अनुभवहीन बिलावल भुट्टो के विदेश मंत्री बनने से पाक राजनयिकों के बीच मायूसी का माहौल

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

अनुभवहीन बिलावल भुट्टो के विदेश मंत्री बनने से पाक राजनयिकों के बीच मायूसी का माहौल

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बिलावल ने पाकिस्तान में अब तक जितनी भी राजनीति की है वह विदेश में रहते हुए ही की है। उनकी परवरिश जिस माहौल में हुई है उसके चलते जनता की दिक्कतों से उनका सीधा वास्ता नहीं है। अपनी मां या नाना की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए वह कदम तो बढ़ा चुके हैं।

बिलावल पाकिस्तान की तीन बार प्रधानमंत्री रहीं दिवंगत बेनजीर भुट्टो के पुत्र हैं। पहले से ही माना जा रहा था कि बिलावल ही अपनी मां के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे लेकिन बेनजीर की हत्या के बाद उपजी परिस्थितियों में पहले बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी ने पार्टी और देश की कमान संभाली और फिर खुद विदेश में बसकर अपने बेटे को अगो कर दिया। उल्लेखनीय है कि बेनजीर भुट्टो की 2007 में रावलपिंडी में एक राजनीतिक रैली में बम और गोलियों के हमले में मौत हो गई थी। बेनजीर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी थीं। जुल्फिकार अली को जनरल जियाउल हक ने 1977 में सत्ता से हटा कर मार्शल लॉ लागू कर दिया था। जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ हत्या के मामले में साजिश का मुकदमा चला और 1979 में उन्हें फांसी दे दी गई। हम आपको बता दें कि जुल्फिकार अली भुट्टो के चार बच्चों में से तीन (बेनजीर सहित) की हिंसक घटना में मौत हुई है। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान के हालात शुरू से कैसे रहे हैं।

इसे संयोग भी कहा जा सकता है कि जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी 1960 के दशक में देश के विदेश मंत्री के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत की थी और उनके नाती ने भी वहीं से शुरुआत की है। देखा जाये तो पाकिस्तान की सरकार में इतनी कम उम्र के किसी व्यक्ति को पहली बार कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया गया है। बिलावल वैसे तो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन वह पाकिस्तान नेशनल असेंबली के लिए पहली बार 2018 में निर्वाचित हुए थे। बिलावल ऐसे वक्त में विदेश मंत्री बने हैं जब पाकिस्तान को बेहद नाजुक हालात से गुजरते हुए विदेश नीति को संतुलित बनाकर आगे बढ़ने की जरूरत है। विदेश मंत्री के रूप में बिलावल को जिन मुख्य चुनौतियों से निपटना होगा उनमें पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा लगाए गए आरोपों की पृष्ठभूमि में अमेरिका से तनावपूर्ण हुए संबंधों को सुधारना और पड़ोसी देश भारत के साथ शांति प्रक्रिया फिर से शुरू करने का रास्ता तलाशना शामिल है।

लेकिन बिलावल ने पाकिस्तान में अब तक जितनी भी राजनीति की है वह विदेश में रहते हुए ही की है। उनकी परवरिश जिस माहौल में हुई है उसके चलते जनता की दिक्कतों से उनका सीधा वास्ता नहीं है। अपनी मां या नाना की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए वह कदम तो बढ़ा चुके हैं लेकिन उनकी तरह वह जमीनी नेता नहीं हैं। संभ्रांत लोगों से घिरे रहने वाले बिलावल ने अपने लिये विदेश मंत्रालय भी इसीलिए लिया क्योंकि वह जमीनी राजनीति करने से बचते हैं। बिलावल की चाह है कि विदेशों में वह आलीशान जीवन ही बिताएं। ऐसे में पाकिस्तानी विदेश मामलों के विशेषज्ञों को अब भय है कि उनकी अब तक की मेहनत पर कहीं बिलावल का अनुभवहीन होना पानी ना फेर दे। इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा हुआ है और कहीं से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही। साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय संगठनों की ओर से काली सूची में भी डाल दिया गया है। इन सबका हल बिलावल निकाल पाएंगे या स्थितियां और बिगड़ेंगी, इसको लेकर पाकिस्तान में कयासबाजी का दौर जारी है। जहां तक हिना रब्बानी खार की बात है तो वह पहले भी विदेश राज्य मंत्री रह चुकी हैं लेकिन इस पद पर वह कुछ ही समय टिक पाई थीं।

दूसरी ओर, देखा जाये तो पाकिस्तान की परिवारवादी राजनीति में अगली पीढ़ी ने सत्ता संभालना शुरू कर दिया है। बिलावल भुट्टो पाकिस्तान की नई सरकार में विदेश मंत्री बने हैं तो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम औरंगजेब सूचना मंत्री बनी हैं। पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ की सरकार में परिवारवाद हर जगह हावी दिख रहा है। सभी बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों को सरकार में कहीं ना कहीं समायोजित किया गया है। देखना होगा कि यह सरकार क्या नेशनल असेम्बली का शेष कार्यकाल पूरा कर पाती है या फिर मध्यावधि चुनावों का सामना पाकिस्तान को करना पड़ता है।