीं कि ऐसा हो सकता है। क्या देह से जन्मे बच्चे अपने ही मां पिता के हत्यारे हो सकते हैं? कुछ वर्ष पहले मेरठ में एक अध्यापक की बेटी ने प्रेमी के साथ मिलकर पूरे परिवार को काट डाला था।वह घटना समाचार पत्रों में पढ़ी थी और मन कई दिनों तक सत्य को नकारता रहा था। परंतु सत्य से आंखें चुराई जा सकती हैं, उसे झुठलाया नहीं जा सकता है।
-राजेश बैरागी-