महान मौन साधक अरविन्द भट्टाचार्य जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सैकड़ों मौन साधकों का निर्माण किया

 क्लू टाइम्स। मोदीनगर, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता, 9837117141

अरविन्द भट्टाचार्य *****

                  (1अप्रैल,1929/ जन्म-दिवस)

                 


 महान मौन साधक अरविन्द भट्टाचार्य जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सैकड़ों मौन साधकों का निर्माण किया है, जिन्होंने अपनी देह को तिल-तिल गला कर गहन क्षेत्रों में हिन्दुत्व की जड़ें मजबूत कीं। ऐसे ही एक साधक थे श्री अरविन्द भट्टाचार्य। 

                  अरविन्द दा का जन्म 1 अप्रैल, 1929 को हैलाकांडी (असम) में हुआ। वे विद्यार्थी जीवन में संघ के स्वयंसेवक बने। एम.ए. तथा बी.टी. कर वे एक इंटर कालिज में प्राध्यापक हो गये। उन दिनों श्री मधुकर लिमये असम में प्रचारक थे। उनके सम्पर्क में आकर अरविंद दा ने 1966 में नौकरी छोड़कर प्रचारक जीवन स्वीकार कर लिया। प्रारम्भ में उन्हें संघ के काम में लगाया गया। फिर उनकी कार्यक्षमता देखकर उन्हें 1970 में विश्व हिन्दू परिषद का सम्पूर्ण उत्तर पूर्वांचल अर्थात सातों राज्यों का संगठन मंत्री बनाया गया।

                 


उन दिनों यहां का वातावरण बहुत भयावह था। एक ओर बंगलादेश से आ रहे मुस्लिम घुसपैठिये, उनके कारण बढ़ते अपराध और बदलता जनसंख्या समीकरण, दूसरी ओर चर्च द्वारा बाइबिल के साथ राइफल का भी वितरण और इससे उत्पन्न आतंकवाद। जनजातियों के आपसी हिंसक संघर्ष और नक्सलियों का उत्पात। ऐसे में अरविंद दा ने शून्य में से ही सृष्टि खड़ी कर दिखाई।

                  इस क्षेत्र में यातायात के लिए पैदल और बस का ही सहारा है। ऐसे में 50-60 कि.मी. तक पैदल चलना या 20-22 घंटे बस में लगातार यात्रा करना उनके जैसे जीवट वाले व्यक्ति के लिए ही संभव था। उन्होंने नगा नेता रानी मां गाइडिन्ल्यू तथा अनेक जनजातीय प्रमुखों को संघ और परिषद से जोड़ा। 

                  त्रिपुरा में शांतिकाली महाराज की हत्या के बाद उन्होंने हिन्दू सम्मेलन कर आतंक के माहौल को समाप्त किया। इस क्षेत्र में बंगलाभाषियों से घृणा की जाती है। अरविंद दा की मातृभाषा बंगला थी; पर अपने परिश्रम और मधुर व्यवहार से उन्होंने सबका मन जीत लिया था। हिन्दू सम्मेलनों द्वारा जनजातीय प्रमुखों व सत्राधिकारों को वे एक मंच पर लाए। गोहाटी आदि शहरों में बिहार से आये श्रमिकों को भी उन्होंने संगठित कर परिषद से जोड़ा।

                  उत्तर पूर्वांचल में चर्च की शह पर सैकड़ों आतंकी गुट अलग न्यू इंग्लैंड बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग वहां ईसाई बन भी चुके हैं। ऐसे में संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने वहां अनेक छात्रावास, विद्यालय, चिकित्सालय आदि स्थापित किये। इन सबमें अरविंद दा की मौन साधना काम कर रही थी। आतंकियों द्वारा लगाये गये 100 से लेकर 500 घंटे तक के कर्फ्यू के बीच भी वे निर्भयतापूर्वक समस्या पीड़ित गांवों में जाते थे। 

                  हिन्दू पर कहीं भी कठिनाई हो, तो अरविंद दा वहां पहुंचते अवश्य थे। आगे चलकर उन्हें वि.हि.प. का क्षेत्रीय संगठन मंत्री तथा फिर 2002 में केन्द्रीय सहमंत्री बनाया गया। सेवा कार्य और परावर्तन में उनकी विशेष रुचि थी।

                  अत्यधिक परिश्रम और खानपान की अव्यवस्था के कारण उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। 2005 में उनके पित्ताशय में पथरी की शल्य चिकित्सा हुई। इसके बाद उनका प्रवास प्रायः बन्द हो गया। मार्च 2009 में उनका सहस्रचंद्र दर्शनदर्शन कार्यक्रम मनाया गया। कार्यकर्ताओं ने इसके लिए साढ़े तीन लाख परिवारों से सम्पर्क किया। पूर्वांचल के सब क्षेत्रों से हजारों कार्यकर्ता आये। 

                  जुलाई में तेज बुखार के कारण उन्हें चिकित्सालय भेजा गया। चिकित्सकों ने मस्तिष्क की जांच कर बताया कि वहां की कोशिकाएं क्रमशः मर रही हैं। दोनों फेफड़ों में पानी भरने से संक्रमण हो गया था। धीरे-धीरे नाड़ी की गति भी कम होने लगी। भरपूर प्रयास के बाद भी 26 जुलाई, 2009 को ब्रह्ममुहूर्त में उन्होंने देह त्याग दी। इस प्रकार एक मौन साधक सदा के लिए मौन हो गया।

प्रदीप गोयल

सेवा भारती चंडीगढ़